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संयम : मध्य में रुकना
कर रहे हैं क्योंकि महावीर ने ऐसा कभी नहीं किया। बुद्ध का माननेवाला कहता है कि बुद्ध ठीक कर रहे हैं। और ऐसी स्थिति में महावीर ने ऐसा नहीं किया, इससे सिद्ध होता है कि उन्हें ज्ञान नहीं हुआ था ।
हम कर्मों से ज्ञान को नापते हैं, यहीं भूल हो जाती है। कर्म ज्ञान से पैदा होते हैं और ज्ञान कर्म से बहुत बड़ी घटना है । जैसे लहर पैदा होती है सागर में, लेकिन लहरों से सागर को नहीं नापा जाता। और अगर हिन्द महासागर में और तरह की लहर पैदा होती और प्रशांत महासागर में और तरह की हवाएं बहती हैं, और दिशाओं में बहती हैं; तो आप यह मत समझना कि हिंद महासागर सागर है और प्रशांत महासागर सागर नहीं है; क्योंकि वैसी लहर यहां कहां पैदा हो रही है! न पानी का वैसा रंग है। महावीर की स्थितियों में महावीर क्या करते हैं, वही हम जानते हैं। बुद्ध की स्थितियों में बुद्ध क्या करते हैं, वही हम जानते हैं । फिर पीछे परंपरा जड़ हो जाती है। फिर हम पकड़कर बैठ जाते हैं। फिर हम शास्त्रों में खोजते रहते हैं कि इस स्थिति में महावीर क्या किया था वही हम करें। न तो स्थिति है वही, और अगर स्थिति भी वही है तो एक बात तो पक्की है कि आप महावीर नहीं हैं। क्योंकि महावीर ने कभी नहीं लौटकर देखा कि किसने क्या किया था, वैसा मैं करूं । समझें तो महावीर जो कर रहे हैं वह कृत्य नहीं है, एक्ट नहीं है, हैपनिंग है, वह घटना है। नहीं है। वह नियम मुक्त चेतना से घटी हुई घटना है। वह स्वतंत्र घटना है। इसीलिए कर्म का उसमें बंधन नहीं है। महावीर से जरूर बहुत कुछ होगा। क्या होगा, नहीं कहा जा सकता। कर्म उसका नाम नहीं है, होगा । हैपनिंग होगी। इसलिए मैं कोई उत्तर नहीं दे सकता कि महावीर क्या करेंगे।
महावीर से जो हुआ— इसलिए ठीक से वैसा हो रहा है । वह कोई नियमबद्ध बात
प्रतिपल जीवन बदल रहा है। जिंदगी स्टिल फोटोग्राफ की तरह नहीं है। जैसा कि जड़ फोटोग्राफ होता है, वैसी नहीं है। जिंदगी चलचित्र की भांति है— भागती हुई फिल्म की भांति, डाइनेमिक ! वहां सब बदल रहा है, सब पूरे समय बदल रहा है । सारा जगत बदला जा रहा है। सब बदला जा रहा है। हर बार नयी स्थिति है । और हर बार नयी स्थिति में महावीर हर बार नये ढंग से होंगे
प्रगट ।
अगर महावीर आज हों, तो जैनों को जितनी कठिनाई होगी उतनी किसी और को नहीं होगी। क्योंकि उनको बड़ी दिक्कत होगी । वे सिद्ध करेंगे कि यह आदमी गलत है, क्योंकि वह महावीर की पच्चीस सौ साल पहले वाली जिंदगी उठाकर जांच करेंगे कि वह आदमी वैसे ही कर रहा कि नहीं कर रहा है। और एक बात पक्की है कि महावीर वैसा नहीं कर सकते, क्योंकि वैसी कोई स्थिति नहीं । सब बदल गया है ... सब बदल गया है। और जब वह कुछ और करेंगे – वे और करेंगे ही - तो जिसने जड़ बांध रखी है वह बड़ी दिक्कत में पड़ेगा । वह कहेगा|— यह नहीं हो सकता है। यह आदमी गलत है। सही आदमी तो वही था जो पच्चीस सौ साल पहले था। इसलिए महावीर को जैन भर स्वीकार नहीं कर सकेंगे। हां, और कोई मिल जाएं नये लोग स्वीकार करने वाले, तो
अलग बात है । यही बुद्ध के साथ होगा, यही कृष्ण के साथ होगा। होने का
कारण है क्योंकि हम कर्मों को पकड़कर बैठ जाते हैं ।
कर्म तो राख की तरह हैं, धूल की तरह हैं। टूट गये पत्ते हैं वृक्षों के सूख गये पत्ते हैं वृक्षों के । उनसे वृक्ष नहीं नापे जाते । वृक्ष में तो प्रतिपल नये अंकुर आ रहे हैं। वहीं उसका जीवन है। सूखे पत्ते उसका जीवन नहीं है। सूखे पत्ते तो बताते यही हैं कि अब वे वृक्ष के लिए व्यर्थ होकर बाहर गिर गये हैं। सब कर्म आपके सूखे पत्ते हैं। वे बाहर गिर जाते हैं। भीतर तो जीवन प्रतिपल नया और हरा होता चला जाता है। वह डाइनेमिक है। हम सूखे पत्तों को इकट्ठा कर लेते हैं और सोचते हैं वृक्ष को जान लिया । सूखे पत्तों से वृक्षों का क्या लेना-देना है! वृक्ष का संबंध तो सतत धारा से है प्राण की; जहां नये पत्ते प्रतिपल अंकुरित हो रहे हैं। नये पत्ते कैसे अंकुरित होंगे, नहीं कहा जा सकता। क्योंकि वृक्ष सोच-सोचकर पत्ते नहीं निकालते । वृक्ष से पत्ते निकलते हैं। सूरज
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