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________________ जिन सूत्र भाग: 2 कर लेना मध्य में आने को। जैसी जब जरूरत हो, वैसा उपयोग यहां पना में आता है तो एकदम पक्का भाव हो जाता है। लेकिन कर लेना। जैसे ही अपने गांव की याद आती है, फिर घबड़ा जाता हूं कि असली बात न भूले कि सत्य को पाना है, कि जागना है, कि गेरुए वस्त्र, माला! गांव में लोग पागल समझेंगे। तो गांव के जो है, उसे जानना है। कारण नहीं ले पा रहा हूं। तो मैंने उनसे कहा, गांव का इससे क्या लेना-देना? पागल न दूसरा प्रश्नः जीसस अपने शिष्यों से कहते थे कि यदि मेरे समझे जाओ, यह है असली भय। गांव क्या करेगा? अगर साथ चलने में के में कोई तुम्हें रोके तो तुम उसे मार डालो और मेरे पागल समझे जाने को राजी हो तो गांव क्या करेगा? अगर साथ चल पड़ो। प्रेम के पुजारी जीसस की ऐसी आज्ञा? आप | पागल हो ही जाओगे तो गांव क्या करेगा? तो हमें ऐसी आज्ञा नहीं देते। लेकिन यदि ऐसी समस्या हमारे गांव क्या कर सकता है! लेकिन भीतर भाव है कि गांव में जो सामने भी आए तो आप क्या आज्ञा देंगे-वही, जो जीसस ने प्रतिष्ठा है, वह न मिट जाए। तो प्रतिष्ठा रोक रही है, गांव तो दी? | नहीं रोक रहा। सीधी बातों को सीधा न करके हम उलझाते हैं। प्रतिष्ठा का मोह रोक रहा है। गांव तो नहीं रोक रहा। प्रतिष्ठा के मार डालो। मोह को मार डालो। लेकिन तुम समझे नहीं जीसस का अर्थ, इसलिए अड़चन हो जीसस का मतलब इतना ही है। जीसस अपने शिष्यों से कहते गई। बाहर थोड़े ही कोई तुम्हें रोक सकता है, रोकनेवाले भीतर थे कि यदि मेरे साथ चलने में कोई तुम्हें रोके तो उसे मार डालो | हैं। पत्नी थोड़े ही तुम्हें रोक सकती है, अगर तुम जा रहे हो सत्य और मेरे साथ चल पड़ो। की तरफ। बेचारी पत्नी क्या रोकेगी! मरोगे तो कैसे रोकेगी? हजार बाधाएं आती हैं जीसस जैसे व्यक्ति के साथ चलने में। जब मरने में नहीं रोक सकती तो संन्यास में कैसे रोकेगी? जो वे बाधाएं बाहर नहीं हैं, वे तुम्हारे भीतर हैं। होना है, अगर होना है तो पत्नी कैसे रोकेगी? अगर पत्नी भी | एक बहुत बड़ा धनपति, और बहुत प्रतिष्ठित विद्वान और रोक पाती है तो कहीं तुम्हारा ही भीतर डांवाडोल है। पत्नी का जेरूसलम के विश्वविद्यालय का अध्यापक निकोदेमस जीसस तुम बहाना लेते हो। | को मिलना चाहता था। लेकिन दिन में मिलने जाने से डरता जीसस कहते हैं कि उस डांवाडोलपन को मार डालो। कोई था—दिन में। क्योंकि लोगों को पता चल जाए तो वह प्रतिष्ठित जीसस पत्नी को मार डालने को थोड़े ही कहेंगे। इतनी अकल, आदमी था। पांच पंचों में एक था जेरूसलम के। लोग क्या जितनी तुममें है, इतनी तो उनमें भी रही होगी। कम से कम इतना कहेंगे? वह बड़ा पंडित था। उसके वचन शास्त्रों की तरह तो भरोसा करो कि इतनी अकल उनमें भी रही होगी। | समझे जाते थे। लोग क्या कहेंगे कि तुम भी पूछने गए? तो तुम्हें भीतर हैं रोकनेवाली चीजें। राग है, मोह है, लोभ है, क्रोध है। भी पता नहीं है अभी? शत्र भीतर है, बाहर नहीं। बाहर तो सिर्फ प्रक्षेपण होता है। उम्र भी उसकी ज्यादा थी। जीसस तो अभी जवान थे-कोई जब तुम कहते हो, फलां आदमी मेरा शत्रु है, मेरे राह में, मार्ग तीस साल की, इकतीस साल की उम्र थी। में रोड़े डाल रहा है तो वह आदमी सिर्फ पर्दा है, शत्रुता तुम्हारे वह उम्र में भी बड़ा था, प्रतिष्ठा में भी बड़ा था, धन में भी बड़ा भीतर है, जो तुम उसके ऊपर आरोपित कर रहे हो। शत्रुता को | था। नाम भी उसका बड़ा था। सारा देश उसे जानता था। हजारों मार डालो, फिर देखो कौन शत्रु! और मित्रता को मार डालो, उसके शिष्य थे, विद्यार्थी थे। वह कैसे इस आवारा आदमी के | फिर देखो कौन मित्र है! राग को मिटा दो फिर देखो, कौन | पास चला जाए दिन में? और वहां भीड़ भी आवाराओं की लगी अपना, कौन परायाअहंकार को छोड़ दो, फिर देखो कौन हुई थी। वे क्या कहेंगे? लोग हंसेंगे। गांवभर में भद्द हो | रोकता है। कैसे रोक सकता है? | जाएगी। प्रतिष्ठा टूट जाएगी। एक मित्र संन्यास लेने आए थे। वे कहते हैं, लेना तो है। जब | तो एक दिन आधी रात अंधेरे में, जब सारे लोग जा चुके थे तब 618 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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