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संयम की विधायक दृष्टि
किसी आदमी को कभी पता ही नहीं चलता। संयम की यह विधायक दृष्टि अतींद्रिय संभावनाओं के बढ़ाने से शुरू होती है। ___ और महावीर ने बहुत ही गहन प्रयोग किए हैं अतींद्रिय संभावनाओं को बढ़ाने के लिए। महावीर की सारी की सारी साधना को इस बात से ही समझना शुरू करें तो बहुत कुछ आगे प्रगट हो सकेगा। महावीर अगर बिना भोजन के रह जाते हैं वर्षों तक तो उसका कारण? उसका कारण है उन्होंने भीतर एक भोजन पाना शुरू कर दिया है। अगर महावीर पत्थर पर लेट जाते हैं और गद्दे की कोई जरूरत नहीं रह जाती तो उन्होंने भीतर के एक नए स्पर्श का जगत शुरू कर दिया है। महावीर अगर कैसा भी भोजन स्वीकार कर लेते है - असल में उन्होंने एक भीतर का स्वाद जन्मा लिया है। अब बाहर की चीजे उतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं। भीतर की चीजें ही बाहर की चीजों पर इम्पोज हो जाती हैं और छा जाती हैं। उसे घेर लेती हैं। इसलिए महावीर सिकुड़े हुए मालूम नहीं पड़ते, फैले हए मालूम पड़ते हैं। उनके व्यक्तित्व में कोई कहीं संकोच नहीं मालूम पड़ता है। खिलाव मालुम होता है। वे आनंदित हैं। वे तथाकथित तपस्वियों जैसे दुखी नही हैं।
बद्ध से यह नहीं हो सका। यह विचारों में ले लेना बहत कीमती होगा और समझना आसान होगा। टाइप अलग था। बुद्ध से यह नहीं हो सका। बुद्ध ने भी यही सब साधना शुरू की जो महावीर ने की है। लेकिन बुद्ध को हर साधना के बाद ऐसा लगा कि इससे तो मैं और दीन-हीन हो रहा हूं। कहीं कुछ पा तो नहीं रहा हूं। इसलिए छह वर्ष के बाद बुद्ध ने सारी तपश्चर्या छोड़ दी। स्वभावतः बुद्ध ने निष्कर्ष लिया कि तपश्चर्या व्यर्थ है। बुद्ध बुद्धिमान थे और ईमानदार थे। नासमझ होते तो यह निष्कर्ष भी न लेते। अनेक नासमझ लोग चले जाते हैं उन दिशाओं में जो उनके लिए नहीं हैं। उन दिशाओं में, जिनकी उनकी क्षमता नहीं हैं। जो उनके व्यक्तित्व से तालमेल नहीं खाती और अपने को समझाए चले जाते है कि पिछले जन्मों में किए हुए पापों के कारण ऐसा हो रहा है। या शायद मैं पूरा प्रयास नहीं कर पा रहा हूं इसलिए ऐसा हो रहा है और ध्यान रहे, जो आपकी दिशा नहीं है उसमें आप पूरा प्रयास कभी भी न कर पाएंगे इसलिए यह भ्रम बना ही रहेगा कि मैं पूरा प्रयास नहीं कर पा रहा है।
बुद्ध ने छह वर्ष तक वही किया जो महावीर कर रहे थे। लेकिन बुद्ध को जो निष्पति मिली उसे करने से, वह वह नहीं थी जो महावीर को मिली। महावीर आनंद को उपलब्ध हो गए, बुद्ध बहुत पीड़ा को उपलब्ध हो गए। महावीर महाशक्ति को उपलब्ध हो गए, बद्ध केवल निर्बल हो गए। निरंजना नदी को पार करते वक्त एक दिन वे इतने कमजोर थे उपवास के कारण कि किनारे को पकड़कर चढ़ने की शक्ति मालूम न पड़ी। एक जड़ को पकड़कर वृक्ष की सोचने लगे कि इस उपवास से क्या मिलेगा जिससे मैं नदी भी पार करने की शक्ति खो चुका, उससे इस भवसागर को कैसे पार कर पाऊंगा। पागलपन है, यह नहीं होगा। कृश हो गए थे, हड्डियां सब निकल आयीं। बुद्ध का बहुत प्रसिद्ध चित्र जो उस समय का है वह ठीक तथाकथित तपस्वी जैसी मुसीबत में पड़ेगा, उसका चित्र है। एक ताम्र प्रतिमा उपलब्ध है, बहुत पुरानी – जिसमें बुद्ध का उस समय का चित्र है, जब वे छह महीने तक निराहार रहे थे। सारी हड्डियां दिखाई पड़ती हैं, बाकी सारा शरीर सूख गया है। खून ने जैसे बहना बंद कर दिया हो, चमड़ी जैसे सिकुड़कर जुड़ गयी है। सारा शरीर मुर्दे का हो गया। वैसे ही क्षण में वह निरंजना नदी को पार करते वक्त उन्हें खयाल आया कि नहीं, यह सब व्यर्थ है। और यह सब बुद्ध के लिए व्यर्थ था। लेकिन इसी सबसे महावीर महाशक्ति को उपलब्ध हुए। असल में बुद्ध ने जिनसे यह बात सुनी और सीखी वह सब निषेध था ... वह सब निषेध था। यह-यह छोड़ो, यह-यह छोड़ो, वह छोड़ते गए। जिसने जैसा कहा, वह करते चले गए। जिस गुरु ने जो बताया वह उन्होंने किया। सब छोड़कर उन्होंने पाया कि सब तो छट गया, मिला कुछ भी नहीं, 'और मैं केवल दीन-हीन और दुर्बल हो गया हैं'- बुद्ध के लिए वह मार्ग न था। बुद्ध के व्यक्तित्व का टाइप भिन्न था, ढांचा और था। फिर बुद्ध ने सब त्याग कर दिया ... सब त्याग का त्याग कर दिया। भोग को त्याग करके देख लिया था, उससे
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