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________________ संयम : मध्य में रुकना हैं कि जितना चित्त तना रहे, उतना ही हमें लगता है कि हम जीवित हैं। अगर चित्त में कोई तनाव न हो तो हमें लगता है- मरे, मर न जाएं, खो न जाएं। __जो लोग ध्यान में गहरा उतरते हैं, मुझे आकर कहने लगते हैं कि अब तो बहुत डर लगता है। ऐसा लगता है, कहीं मर न जाऊं। मरने का कोई सवाल ही नहीं है ध्यान में, लेकिन डर लगने का सवाल है। डर इसलिए लगता है कि जैसे-जैसे ध्यान गहरा होता है, मन शून्य होता है। और जब मन शून्य होता है, तो हमने तो अपने को मन ही समझा हुआ है, तो लगता है हम मरे। मिट न जाएंगे! अगर अतीत छोड़ देंगे तो समाप्त न हो जाएगे! गति कहां रहेगी, फिर हम समाप्त ही हो जाएंगे। डा. ग्रीन ने अमरीका में एक यंत्र बनाया हआ है---- फीड-बैक यंत्र है. और कीमती है। और आज नहीं कल, सभी मंदिरों में लग जाना चाहिए, सभी गिरजाघरों में, सभी चर्चा में। एक यंत्र है जिसकी कुर्सी पर आदमी बैठ जाता है और सामने उसकी कुर्सी पर पर्दा लगा होता है। उस पर्दे पर थर्मामीटर की तरह प्रकाश घटने बढ़ने लगता है। दो रेखाओं में प्रकाश ऊपर बढ़ता है, जैसे थर्मामीटर का पारा ऊपर बढ़ता है। आपके मस्तिष्क में दोनों तरफ खोपड़ी पर तार बांध दिये जाते हैं। ये तार उन प्रकाशों से जुड़े होते हैं। और आपका मन जब अतियों में चलता है तो एक रेखा बिलकुल आसमान छूने लगती है, दूसरी जीरो पर हो जाती है। बहुत अदभुत, महत्वपूर्ण है वह। जब आप सोच रहे होते हैं कामवासना के संबंध में, तब एक रेखा आपकी आसमान छूने लगती है, दूसरी शून्य पर हो जाती है। सामने पास में ग्रीन खड़ा है, वह आपको तस्वीरें दिखाता है, नंगी औरतों की, और आपके मन में कामवासना को जगाता है। साथ में संगीत बजता है, जो आपके भीतर कामवासना को जगाता है। एक रेखा आसमान को छूने लगती है, दूसरी शून्य पर हो जाती है। फिर तस्वीरें हटा ली जाती हैं। फिर बुद्ध और महावीर और क्राइस्ट के चित्र दिखाये जाते हैं। फिर संगीत बदल दिया जाता है। ब्रह्मचर्य का कोई सूत्र आदमी के सामने रख दिया जाता है और उनसे कहा जाता है ब्रह्मचर्य के संबंध में चिंतन करो। तो एक रेखा नीचे गिरने लगती है, दूसरी रेखा ऊपर चढ़ने लगती है। और वह तब तक नहीं रुकता आदमी, जब तक कि पहली शून्य न हो जाए और दूसरी पूर्ण न हो जाए। ग्रीन कहता है- यह चित्त की अवस्था है। फिर ग्रीन तीसरा प्रयोग करता है। वह कहता है- तुम कुछ मत सोचो। न तुम ब्रह्मचर्य के संबंध में सोचो, न तुम कामवासना के संबंध में सोचो। तुम तो सामने देखो और सिर्फ इतना ही खयाल करो कि यह शांत मेरा मन हो जाए और ये दोनों रेखाएं समतुल हो जाएं। वह आदमी देखता है, एक रेखा नीचे गिरने लगी, दूसरी ऊपर बढ़ने लगी। इसको फीड-बैक कहता है, ग्रीन। इससे उसकी हिम्मत बढ़ती है कि कुछ हो रहा है। __ इसलिए मैं कहता हूं कि ध्यान के लिए सारे मंदिरों में वह यंत्र लग जाना चाहिए। क्योंकि आपको पता नहीं चलता कि कुछ हो रहा है कि नहीं हो रहा है। पता चले कि हो रहा है तो आपकी हिम्मत बढ़ती है। तो जितनी उसकी हिम्मत बढ़ती है, उतनी जल्दी उसकी रेखाएं करीब आने लगती हैं। जितनी करीब आने लगती हैं, वह फीड-बैक मैकेनिज्म हो गया। वह देखता है, उसे लगता है कि हो रहा है मन शांत। वह और शांत होता है, और शांत होता है। यंत्र में दिखाई पड़ता है, और शांत हो रहा है, और शांत होने की हिम्मत बढ़ती है। बहुत शीघ्र- पंद्रह मिनट, बीस मिनट, तीस मिनट में दोनों रेखाएं साथ, समान आ जाती हैं। और जब दोनों रेखाएं समान आती हैं तब वह आदमी कहता है-- आह! ऐसी शांति कभी नहीं जानी। ऐसा कभी जाना ही नहीं। इसकोग्रीन को एक नया शब्द देना पड़ा है क्योंकि कोई शब्द नहीं कि इसको कौन-सा अनुभव कहें। तो वह कहता है- 'अहा ऐक्सपीरिएंस!' जब वे दोनों रेखाएं शांत हो जाती हैं तब आदमी कहता है- अहा! और एक दफा यह अनुभव में आ जाए तो संयम का खयाल आ सकता है, अन्यथा संयम का खयाल नहीं आ सकता है। संयम 105 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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