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________________ 616 जिन सूत्र भाग: 2 नहीं कह सकता कि तुमने मेरे सत्य को बिगाड़ा | क्योंकि कहा, कि मेरा सत्य कहां रहा? तुम्हारा हो गया। सुन लिया, तुम्हारे कान में पड़ गया, तुम्हारा हो गया, अब तुम जो चाहो, सो करो। जो अर्थ निकालना हो, निकालो। जैसा अर्थ, जिस दिशा में ले जाना हो, ले जाओ। तुम मालिक हो गए। तुम्हें दिया, तुमसे बोला कि मेरी मालकियत समाप्त हो गई। अब मैं तुम पर कोई मुकदमा नहीं चला सकता। कहा? अब मुल्ला नसरुद्दीन नेता के पक्ष में गवाही देने आया था। वह बोला, इसका बिलकुल पक्का सबूत है। यद्यपि वहां सैकड़ों लोग आ-जा रहे थे, लेकिन इसने नेताजी को ही उल्लू का पट्ठा कहा । | तुम सुनोगे तुम्हारे ही ढंग से। तुम उसका उपयोग भी करोगे तुम्हारे ही ढंग से। तुम उसमें से कुछ चुन लोगे, कुछ छोड़ दोगे। मैंन सुना है, कुरान में एक वचन आता कि जो शराब पीएगा वह नर्क में सड़ेगा। एक मुसलमान शराब पीता था। उसके धर्मगुरु ने उससे कहा कि भाई, मैंने सुना है तुम कुरान भी पढ़ते हो। कभी-कभी तुम्हारे द्वार से निकलता हूं तो तुम्हारी आयतें सुनकर मैं भी मस्त हो जाता हूं। शराबी था, मस्ती से गाता होगा। लेकिन तुम कुरान में इतनी सी बात नहीं समझ पाए कि लिखा है कि जो शराब पीएगा वह नर्क में सड़ेगा ? मुल्ला नसरुद्दीन पर एक मुकदमा चला। गांव के एक नेताजी को किसी आदमी ने उल्लू का पट्ठा कह दिया। अब ऐसे तो सभी नेता उल्लू के पट्ठे होते हैं। नहीं तो नेता क्यों हों ? आदमी अपने को तो सम्हाल ले! आदमी खुद तो चल ले ! आदमी सारी दुनिया को बदलने चल पड़ता है। सारी दुनिया को ठीक करने चल पड़ता है। नेता बहुत नाराज हुआ। उसने मानहानि का मुकदमा चला दिया । मजिस्ट्रेट ने पूछा मुल्ला को — मुल्ला गवाह था कि जिस होटल में यह घटना घटी, वहां पचासों लोग आ-जा रहे थे। और जिस आदमी ने नेताजी को उल्लू का पट्ठा कहा, उसने नाम लेकर भी नहीं कहा; सिर्फ उल्लू का पट्ठा कहा। तो इसका क्या सबूत है कि उसने नेताजी को ही कहा, किसी और को नहीं मजिस्ट्रेट ने कहा, इसका प्रमाण क्या है? मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, क्योंकि वहां और दूसरा पट्टा मौजूद ही नहीं था । उस मुसलमान ने कहा, समझता तो भला हूं, लेकिन एक-एक कदम चल रहा हूं। अभी आधे वाक्य तक पहुंचा हूं— 'जो शराब पीएगा।' अभी यहीं तक पहुंचा हूं। अपनी-अपनी सीमा, सामर्थ्य! अभी आधे वाक्य पर नहीं पहुंचा हूं। धीरे-धीरे चल रहा हूं, कभी पहुंच जाऊंगा। तुम अपने मतलब से चुन लोगे। तुम जो चुनना चाहते हो वही करोगे तो वह बिलकुल ही रूपांतरित हो जाएगा। चुन लोगे 1 Jain Education International 2010_03 अब करोगे क्या ? पक्ष में गवाही देने आए हैं! तुम्हारे मतलब तुम्हारे हैं। तुम पक्ष में खड़े होओ कि विपक्ष में; बहुत फर्क नहीं पड़ता । तुम गवाही कहां से दे रहे हो, बहुत फर्क नहीं पड़ता । तुम तो तुम ही हो । तुम्हारे पास आते-आते किरणें तक मैली हो जाती हैं। तुम्हारे हाथ आते-आते सोना भी कचरा हो जाता है। तुम्हारे पास पहुंचते-पहुंचते सभी सत्य असत्य हो जाते हैं। कोई उल्लू इसलिए तो लाओत्सु कहता है, 'सत्य को कहना ही मत; क्योंकि कहा कि असत्य हुआ।' कहा कि असत्य हुआ। किसी ने सुना कि असत्य हुआ । क्योंकि सुननेवाले को शब्द पहुंचेगा । शब्द को अर्थ तो वही चढ़ाएगा । अर्थ की खोल तो वही पहनाएगा। मैं तो नग्न सत्य तुम्हें दे दूंगा । वस्त्र तो तुम पहनाओगे। वे वस्त्र तुम्हारे होंगे। जब सजा-संवारकर तुम सत्य को खड़ा इसलिए दुनिया में प्रतियुग में दृष्टियों को बदलना पड़ता है। कभी ध्यान की धारा प्रवाहमान होती, कभी प्रीति की धारा प्रवाहमान होती । दोनों की जरूरत है । वे दोनों आवश्यक हैं। जब एक अति पर चली जाती है तो दूसरी धारा उसे खींचकर फिर संतुलन पर लाती है। ऐसा नहीं है कि वह संतुलन सदा रहेगा, लेकिन संतुलन के थोड़े-से क्षणों में कुछ लोग मुक्त हो जाएंगे। फिर असंतुलन हो जाएगा, फिर कोई खींचकर संतुलन को पैदा करेगा। भक्ति और ध्यान विरोधी नहीं हैं, परिपूरक हैं। जब एक अति जाती है तो दूसरा उसे सुधार लेता है। हो तुमने कभी रस्सी पर चलनेवाले बाजीगर को देखा ? जब नट रस्सी पर चलता है तो हाथ में एक डंडा रखता है। रस्सी पर चलना खतरनाक काम है— इतना ही खतरनाक जैसा जिंदगी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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