________________
याद घर बुलाने लगी
| दिखाई पड़ती। तुम उनकी पूजा किसी और कारण से करते हो, बहुत मुश्किल से होता है। और जैन मुनि को देख लो। उसने | प्रतिभा के कारण नहीं करते। उनके जीवन में कोई सृजनात्मक | असुंदर होने को अपनी साधना बना रखी है। ऊर्जा नहीं दिखाई पड़ती; न कोई आभामंडल है।
महावीर ने अपने शरीर को सताया हो ऐसा मालूम नहीं होता। तुम्हारी पूजा के कारण और हैं। तुम कहते हो इस आदमी ने सौ शरीर के पार गए होंगे ऐसा तो मालूम होता है, लेकिन शरीर को दिन का उपवास किया इसलिए पूजा करते हैं। अब सौ दिन का सताया हो ऐसा नहीं मालूम होता। और जिसको तुम सताते हो उपवास करने के लिए किसी बुद्धि की तो जरूरत नहीं है। सच उससे पार जा नहीं सकते। जिसको तुम सताते हो उसको सताने तो यह है कि जितना बुद्ध आदमी हो, उतनी आसानी से कर के लिए उसी के पास बने रहना पड़ता है। जरा दूर गए कि | सकता है। जितना जड़बुद्धि हो, जिद्दी हो, दंभी हो, उतनी घबड़ाहट होती है कि कहीं शरीर फिर न लगाम के बाहर निकल आसानी से कर सकता है।
जाए, नियंत्रण के बाहर निकल जाए। बुद्धिमान आदमी तो शरीर की जरूरत को समझेगा, मन की जो आदमी कामवासना दबाएगा वह कामवासना पर ही बैठा जरूरत को समझेगा, बुद्धिपूर्वक जीयेगा, संयम से...यह तो रहेगा। उसी की छाती पर चढ़ा रहेगा। जरा उतरा कि चारों खाने असंयम हुआ। कुछ जड़ हैं, जो खाए चले जा रहे हैं; जो खाने चित्त ! कामवासना उसकी छाती पर बैठ जाएगी। तो वह उतर ही के लिए ही जीते हैं। और कुछ जड़बुद्धि हैं, जो अपने को भूखा नहीं सकता। जिसने क्रोध को दबाया वह क्रोध से इंचभर हट मार रहे हैं। भूखा मारने के लिए ही जीते हैं।
नहीं सकता। क्योंकि हटा कि क्रोध प्रगट हुआ। और ज्वालाएं महावीर की बात समझना। महावीर निर्वाण की परिभाषा कर लपट रही हैं भीतर। तो उन ज्वालाओं को किसी तरह दबाए पड़ा रहे हैं। ऐसा समझो कि कोई मीरा से पूछे कि प्रभु को पाकर तुझे रहता है। क्रोध को दबानेवाला क्रोध के साथ ही खड़ा रहता है। क्या हुआ? तो वह कहे, उमंग उठी, नाच उठा, गीत उठे-पद काम को दबानेवाला काम के साथ ही खड़ा रहता है। धुंघरू बांध मीरा नाची रे। तुम सोचो तो ठीक है, तो नाचना | 'जहां न इंद्रियां हैं न उपसर्ग, न मोह है न विस्मय, न निद्रा है न सीख लें तो प्रभु से मिलन हो जाएगा।
तृष्णा, न भूख, वहीं निर्वाण है।' तो नर्तकियां तो बहुत हैं। नर्तक तो बहुत हैं। उनको कोई प्रभु महावीर यह कह रहे हैं कि जब तुम निर्वाण में पहुंचोगे तो कैसे तो उपलब्ध नहीं हो रहा। नाचने से अगर प्रभु उपलब्ध होता तो पहचानोगे कि निर्वाण आ गया? यह उसकी पहचान बता रहे नर्तकियों को उपलब्ध हो गया होता, नर्तकों को उपलब्ध हो गया हैं। वे कह रहे हैं, वहां तुम न दुख पाओगे न सुख, वहां तुम न होता। कितने तो लोग 'ता-ता थै-थै' कर रहे हैं, कुछ भी तो पीड़ा पाओगे न बाधा, वहां तुम न मरण पाओगे न जन्म-समझ नहीं हो रहा।
लेना आ गया घर। वहां तुम इंद्रियां न पाओगे, न इंद्रियों के मीरा जो कह रही है वह परिभाषा है। मीरा कह रही है, प्रभु को कष्ट, न मोह पाओगे न विस्मय, न निद्रा पाओगे न तृष्णा, न पाने से हृदय खिला, नाच जन्मा, रसधार बही, गंगा चली, घूघर भूख-तो समझ लेना कि आ गया घर। बजे। यह बैलों के पीछे गाड़ी है। तुमने देखा कि अरे! तो फिर जब कोई व्यक्ति ध्यान की गहराइयों में उतरते-उतरते, नाचना तो हम भी सीख ले सकते हैं। नाचना सीखने से प्रभु नहीं उतरते-उतरते आत्मा के भीतर प्रवेश करता है, अचानक पाता है मिलता, प्रभु मिलने से नाच घटता है।
कि यहां न तो शरीर है...इसका यह अर्थ नहीं कि शरीर छूट ऐसा ही महावीर की निर्वाण की परिभाषा को समझना। जैन गया। महावीर निर्वाण को उपलब्ध होने के बाद भी चालीस मुनि कितनी तकलीफ झेल रहा है-अकारण। जड़ता की भर | साल तक शरीर में रहे। चालीस-ब्यालीस साल तक शरीर का सूचना मिलती है। महावीर की प्रतिमा देखी तुमने? और जैन | उपयोग किया; और ऐसा उपयोग किया, जैसा किया जाना मुनि को साथ खड़ा करके देख लो तो तुमको समझ में आ चाहिए। हम तो चालीस जन्मों में ऐसा उपयोग नहीं करते, जाएगा। महावीर की प्रतिमा का रूप ही कछ और है, रंग ही उन्होंने चालीस वर्ष में कर लिया। उनके कारण कल्याण की धार कुछ और है। कहते हैं, महावीर जैसा सुंदर आदमी पृथ्वी पर बही। श्रेयस पृथ्वी पर उतरा। खूब फूल खिले लोगों की आत्मा
639
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org