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________________ जिन सत्र भाग: 2 | उसे सिर का पता ही नहीं चलता। शरीर में कोई पीड़ा हो तो पता बाहर। मोक्ष से तो सिर्फ इतना ही पता चलता है कि हम सारे चलता है। बच्चों को शरीर का पता नहीं चलता, सिर्फ बूढ़ों को बंधन से मुक्त। हमारा होना सीमा के पार, मर्यादा के पार। सारी पता चलता है। जिस दिन शरीर का पता चलने लगे, समझना जंजीरें छूट गईं, कारागृह गिर गया और हम मुक्त गगन में उड़ बुढ़ापा करीब आ रहा है। शरीर के पता चलने का अर्थ है कि चले। उस अनंत में खो चले, विसर्जित हो चले। कुछ जराजीर्ण होने लगा। अनंत-अनंत जन्मों की अज्ञानपूर्ण चेष्टा भी वहां नहीं ले जा हमारे पास एक बड़ा बहुमूल्य शब्द है-वेदना। वेदना शब्द सकती, और ज्ञानपूर्ण एक श्वास वहां ले जा सकती है। इसलिए के दो अर्थ हैं। एक तो अर्थ है-ज्ञान। वेद भी उसी से असली सवाल जागने का, जाग्रत होने का है। बना—विद से। वेदना का अर्थ है, ज्ञान। और दूसरा अर्थ है, महावीर की सारी चिंतना को एक शब्द में निचोड़कर रखा जा दुख। बड़ी अजीब-सी बात है। इस एक शब्द के दो अर्थः ज्ञान सकता है—उनके सारे विज्ञान को-और वह शब्द है, और दुख। मगर बड़ी सार्थक बात है। दुख का ही पता चलता जागरूकता, अवेयरनेस, अप्रमत्त हो जाना। है। दुख का ही ज्ञान होता है। आनंद का तो पता ही नहीं चल यह बड़ा अनूठा धर्म है। यह सीधा विज्ञान का धर्म है। इसमें सकता। आनंद तो लापता है। जब आनंद घटता है तो उसके मंदिर की जरूरत नहीं, मूर्ति की जरूरत नहीं, पूजा-अर्चना की विपरीत तो कुछ भी नहीं बचता इसलिए पता कैसे चलेगा? | जरूरत नहीं, क्रिया-कांड की जरूरत नहीं, पंडित-पुरोहित की महावीर कहते हैं, वहां तो रोशनी भी नहीं रह जाती। या इतनी जरूरत नहीं, यज्ञ-हवन की जरूरत नहीं। इसमें कोई रोशनी हो जाती है, रोशनी ही रोशनी हो जाती है, कि उसे किन | साधन-सामग्री की जरूरत नहीं। कुछ भी जरूरत नहीं। इसमें शब्दों में कहें? इसलिए महावीर ने सच्चिदानंद शब्द का भी | तुम काफी हो। बस तुम ही प्रयोगशाल हो। प्रयोग नहीं किया। उपनिषद कहते हैं : सच्चिदानंद। महावीर | तुम्हारे भीतर सब मौजूद है। वह भी मौजूद है जिसको जगाना उसका भी प्रयोग नहीं करते। वे कहते हैं, असत रहा नहीं तो सत | है। बस, थोड़ा अपने को हिलाना-डुलाना है। अभी तुम किसको कहें? अचित रहा नहीं तो चित किसको कहें? दुख | गांठ-लगे रूमाल हो, बस जरा गांठ को खोल लेनी है। जो तुम्हें रहा नहीं तो आनंद किसको कहें? होना है वह तुम हो; थोड़ी-सी बाधाएं हैं, उनको गिरा देना है। इसलिए महावीर ने और एक छलांग ली–सच्चिदानंद के पार। कुछ है नहीं कहने को वहां, लेकिन चल सकते हो, पहुंच आज इतना ही। सकते हो। | इस अज्ञात पर जाने की जिनमें हिम्मत है...यह अज्ञात है। इसे अगर तुमने कहा कि पहले सिद्ध हो जाए तो हम चलेंगे जरूर, लेकिन सिद्ध तो हो जाए! तो तुम कभी जा ही न सकोगे क्योंकि यह कुछ बात सिद्ध होनेवाली नहीं है। तुम जाओगे तो सिद्ध होगी। तुम्हारे अनुभव से सिद्ध होगी। तो महावीर कहते हैं, ज्ञान की घटना ही...। और उस ज्ञान की घटना की तरफ जाना हो तो त्रिगुप्ति-मन, वचन, काया-तीनों के व्यापार में जागरण को सम्हालना। ज्ञान की अंतिम आत्यंतिक दशा का नाम मोक्ष। जिसको हिंदू ब्रह्म कहते हैं, उसको महावीर मोक्ष कहते हैं। और निश्चित महावीर का शब्द ज्यादा महत्वपूर्ण है। क्योंकि ब्रह्म से ऐसा लगता है, कहीं कोई बाहर। ईश्वर से ऐसा लगता है, कहीं कोई 6081 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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