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________________ जिन सूत्र भागः2 है। राग बंधन है। जो जानते हैं वे तो यह भी न कहेंगे कि मेरा है। जैसे-जैसे मेरे का भाव गिरेगा वैसे ही वैसे तुम्हें मैं का शरीर। वे तो कहेंगे, शरीर पृथ्वी का है। जल, वायु, आकाश अनुभव होगा कि मैं कौन हूं। तुम्हें अभी इसका कुछ भी पता का है, मेरा क्या? मैं नहीं था, तब भी था। मैं जब नहीं रहूंगा, नहीं। तुम्हें बिलकुल पता है कि मेरे कौन हैं। मैं कौन हूं, इसका तब भी होगा। मेरा क्या है? कोई भी पता नहीं। वक्त की समी-ए-मुसलसल कारगर होती गयी तुमसे अगर कोई पूछे आप कौन हैं, तो तुम बताते हो मैं फला जिंदगी लहज़ा-ब-लहज़ा मुख्तसर होती गयी का बेटा हूं। यह भी कोई बात हुई! वह पूछता है, आप कौन हैं, सांस के पर्दो में बजता ही रहा साजे-हयात | आप पिता की बता रहे हैं। वह पूछता है, आप कौन हैं, आप मौत के कदमों की आहट तेजतर होती गयी कहते हैं, मैं डाक्टर हूं! डाक्टरी आपका धंधा होगी, आप यह शरीर बना रहेगा, यह श्वास भी चलती रहेगी, तुम जीवन | डाक्टर नहीं हो सकते। वह पूछता है, आप कौन हैं, आप कहते के भ्रम से भी भरे रहोगे और मौत रोज करीब आयी चली जाती हैं, मैं ब्राह्मण हूं, हिंदू हूं, मुसलमान हूं, ईसाई हूं, जैन हूं। यह आपकी पैदाइश का संयोग होगा, आप नहीं। कुछ अपनी कहो! सांस के पर्यों में बजता ही रहा साजे-हयात मुश्किल हो जाएगी। क्योंकि हमें तो कुछ पता ही नहीं। जिंदगी का संगीत बजता ही रहा सांसों में। और मौत? हम तो जब भी 'मैं' की कोई परिभाषा करते हैं, तो मेरे से मौत के कदमों की आहट तेजतर होती गयी करते हैं। मेरे का हमें पता है। मैं का हमें कोई पता नहीं। और तुम्हारी श्वास भी तुम्हारी नहीं। तुम्हारी देह भी तुम्हारी नहीं। जिसे मैं का ही पता नहीं, उसके मेरे का क्या भरोसा! जिसे जैसे-जैसे गहरे जाओगे, वैसे-वैसे पाओगे मेरा कुछ भी नहीं, | अपना ही पता नहीं, उसे और क्या पता होगा! यह अपना ही मेरे अतिरिक्त मेरा कुछ भी नहीं। मन भी मेरा नहीं है। वह भी पता नहीं जो कि प्राथमिक होना चाहिए, तो बाकी तो सब द्वितीय बाहर की तरंगों से आता है। देह भी मेरी नहीं, वह भी बाहर से है। पहली ही बुनियाद भ्रांत हो गयी, तो सारा भवन भ्रांत हो बनती है और बाहर ही खो जाएगी। आखिर में बच रहता है जाता है। महावीर कहते हैं, मेरे को छोड़ते-छोड़ते जब मैं ही साक्षीभाव, बस वही मेरा है। बचता है-शद्ध मैं—उसको ही महावीर ने आत्मा कहा है। राग में बहोगे, तो शरीर मेरा है; शरीर से जो जुड़े हैं, जिनसे शुद्धतम मैं। जहां मेरे की कोई रेखा भी नहीं रही। मेरे की कोई रक्त का संबंध है, वे मेरे हैं; जिनसे प्रेम का, वासना का संबंध कालिख न रही। कोई बादल न रहा आकाश में। नीला, खाली, है, वे मेरे हैं; जिनसे काम-धंधे का संबंध है, वे भी मेरे हैं-मेरा कोरा, आकाश! सूरज तब बड़ा प्रगट होकर, प्रखर होकर स्पष्ट नौकर, मेरा मालिक; जिनसे किसी और तरह के संबंध हैं—मेरा | होता है। डाक्टर, मेरा इंजीनियर; जैसे-जैसे तुम इस 'मेरे' को बढ़ाते और जिससे श्रेय में अनुरक्त होता है।' चले जाते हो, यह बड़ा होता चला जाता है। यह सारा संसार जेण सेए सु रज्जदि। तुम्हें 'मेरा' मालूम पड़ सकता है। जितना तुम्हारा ‘मेरे' का | दुनिया में दो हैं यात्राएं-प्रेय और श्रेय। साधारणतः जो फैलाव होगा, उतने ही गहन अंधकार में तुम उतरते जाओगे। अज्ञान में डूबा है, वह प्रेय में अनुरक्त होता है। वह कहता है, दीया उतना ही अंधेरे में खो जाएगा। ऐसा समझो, बादल है जो प्रिय है, वही मैं करूंगा। जिसको ज्ञान की पहली किरण 'मेरे' का; सूरज है 'साक्षीभाव' का। जितना मेरा और मेरे के उतरने लगी, वह कहता है, जो श्रेय है वही करूंगा।क्या फर्क बादल तुम्हारे चारों तरफ होंगे, सूरज उतना ही ओट में हो | है? प्रेय तो होता है मन का विषय और श्रेय है चैतन्य का जाएगा। हटाओ बादलों को। ज्ञान की कसौटी महावीर कहते हैं | विषय। जो ठीक है, वही करूंगा। जो सत्य है, वही करूंगा। यही है-'जेण रागा विरज्जेज्ज।' जिससे राग गिरने लगे। जो शुभ है, वही करूंगा। श्रेयस ही मेरा जीवन होगा। यही जिससे मेरे की भ्रांति टूटने लगे। साधुता का लक्षण है। अब यह बड़ा विरोधाभासी वक्तव्य है, लेकिन परम मूल्य का | साधु का अर्थ नहीं कि भाग जाओ घर से। साधु का अर्थ है, 52 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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