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________________ जिन सूत्र भाग : 2 ही गया है वह अपनी पात्रता से ज्यादा है। ऐसे ही पात्र के ऊपर या अंडा पहले। दो में से कुछ एक ही पहले हो सकता है। से बहा जा रहा है; बाढ़ आ गई है। | लेकिन तुमने कभी खयाल किया? दोनों एक-दूसरे के पहले यहां तुम इन प्रश्नों में भी दखोगे। अलग-अलग लोग, | खड़े हैं। अलग-अलग उनकी लहरें, अलग उनकी तरंगें। मुल्ला नसरुद्दीन दो स्त्रियों के प्रेम में था। अलग-अलग अब सरोज पूछती है—प्रश्न है ही नहीं इसमें। वह कहती है | मिलता था तब तो ठीक था। एक-दूसरे के सौंदर्य की बात तुम ही पिता, तुम ही माता, तुम ही बंधु, तुम ही सखा। तुम ही करता, खूब चर्चा करता। दोनों स्त्रियों की भी आपस में सब कुछ। तुम ही देवताओं के देवता। धीरे-धीरे पहचान हो गई। उन्होंने कहा कि यह आदमी धोखा दे भक्त के पास एक अहोभाव है। भक्त खोज नहीं रहा है, भक्त | रहा है, इसको फांसना पड़ेगा। को मिल गया है। भक्त कहता है जीवन बरस ही गया है। एक दिन नौका-विहार के लिए दोनों ने इकट्ठा मुल्ला नसरुद्दीन उत्सव चल ही रहा है। जो मिलना था वह मिल ही गया है। को अपने साथ ले लिया। नदी पर बैठकर, पूर्णिमा की रात, बीच परमात्मा ने उसे दे ही दिया है। मझधार में मुल्ला से कहा कि नसरुद्दीन, अब कहो कौन सुंदर ध्यानी तो खोज रहा है कि मिलेगा तब आनंदित होगा। भक्त है? अब मुल्ला बहुत घबड़ाया। अकेले में एक स्त्री को कह दो आनंदित है। ध्यानी खोजेगा तो आनंदित होगा, भक्त आनंदित कि तुम दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री हो; कोई हर्जा नहीं। सभी है इसलिए खोज लेगा। ध्यानी का साधन पहले है, साध्य अंत | कहते हैं। कहना ही पड़ता है। फिर इससे कुछ अड़चन नहीं में। भक्त का साध्य पहले है, साधना अंतिम। | आती। दूसरी स्त्री को फिर अकेले में कह दो। इससे कोई इसलिए भक्त और ध्यानी की भाषा में बड़े जमीन-आसमान तार्किक झंझट नहीं आती। अलग-अलग समय में के अंतर हैं। वे एकदम उल्टी बातें बोलते हैं। इसलिए तो ज्ञानी | अलग-अलग स्थान में दोनों वक्तव्य ठीक मालूम होते हैं। कहते हैं कबीर को–उलटबांसी। उल्टी बांसुरी बजा रहे हो। लेकिन दो स्त्रियां...! और कबीर भी कहते हैं, 'एक अचंभा मैंने देखा नदिया लागी और मुल्ला थोड़ा घबड़ाया क्योंकि दोनों नाराज मालूम होती आग।' नदी में आग लगी देखी। हैं। नदी का मामला। मझधार। धक्का दे दें। अब यह कोई सोच-विचारवाला आदमी कहेगा कि दिमाग | तो उसने कहा, यह भी कोई बात है? अरे तुम एक-दूसरे से खराब हो गया है। कबीर यही कह रहे हैं कि मैंने साध्य को पहले सुंदर हो। एक-दूसरे से ज्यादा सुंदर हो। एक-दूसरे से देखा, साधन को पीछे। मंजिल पहले पाई, मार्ग पीछे। मिलन | बढ़-चढ़कर सुंदर हो। परमात्मा से पहले हो गया तब बाद में समझ आयी कि कैसे अब एक दूसरे से बढ़-चढ़कर संदर हो, इसका मतलब क्या मिलें। नदिया लागी आग, एक अचंभा मैंने देखा। होता है? लेकिन शायद यही ज्यादा सच है। यह वक्तव्य बेबूझ लेकिन गणित से, तर्क से, विचार से चलनेवाला आदमी हो जाता है लेकिन ज्यादा सच है। कहेगा, यह तो उलटबांसी हो गई। यह तो उल्टी बात हो गई। | अंडा मुर्गी के पहले, मुर्गी अंडे के पहले। दोनों एक-दूसरे के दोनों की भाषाएं निश्चित उल्टी हैं। लेकिन तुम ऐसा समझो पहले। दोनों असल में दो नहीं हैं। मुर्गी अंडे का ही एक रूप है। कि कोई कहता है मुर्गी से अंडा होता है, और कोई कहता है अंडे | अंडा मुर्गी का ही एक रूप है। मुर्गी अंडे का ही एक ढंग है और से मुर्गी होती है। क्या ये सच में उल्टी बातें हैं? ये दोनों ही सच | अंडे पैदा करने का। अंडा मुर्गी का ही एक ढंग है और मुर्गी पैदा हैं। लेकिन इतनी हिम्मत चाहिए समझने की कि दोनों एक साथ करने का। ये दोनों दो हैं ऐसा सोचने से गड़बड़ खड़ी हो जाती सच हैं। बड़ा कठिन मालूम होता है क्योंकि हम तो संकीर्णता से है। ये संयुक्त घटनाएं हैं।। सोचते हैं। हम कहते हैं. मर्गी पहले तो अंडा बाद में। अब कोई| इसे तम ऐसा समझो कि एक ही सिक्के के दो पहल हैं। कौन कहता है अंडा पहले, तो हमें झगड़ा खड़ा हो जाता है। हम कहते आगे, कौन पीछे? युगपत हैं, साथ-साथ हैं। साधन और हैं, ये दोनों बातें तो एक साथ नहीं हो सकतीं। या तो मुर्गी पहले, साध्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। 624 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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