________________
अहिंसा : जीवेषणा की मृत्यु
मुल्ला को जिस दिन से तनख्वाह मिलने लगी, सम्राट बहुत हैरान हुआ- सम्राट जो भी कहता, मुल्ला कहता- बिलकुल ठीक, एकदम सही, यही सही है। सम्राट के साथ खाने पर बैठा था। कोई सब्जी बनी थी।
सम्राट ने कहा- मुल्ला, सब्जी बहुत स्वादिष्ट है।।
मुल्ला ने कहा- यह अमृत है, स्वादिष्ट होगी ही। मुल्ला ने बहुत बखान किया उस सब्जी का। जब इतना बखान किया कि सम्राट ने दूसरे दिन भी बनवा ली। लेकिन दूसरे दिन उतनी अच्छी नहीं लगी।
तीसरे दिन रसोइये ने देखा कि इतनी अमृत जैसी चीज, तो उसने तीसरे दिन भी बना दी। सम्राट ने हाथ मारकर थाली नीचे गिरा दी और कहा कि क्या बदतमीजी है, रोज-रोज वही सब्जी! ___ मुल्ला ने कहा- जहर है। सम्राट ने कहा- लेकिन मुल्ला तुम तीन दिन पहले कहते थे कि अमृत है। मुल्ला ने कहामैं आपका नौकर हूं, सब्जी का नहीं। तनख्वाह तुम देते हो कि सब्जी देती है?
सम्राट ने कहा-- लेकिन इसके पहले जब तुम आये थे मुझसे मिलने, तब तुम अपने को ही सही कहते थे। मुल्ला ने कहा- तब तक मैं बिन-बिका था, तब तक तुम कोई तनख्वाह नहीं देते थे। और जिस दिन तुम तनख्वाह नहीं दोगे, याद रखना, सही तो मैं ही हूं, यह तो सिर्फ तनख्वाह की वजह से मैं कहे चले जा रहा हूं।
यह हमारा जो मन है, हमारी जो अस्मिता है-महावीर कहते हैं— दूसरा भी सही है, दूसरा भी सही हो सकता है। तुमसे विरोधी भी सत्य को लिए है। आग्रह मत करो, अनाग्रह हो जाओ। आग्रह ही मत करो। इसलिए महावीर ने कोई सिद्धांत का आग्रह नहीं किया। और महावीर ने जितनी तरल बातें कही हैं उतनी तरल बातें किसी दूसरे व्यक्ति ने नहीं कहीं हैं। इसलिए महावीर अपने हर वक्तव्य के सामने 'स्यात' लगाते थे, वे कहते थे, परहैप्स। अभी आपका तो विचार उन्हें पता भी नहीं है, लेकिन अगर आप उनसे पूछते कि आत्मा है? तो महावीर कहते, स्यात, परहैप्स। क्योंकि वे कहते, हो सकता है, कोई इसके विपरीत हो उसे चोट पहुंच जाए। आप पूछते कि मोक्ष है? तो महावीर कहते, स्यात! ऐसा नहीं कि महावीर को पता नहीं है। महावीर को पता है कि मोक्ष है महावीर को यह भी पता है कि अहिंसक वक्तव्य 'स्यात' के साथ ही हो सकता है-नान-वायलेंट असरशन। असत्य- यह भी पता है और महावीर को यह भी पता है कि स्यात कहने से शायद आप समझने को ज्यादा आसानी से तैयार हो जाएं। जब महावीर कहें कि हां, मोक्ष है, तो महावीर जितने अकड़कर कहेंगे मोक्ष है, तत्काल आपके भीतर अकड़ प्रतिध्वनित होती है। वह कहती है, कौन कहता है-'नहीं है'। संघर्ष 'मैं' का शुरू हो जाता है। सारे विवाद 'मैं' के विवाद हैं। महावीर अनाग्रह वक्तव्य दिये हैंसब वक्तव्य अनाग्रह से भरे हैं। इसलिए पंथ बनाना बहुत मुश्किल हुआ। अगर कोई गौशालक के पास जाता, महावीर के प्रतिद्वंद्वी के पास, तो गौशालक कहता- महावीर गलत हैं, मैं सही हूं। वही आदमी महावीर के पास आता तो महावीर कहते- गौशालक
है। अगर आप भी होते तो आप गोशालक के पीछे जाते कि महावीर के? आप गौशालक के पीछे जाते कि यह आदमी कम से कम निश्चित तो है, साफ तो है, उसे पता तो है। यह महावीर कहता है--- गौशालक भी शायद सही हो सकता है। अभी उनको खुद ही पक्का नहीं है। खुद ही साफ नहीं है। इनके पीछे अपनी नाव क्यों बांधनी और डुबानी! ये कहां जा रहे हैं, शायद जा रहे हैं कि नहीं जा रहे हैं! शायद पहुंचेंगे कि नहीं पहुंचेंगे! ___ इसलिए महावीर के पास अत्यंत बुद्धिमान वर्ग ही आ सका- बुद्धिमान मैं कहता हूं उन व्यक्तियों को, जो सत्य के संबंध में अनाग्रहपूर्ण हैं। जिन्होंने समझा महावीर के साहस को। जिन्होंने देखा कि यह बहुत साहस की बात है, वे ही महावीर के पास आ सके। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है, जो लोग पीछे आते हैं वे सोचकर नहीं आते, वे जन्म की वजह से पीछे आते हैं। वे
89
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org