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महावीर-वाणी
भाग : 1
आपकी भाषा में लिखे हुए कागज पर - वह हाथ फेरती है, तो पढ़ लेती है। आपके लिखे हुए कागज पर कपड़ा ढांक दिया गया है और उस कपड़े पर हाथ रखती है, तो पढ़ लेती है। तो यह तो आंख भी नहीं कर पाती है। यह तो, जो वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे हैं, वे भी नहीं पढ़ पाते हैं सामने, कि नीचे क्या होगा।
लेकिन वासिलिएव, जो उस लड़की पर मेहनत कर रहा था, उसको ऐसा खयाल आया कि जो एक व्यक्ति के भीतर संभव है वह किसी न किसी मार्ग से, किसी न किसी रूप में सबकी संभावना होनी चाहिए। तो उसने सोचा, क्या हम दूसरे बच्चों को भी ट्रेंड कर सकते हैं? उसने अंधों की एक स्कूल में बीस बच्चों पर प्रयोग शुरू किया और चकित रह गया कि बीस में से सत्रह बच्चे दो वर्ष के प्रयोग के बाद हाथ से अध्ययन करने में समर्थ हो गए। और तब तो वासिलिएव ने कहा कि नाइन्टी सैवन परसेंट आदमियों की संभावना है कि वे हाथ से पढ़ सकें - 97 प्रतिशत । बाकी जो तीन हैं, मानना चाहिए हाथ के लिहाज से अंधे हैं। बाकी और कोई कारण नहीं है। कुछ हाथ के यंत्र में खराबी होगी। वासिलिएव के प्रयोगों का परिणाम यह हुआ, अखबारों में जब खबरें निकली तो कई अंधे बच्चों ने अपने-अपने घरों पर प्रयोग करने शुरू किए। और सैकड़ों खबरें आयीं, मास्को यूनिवर्सिटी के पास गांवों से कि फलां बच्चा भी पढ़ पाता है, फलां बच्चा भी पढ़ पाता है।
बड़ी हैरानी की बात थी क्योंकि हाथ कैसे पढ़ पाएगा। हाथ के पास तो आंख नहीं है। हाथ से कोई संबंध नहीं जुड़ता हुआ मालूम पड़ता है। हाथ स्पर्श कर सकता है। लेकिन अब चादर ढांक दी गयी तो स्पर्श भी नहीं कर सकता। जैसे-जैसे प्रयोगों को और गहन किया गया, वैसे-वैसे साफ हुआ कि सवाल हाथ का नहीं है, यह सवाल अतींद्रिय है, पैरासाइकिक है। उस लड़की को फिर पैर से भी पढ़ने के लिए कोशिश करवायी गयी। दो महीने में वह पैर से भी पढ़ने लगी। फिर उसको बिना स्पर्श किए पढ़ने की कोशिश करवाई गई। वह दीवार के उस तरफ रखा हुआ बोर्ड भी पढ़ लेती थी। फिर उसे मीलों के फासले पर रखी हुई किताब खोली जाएगी और वह यहां से पढ़ सकेगी। तब स्पर्श से कोई संबंध न रहा। वासिलिएव ने कहा है - हम जितनी शक्तियों के संबन्ध में जानते हैं, निश्चित ही उनसे कोई अन्य शक्ति काम कर रही है।
योग निरंतर उस अन्य शक्ति की बात करता रहा है। महावीर की संयम की जो प्रक्रिया है उसमें उस अन्य शक्ति को जगाना ही आधार है। जैसे-जैसे वह अन्य शक्ति जगती है वैसे-वैसे इन्द्रियां फीकी हो जाती हैं। ठीक वैसे ही फीकी हो जाती हैं जैसे कि आप किताब पढ़ रहे हैं - एक उपन्यास पढ़ रहे हैं और फिर आपके सामने टेलिविजन पर वह उपन्यास खोला जा रहा है तो आप किताब बंद कर देंगे। किताब एकदम फीकी हो गयी। कथा वही है, लेकिन अब ज्यादा जीवंत मीडिया है, आपके सामने। बहुत दिन तक किताब चलेगी नहीं, बहुत दिन तक किताब नहीं चलेगी। किताब खो जाएगी। टेलिविजन और सिनेमा इसको पी जाएगा। जो भी शिक्षा टेलिविजन से दी जा सकती है वह किताब से आगे नहीं दी जा सकेगी। उसका कोई अर्थ नहीं रह गया क्योंकि किताब बहत मुर्दा है, बहुत फीकी हो जाती है। ___ अब अगर आपको कोई कहे कि उपन्यास किताब में पढ़ लो, और यह कथा फिल्म पर देख लो, दो में से चुन लो जो तुम्हें चुनना हो, तो आप किताब को हटा देंगे, तो जिन्हें टेलिविजन का कोई पता नहीं है, वे समझेंगे कि किताब का त्याग किया। त्याग आपने नहीं किया है, आपने सिर्फ श्रेष्ठतम माध्यम को चुन लिया है। सदा ही आदमी चुन लेता है, जो श्रेष्ठतम है. उसे। अगर आपको अपनी इंद्रियों का अतींद्रिय रूप प्रगट होना शुरू हो जाए तो निश्चित ही आप इंद्रियों का रस छोड देंगे और एक नए रस जाएंगे। बाहर जो अभी इंद्रियों में ही जीते हैं, जिनकी समझ की सीमा इंद्रियों के पार नहीं - वे कहेंगे, महात्यागी हैं आप। लेकिन आप केवल भोग की और गहनतम, और अंतरतम दिशा में आगे बढ़ गए हैं। आप उस रस को पाने लगे हैं जो इंद्रियों में जीनेवाले
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