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महावीर-वाणी भाग 1
जो हुई कलम की मर्जी, लिख डाला, मेरा इसमें दायित्व नहीं कोई। ओशो जो लिखवा देते हैं, लिख लेता हूं। मेरे लिए तो ओशो: तुम युग के अष्टावक्र, पूर्व के गुरजिएफ। शंकराचार्य के श्लोकों के तुम नये लेख। तुम 'नमोकार' साकार, श्रेष्ठतम मंत्र-पूत जो संत हुए, होंगे, उन सब के शब्द-दूत। तुम पतंजलि के योग, योग के परमशिखर। सूफी संतों की वाणी के अमृत-निर्झर। तुम झेन फकीरों के चिंतन के समयसार, तुम लुप्तगुप्त तांत्रिक प्रतीत के नव प्रसाद। तुम चरम भावना, चरम तर्क, वाणी-विराम, परमात्मा का पर्याय बना ओशो-नाम। 'तन्मय' न तुम्हारे योग्य, मगर इतना कर दो, उसके विनीत मस्तक पर अपना कर धर दो।
तन्मय 'बुखारिया'
ललितपुर
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