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________________ 622 जिन सूत्र भाग: 2 खतरा था। संकीर्णता पैदा होती थी। सांप्रदायिकता पैदा होती थी, कि मैं ही ठीक हूं, और सब गलत हैं । यही मार्ग ठीक है, और सब मार्ग गलत हैं। तो लाभ था, हानि थी । और लाभ से हानि ज्यादा बड़ी सिद्ध हुई। लाभ तो बहुत थोड़े लोगों को हुआ, हानि करोड़ों को हुई सारी दुनिया सांप्रदायिक हो गई। सारी दुनिया में यह मतांधता फैल गई कि हम ठीक और बाकी सब गलत । । जैन से पूछो, वह कहता है हमारा गुरु गुरु, बाकी सब कुगुरु । हमारा शास्त्र शास्त्र, बाकी सब कुशास्त्र । मुसलमान से पूछो, हिंदू से पूछो, ईसाई से पूछो। सब संकीर्ण हो गए, सांप्रदायिक हो गए। धर्म की तो हत्या हो गई। सुविधा तो मिली होगी थोड़े-से लोगों को, सरल - चित्त लोगों को- जिन्होंने इतना ही जाना कि हमारे लिए क्या ठीक है, हमें मिल गया और चुपचाप उस पर चल पड़े। सौ में से एक को तो सुविधा मिली होगी, निन्यानबे तो सिर्फ संकीर्ण हो गए। मैं ठीक उल्टा प्रयोग कर रहा हूं, जैसा कभी नहीं हुआ है। मैं यह फिकर कर रहा हूं कि चाहे सुविधा थोड़ी कम हो, संकीर्णता न हो। मानना मेरा ऐसा है कि जो एक सरल आदमी पुरानी संकीर्ण सीमाओं से जा सका, वह सरल आदमी मेरे पास भी जा सकेगा। उसे दुविधा पैदा नहीं होगी यहां भी। क्योंकि सरल आदमी मुझे देखेगा । मैं क्या कहता हूं इसकी बहुत फिकर ही नहीं करता । सरल आदमी तो मुझ पर भरोसा करता है । वह कहता है वे जो कहते होंगे, ठीक कहते होंगे। उसे कोई दुविधा पैदा नहीं होती। वह मेरे विरोधाभास में भी मुझे ही देखता है। दोनों में मुझे ही देखता है। और सरल आदमी तो अपने काम की बात चुन लेता है और चल पड़ता है। जटिल आदमियों के साथ झंझट है। लोभियों के साथ झंझट है। उन लोभियों को दुविधा पैदा होगी क्योंकि वे चाहते हैं, ध्यान भी झपट लें, प्रेम भी झपट लें। भक्ति पर भी कब्जा कर लें, ध्यान पर भी कब्जा कर लें। तपस्वी भी हो जाएं, जीवन का रस भी न खोए। त्याग का भी मजा ले लें, अहंकार का भी मजा ले लें और परमात्मा की पूजा का भी रस आ जाए। लोभी! उसको तकलीफ होगी। सरल - चित को तो मेरे पास कोई तकलीफ नहीं है। उसको कभी कोई तकलीफ नहीं है, किसी के पास कोई तकलीफ नहीं है। सरल - चित्त आदमी तो Jain Education International 2010_03 अपने मतलब की बात खोज लेता, चल पड़ता। तुम जाते हो नदी के किनारे । प्यासा आदमी तो अपने चुल्लू में पानी भर लेता है। पूरे नदी की थोड़े ही फिक्र करता है कि अब इसको घर ले जाएं, बांधकर रखें, क्या करें, क्या न करें। वह धन्यवाद देता है नदी को कि ठीक। अपनी चुल्लू भर ली, अपनी प्यास बुझा ली, बात खतम हो गई। हां, अगर तुम लोभी हो तो तुम प्यास तो भूल ही जाओगे, तुम सोचोगे इस नदी पर कब्जा कैसे किया जाए। यह पूरी नदी मेरे तिजोड़ी में कैसे बंद हो जाए। इस पूरी नदी का मैं मालिक कैसे हो जाऊं। तो तुम अड़चन में पड़ोगे | सरल तो पहले भी अड़चन में नहीं पड़ा, अब भी नहीं पड़ेगा। मैं जो प्रयोग कर रहा हूं वह नया है । मैं चाहता हूं कि संसार में अब संकीर्णता न रहे, सांप्रदायिकता न रहे। संप्रदाय के नाम पर बहुत हानि हो चुकी । आदमी लड़े और कटे और मरे । आदमी निर्मित नहीं हुआ, विनष्ट हुआ। अब संप्रदाय नहीं चाहिए। अब तो दुनिया में धर्म नहीं चाहिए, धार्मिकता चाहिए । मंदिर-मस्जिद नहीं चाहिए, धर्म-भावना चाहिए। कुरान- गीता छूटें, छूटें; सदभाव न छूटे। जैन, हिंदू, मुसलमान नहीं चाहिए। अब तो भले, सीधे, सरल-चित्त लोग चाहिए। क्योंकि जैन, हिंदू, मुसलमान तो हजारों वर्षों से जमीन पर हैं। और जमीन रोज नर्क होती चली गई। इनके होने से कुछ लाभ नहीं हुआ। ये तो अब विदा लें। इनको तो हम अलविदा कहें। अब तो खाली आदमी, सूना आदमी, स्वस्थ - सरल आदमी चाहिए। इसलिए मैं सारे धर्मों की बात कर रहा हूं। इसमें जो सरल हैं उनको तो बड़ा लाभ होगा, जो जटिल हैं उनको बड़ी दु होगी। लेकिन मेरे देखे, मेरे लेखे अगर सौ आदमी पुरानी दुनिया में चलते थे धर्म के मार्ग पर तो निन्यानबे संकीर्ण हो गए, एक सरल पहुंचा। मैं तुमसे कहता हूं, वह एक सरल तो मेरे पास भी पहुंच जाएगा और निन्यानबे संकीर्ण न हो पाएंगे। और अगर निन्यानबे संकीर्ण न हों तो उनके पहुंचने की संभावना भी बढ़ गई। मैं तुम्हें विराट करना चाहता हूं। तुम्हें पूरी दृष्टि देना चाहता हूं। तुम सब देख लो। फिर तुम्हें जो रुचिकर लगे उस पर चल पड़ो। कठिनाई तो तब होगी जब तुम सभी रास्तों पर चलने की कोशिश करने लगोगे। तब अड़चन होगी । लेकिन यह तो पागलपन है। तुम केमिस्ट की दुकान पर जाते For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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