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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 कैसा होगा, हवायें कैसी होंगी, वर्षा कैसी होगी, चांद-तारे कैसे होंगे, इस सब पर निर्भर करेगा। उस सबसे पत्ते निकलेंगे। टोटल से निकलेगा सब, समग्र से निकलेगा सब। महावीर जैसे लोग कास्मिक में जीते हैं, समग्र में जीते हैं। कुछ नहीं कहा जा सकता कि वे क्या करेंगे। हो सकता है जिस पर बलात्कार हो रहा है, उसको डांटें-डपटें। कुछ कहा नहीं जा सकता। नहीं तो भूल हो जाती मुल्ला नसरुद्दीन गुजर रहा है गांव से। देखा कि एक छोटे-से आदमी को एक बहुत बड़ा, तगड़ा आदमी पिटाई कर रहा है। उसकी छाती पर बैठा हुआ है। मुल्ला को बहुत गुस्सा आ गया। मुल्ला दौड़ा और तगड़े आदमी पर टूट पड़ा। बामुश्किल-तगड़ा आदमी काफी तगड़ा था; मुल्ला के लिए भी काफी पड़ रहा था—किसी तरह उसको नीचे गिरा पाया। दोनों ने मिलकर उसकी अच्छी मरम्मत की। जैसे ही वह छोटा आदमी छूटा, वह निकल भागा। वह बड़ा आदमी बहुत देर से कह रहा था, मेरी सुन भी, लेकिन मुल्ला इतने गुस्से में था कि सुने कैसे। जब वह निकल भागा तब मुल्ला ने कहा- तू क्या कहता है? वह बोला कि वह मेरी जेब काटकर भाग गया। वह मेरी जेब काट रहा था, उसी में झगड़ा हुआ कुटाई कर दिया और उसको निकाल दिया। मुल्ला ने कहा- यह तो बहुत बुरी बात है। लेकिन तूने पहले क्यों नहीं कहा? उस आदमी ने कहा- मैं बार-बार कह रहा हूं, लेकिन तू सुने तब न! तू तो एकदम पिटाई में लग गया। जिंदगी बहुत जटिल है। वहां कौन पिट रहा है, जरूरी नहीं कि वह पिटने के योग्य हो। कौन पीट रहा है, यह जरूरी नहीं कि वह बेचारा गलत ही कर रहा है। मुल्ला ने कहा- उस आदमी को मैं ढूंदूंगा। ढूंढ़ा भी। लेकिन जो छोटा-सा आदमी इतने बड़े आदमी की जेब काटकर निकल भागा था-वह मुल्ला को मिल गया और उसने फौरन मनीबेग जो चुराया था, मुल्ला को दे दिया, कहा इसे संभाल, असली मालिक तू ही है। क्योंकि मैं तो पिट गया था। जिंदगी जटिल है। महावीर जैसे व्यक्ति उसको उसकी पूरी जटिलता में देखते हैं और जब वह उसकी पूरी जटिलता में दिखाई पड़ती है तो क्या होगा उनसे, कहना आसान नहीं है। और प्रत्येक घटना में जटिलता बदलती चली जाती है। डाइनेमिक बहाव है। संयम पर आज कुछ समझ लें। क्योंकि महावीर उसे धर्म का दूसरा महत्वपूर्ण सत्र कहते हैं। अहिंसा आत्मा है, संयम जैसे श्वास और तप जैसे देह । महावीर ने शुरू किया, कहा पहले अहिंसा-संजमो तवो। तप आखिर में कहा, संयम बीच में कहा, अहिंसा पहले कहा। हम जब भी देखते हैं, तप हमें पहले दिखाई पड़ता है। संयम पीछे दिखाई पड़ता है। अहिंसा तो शायद ही दिखाई पड़ती है, बहुत मुश्किल है देखना। ___ महावीर भीतर से बाहर की तरफ चलते हैं, हम बाहर से भीतर की तरफ चलते हैं। इसलिए हम तपस्वी की जितनी पूजा करते हैं उतनी अहिंसक की न कर पाएगे। क्योंकि तप हमें दिखाई पड़ता है, वह देह जैसा बाहर है। अहिंसा गहरे में है। वह दिखाई नहीं पड़ती, वह अदृश्य है। संयम का हम अनुमान लगाते हैं। जब हमें कोई तपस्वी दिखाई पड़ता है तो हम समझते हैं, संयमी है। करेगा! जब कोई हमें भोगी दिखाई पड़ता है तो हम समझते हैं, असंयमी है, नहीं भोग कैसे करेगा! जरूरी नहीं है यह। तपस्वी भी असंयमी हो सकता है और ऊपर से दिखाई पड़नेवाला भोगी भी संयमी हो सकता है। इसलिए हम संयम का सिर्फ अनुमान लगाते हैं, वह इनोसेंट है। तब हमें दिखाई पड़ जाता है, वह साफ है। संयम का हम अनुमान लगाते हैं, वह साफ नहीं है। वह अनुमान हमारा ऐसा ही है जैसे रास्ते पर गिरा हुआ पानी देखकर हम सोचें कि वर्षा हुई होगी। म्युनिसिपल की मोटर भी 100 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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