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________________ जिन सूत्र भाग: 2 यह शून्यता ही तुम्हें पात्र बना देगी। फूलों के रंगों जैसी शराब, | उन्हें थोड़े ही मतलब है! उन्हें अपने नर्क की पड़ी है, कि पैर की परमात्मा की मस्ती उसमें उतरेगी और भरेगी। तुम मिटोगे तो धुल दे दें और फंस जाएं। यह भी खब आदमी फंसाने के उपाय परमात्मा हो सकता है। कर रहा है! अभी पैर की धूल दे दें, फिर फंसें खुद। तुम्हारा तो सिरदर्द ठीक हो, हम नर्क में सड़ें। नहीं, यह पाप हमसे न हो तीसरा प्रश्न : कथा कहती है कि श्री कृष्ण भगवान ने जब सकेगा। इनको अपनी फिक्र है। गोपियों को अपना पता ही नहीं सिरदर्द मिटाने के लिए भक्तों से उनकी चरणधूलि मांगी, तब | है। इसलिए उन्होंने कहा, पैर की धूल तो पैर की धूल। इसे थोड़ा सबने इंकार कर दिया, लेकिन गोपियों ने चरणधूलि दी। प्रभु, | समझ लेना। इस प्रसंग का रहस्य बताने की कृपा करें। प्रेम के अतिरिक्त और कोई विनम्रता नहीं है। गोपियां तो समझती हैं सब लीला उसकी है। यह सिरदर्द उसकी लीला, यह रहस्य बिलकुल साफ है। बताने की कोई जरूरत नहीं है। पैर, यह पैर की धूल उसकी लीला। वही मांगता है। उसकी ही सीधा-सीधा है। दसरे डरे होंगे। दसरों की अस्मिता रही होगी, | चीज देने में हमें क्या अड़चन है? अहंकार रहा होगा। तखलीके-कायनात के दिलचस्प जुर्म पर अब यह बड़े मजे की बात है। अहंकार को विनम्र होने का | हंसता तो होगा आप भी यजदां कभी-कभी पागलपन होता है। अहंकार को ही विनम्र होने का खयाल होता यह भगवान, जिसने दुनिया बनाई हो-यजदां, स्रष्टा; है। तो जो दूसरे रहे होंगे, उन्होंने कहा, पैर की धूल भगवान के कभी-कभी हंसता तो होगा; कैसा दिलचस्प जुर्म किया। यह लिए? कभी नहीं। कहां भगवान, कहां हम! हम तो क्षुद्र हैं, | दुनिया बनाकर कैसा मजेदार पाप किया। तुम विराट हो। हम तो ना-कुछ हैं, तुम सब कुछ हो। लेकिन तखलीके-कायनात के दिलचस्प जुर्म पर इस ना-कछ में भी घोषणा हो रही है कि हम हैं, छोटे हैं। हमारे हंसता तो होगा आप भी यजदां कभी-कभी पैर की धूल तुम्हारे सिर पर ? पाप लगेगा, नर्क में पड़ेंगे। भक्त कहते हैं-हंसी उसको भी तो आती होगी कि खब लेकिन गोपियां जो सच में ही ना-कुछ हैं, उन्होंने कहा हमारे मजाक रहा! पैर कहां? हम कहां? हमारे पैर की धूल भी तुम्हारे ही पैर की कृष्ण खूब हंसे होंगे, जब ज्ञानियों ने धूल न दी और गोपियों ने धूल है। और यह धूल भी कहां ? तुम ही हो। और फिर तुम्हारी | धूल दे दी। खूब हंसे होंगे। छोटी-सी मजाक भी न समझ पाए। आज्ञा हो गई तो हम बीच में बाधा देनेवाले कौन ? हम कौन हैं ज्ञानियों से ज्यादा बुद्धू खोजना मुश्किल है। शास्त्र समझ गए, जो कहें नहीं? शास्त्र का सागर समझ गए, और जरा-सी मजाक न समझ पाए, प्रेम की विनम्रता बड़ी अलग है। ज्ञान की विनम्रता थोथी है, जरा-सी बात न समझ पाए। परमात्मा के लिए इतना भी न कर धोखे से भरी है। ज्ञानी जब तुमसे कहता है, हम तो आपके पैर | पाए। गोपियां तो खूब खुश हुई होंगी। उन्होंने तो सोचा होगा, की धूल हैं, तुम मान मत लेना। जरा उसकी आंख में देखना। | चलो अपराध तुम्ही करवा रहे हो तो करेंगे। दिलचस्प हो गया वह कह रहा है, समझे कि नहीं, कि हम महाविनम्र हैं! अपराध, तुम्हारी आज्ञा से हो रहा है। तुम यह मत कहना कि ठीक कहते हैं आप: बिलकुल सही खताओं पे जो मुझको माइल करे फिर कहते हैं आप। तो वह नाराज हो जाएगा और फिर कभी तुम्हारी | सजा और ऐसी सजा चाहता हूं तरफ देखेगा भी नहीं। वह सुनना चाहता है कि तुम कहो, कि | उन्होंने तो सोचा होगा, चलो अच्छा। अब ऐसी सजा देना कि | अरे! आप और पैर की धूल? नहीं-नहीं। आप तो पूज्यपाद! हम और खताएं करें। अब ऐसा दंड देना कि हम और खताएं करें आप तो महान, आपकी विनम्रता महान। वह यह सुनना चाहता ताकि तुम और दंड दो। यह संबंध बना रहे। यह दोस्ती बनी है कि तुम कहो कि आप महान। रहे। यह गठबंधन बना रहे। दूसरों ने इंकार कर दिया होगा। कृष्ण के सिर में दर्द है, इससे | | खताओं पे जो मुझको माइल करे फिर 5821 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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