SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 608
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सूत्र भाग : 2 जल्दी मत करना। क्योंकि डर यह है कि कहीं तुम खींचने-तानने तक न भरो तो सूख भी सकता है। क्योंकि जब पानी कोई भरता में गांठ को और छोटा न कर लो। ही नहीं कुएं में तो झरना धीरे-धीरे अवरुद्ध हो जाता है। धूल जम और मैं ऐसा ही देखता हूं। यही हुआ है, हो रहा है। आदमी जाती है। कंकड़-पत्थर बैठ जाते हैं, मिट्टी बैठ जाती है। झरना क्रोध को छोड़ना चाहता है। और इसको बिना समझे कि क्रोध धीरे-धीरे मुंद जाता है। झरने का काम ही नहीं रह जाता। तुम की गांठ लगी कैसे, खींचतान में पड़ जाता है। क्रोध की गांठ एक बाल्टी पानी निकालते हो, एक बाल्टी पानी झरने को कुएं में और छोटी हो जाती है। संसारी में क्रोध की गांठ थोड़ी | भरना पड़ता है। तो झरना चलता रहता है। जो झरे, वही झरना। फुसली-फुसली है, जल्दी खुल सकती है। त्यागी में बहुत जब झरे ही न, तो झरना बंद हो जाता है। मुश्किल है। गृहस्थ में इतनी उलझी नहीं है, जितनी संन्यासी में | अगर वर्षों तक कुएं से पानी न भरा जाए तो संभव है कुआं उलझ जाती है। घर में जो बैठा है, इसकी बड़ी मोटी-मोटी गांठ सूख जाए। लेकिन उलीचनेवाला अगर झरने बंद न करे, तब तो है। वह जो मुनि होकर मंदिर में बैठ गया है, उसकी बड़ी सूक्ष्म कुआं कभी नहीं सूखेगा। क्योंकि कुएं के पीछे सागर छिपा है, गांठ है। उसने खूब खींच ली हैं। हां, सूक्ष्म होने में एक लाभ जहां से झरने भागे चले आ रहे हैं। इधर तुम उलीचते हो, झरनों मालूम पड़ता है-लाभ है नहीं-वह यही मालूम पड़ता है कि को और गति मिल जाती है। वे और तेजी से भागे चले आते हैं। गांठ अगर बहुत सूक्ष्म हो जाए तो किसी को दिखाई नहीं पड़ती। उनको और काम मिल जाता है। मगर गांठ से छुटकारा थोड़े ही होता है! दिखाई नहीं पड़ने से इसलिए जिस व्यक्ति ने ब्रह्मचर्य को थोपने की कोशिश की छुटकारा तो नहीं होता। और कामवासना के झरने को रोका नहीं, कामवासना को समझा तो लोग गांठों को सूक्ष्म करते जाते हैं। तुम कामवासना नहीं, उसके विज्ञान को पहचाना नहीं, वह और मुश्किल में पड़ छोड़ना चाहते हो। ब्रह्मचर्य की चर्चा सदियों तक चली है। जाएगा। तुम कोशिश करके देखो। जैसे-जैसे तुम ब्रह्मचर्य की ब्रह्मचर्य के बड़े स्तुति में गीत गाए गए हैं। तो तुम्हारे मन में भी चेष्टा करोगे, तुम पाओगे खोपड़ी में झरने ही झरने खुल गए, लोभ जगता कि हम भी ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हों। अच्छा है, वासना ही वासना के। वही-वही विचार उठते हैं, वही-वही शुभ है भाव, लेकिन जब तक कामवासना को समझा नहीं, तब स्वप्न आते हैं। कहीं भी नजर डालो, तुम्हें बस वासना का ही तक तुम मुक्त कैसे हो सकोगे? जब तक कामवासना को | विस्तार दिखाई पड़ेगा। तुम जो भी देखोगे वहां वासना दिखाई जागकर देखा नहीं कि यह गांठ लगती कैसे? इसके लगने की पड़ेगी। विधि क्या है? यह कैसे जकड़ लेती है और मन को घेर लेती है, | मुल्ला नसरुद्दीन अपने मनोवैज्ञानिक के पास गया था। एक और मन को डुबा लेती है? खींच लेती, अवश कर देती, | ऊंट निकल रहा था रास्ते पर से। तो उस मनोवैज्ञानिक ने पूछा, असहाय कर देती। जहां नहीं जाना वहां खिंचे चले जाते हैं। जो इस ऊंट को देखकर तुम्हें किस बात की याद आती है? उसने नहीं करना वह फिर-फिर कर लेते हैं। इस गांठ को ठीक से कहा, स्त्री की। जरा मनोवैज्ञानिक भी चौंका। उसने कहा अच्छा जानना जरूरी है। कोई बात नहीं। यह जो घड़ी लटकी है इसको देखकर तुम्हें तो महावीर कहते हैं, जो व्यक्ति संवरविहीन है...। संवर किसकी याद आती है? उसने कहा, स्त्री की। उसने कहा, मुझे महावीर का पारिभाषिक शब्द है। संवर का अर्थ है आने का देखकर तम्हें किसकी याद आती है. उसने कहा, स्त्री की। उसने मार्ग। जिसने मूल उदगम को नहीं रोका है। कुएं से पानी उलीच कहा, तुम हद्द पागल आदमी हो! उसने कहा, पागल क्या? रहा है और झरना नया पानी लिए चला आ रहा है। झरना भरे जा मुझे स्त्री के सिवाय किसी की याद ही नहीं आती। इसमें ऊंट का रहा है कुएं को और तुम उलीचे जा रहे हो। तुम्हारे उलीचने से | कोई संबंध नहीं है, न घड़ी का, न तुम्हारा। मुझे याद ही स्त्री की कुछ लाभ नहीं है। खतरा तो यह है कि तुम्हारे उलीचने से आती है। इससे ऊंट का कोई संबंध मत जोड़ना कि ऊंट को आनेवाला झरना और गतिमान हो जाएगा। देखकर मुझे स्त्री की याद आती है। याद ही बस एक आती है। यह तुमने खयाल किया होगा। अगर किसी कएं का पानी वर्षों तम जरा कोशिश करके देखो। जिस चीज से तम जबर्दस्ती 5981 | Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy