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________________ उन्हें मिलने के लिए आनेवाले पत्रकारों और उनके शिष्यों को भीतर से क्षीण होता चला गया, जिसके बावजूद वे ओशो कम्यून वीसा देने से इनकार किया गया। तब ओशो नेपाल चले गये। इंटरनेशनल, पूना के गौतम दि बुद्धा आडिटोरियम में 10 अप्रैल लेकिन उन्हें नेपाल में भी अधिक समय तक रुकने की अनुमति 1989 तक प्रतिदिन संध्या दस हजार शिष्यों, खोजियों और नहीं दी गयी। | प्रेमियों की सभा में प्रवचन देते रहे और उन्हें ध्यान में इबाते रहे। ___ फरवरी 1986 में वे विश्व-भ्रमण के लिए निकले जिसकी 17 सितंबर 1989 से गौतम दि बुद्धा आडिटोरियम में शुरुआत उन्होंने ग्रीस से की। लेकिन अमरीका के दबाव के केवल आधे घंटे के लिए आकर ओशो मौन दर्शन-सत्संग के | अंतर्गत 21 देशों ने या तो उन्हें देश से निष्कासित किया या फिर संगीत और मौन में सबको डुबाते रहे। यह बैठक "ओशोव्ह देश में प्रवेश की अनुमति ही नहीं दी। इन तथाकथित स्वतंत्र रोब ब्रदरहुड" कहलाती है। ओशो 16 जनवरी 1990 तक लोकतांत्रिक देशों में ग्रीस, इटली, स्विट्जरलैंड, स्वीडन, ग्रेट प्रतिदिन संध्या सात बजे व्हाइट रोब ब्रदरहुड की सभा में ब्रिटेन, पश्चिम जर्मनी, हालैंड, कनाडा, जमाइका और स्पेन उपस्थित होते रहे। प्रमुख थे। ___17 जनवरी को वे सभा में केवल नमस्कार करके वापस ओशो जुलाई 1986 में बम्बई और जनवरी 1987 में पूना | चले गए। 18 जनवरी को व्हाइट रोब ब्रदरहुड की सांध्य-सभा में अपने आश्रम लौटे, जो अब ओशो कम्यून इंटरनेशनल के में उनके निजी चिकित्सक स्वामी अमृतो ने सूचना दी कि ओशो नाम से जाना जाता है। यहां वे पनः अपनी क्रांतिकारी शैली में के शरीर में इतना दर्द है कि वे हमारे बीच नहीं आ सकते, लेकिन अपने प्रवचनों के आग्नेय बाणों से पंडित-पुरोहितों और वे अपने कमरे में ही सात बजे से हमारे साथ ध्यान में बैठेंगे। राजनेताओं के पाखंडों व मानवता के प्रति उनके षड्यंत्रों का | दूसरे दिन 19 जनवरी 1990 की संध्या-सभा में घोषणा की गई पर्दाफाश करने लगे। कि ओशो अपनी देह छोड़कर पांच बजे अपराह्न को महाप्रयाण इसी बीच भारत सहित सारी दुनिया के बद्धिजीवी वर्गव कर गए हैं। ओशो की इच्छा के अनुरूप उसी संध्या उनका शरीर समाचार माध्यमों ने ओशो के प्रति गैर-पक्षपातपूर्ण व विधायक | गौतम दि बुद्धा आडिटोरियम में दस मिनट के लिए ला कर रखा चिंतन का रुख अपनाया। छोटे-बड़े सभी प्रकार के समाचारपत्रों गया। दस हजार शिष्यों और प्रेमियों ने उनकी आखिरी विदाई का व पत्रिकाओं में अक्सर उनके अमत-वचन अथवा उनके उत्सव संगीत-नत्य, भावातिरेक और मौन में मनाया। फिर संबंध में लेख व समाचार प्रकाशित होने लगे। देश के उनका शरीर दाहक्रिया के लिए ले जाया गया। अधिकांश प्रतिष्ठित संगीतज्ञ, नर्तक, साहित्यकार, कवि व 21 जनवरी 1990 की पूर्वाह्न में उनके अस्थि-फूल का शायर ओशो कम्यून इंटरनेशनल में अक्सर आने लगे। मनुष्य कलश महोत्सवपूर्वक कम्यून में ला कर च्वांग्त्सू हॉल में निर्मित की चिर-आकांक्षित ऊटोपिया का सपना साकार देखकर उन्हें | एक संगमरमर की समाधि में स्थापित किया गया। अपनी ही आंखों पर विश्वास न होता। ओशो की समाधि पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित है : 26 दिसंबर 1988 को ओशो ने अपने नाम के आगे से 'भगवान' संबोधन हटा दिया। 27 फरवरी 1989 को ओशो कम्यून इंटरनेशनल के बुद्ध सभागार में प्रवचन के दौरान उनके OSHO 10,000 शिष्यों व प्रेमियों ने एकमत से अपने प्यारे सद्गुरु को Never Born 'ओशो' नाम से पुकारने का निर्णय लिया। Never Died अक्तूबर 1985 में अमरीका की रीगन सरकार द्वारा ओशो Only Visited this को थेलियम नामक धीमा असर करने वाला जहर दिये जाने के Planet Earth between कारण एवं उनके शरीर को प्राणघातक रेडिएशन से गुजारे जाने Dec 11 1931 - Jan 19 1990 के कारण उनका शरीर तब से निरंतर अस्वस्थ रहने लगा था और Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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