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________________ जिन सूत्र भाग: 2 जहां प्रेम हो गया वहीं कृष्ण का आविर्भाव हो जाता है। कृष्ण इसलिए यह जो मौका मिला, यह जो पलक थोड़ी खुली, से थोड़े ही प्रेम होता है! जहां प्रेम होता है, वहीं कृष्ण का इसको और खोलते ही चले जाना। आविर्भाव हो जाता है। यही कठिन बात है। '...अब यह विश्वास लेकर जाती हूं कि जो ध्यान यहां मिला अगर तुम किसी दूसरे को सिद्ध करोगे कि मुझे कृष्ण के दर्शन | है, वह कायम रहेगा।' हो गए तो वह हंसेगा। उसका हंसना भी ठीक है। वह कहेगा, यह बात छोड़कर जाओ। यह साथ लेकर मत जाओ। यह हमें तो कोई कृष्ण के दर्शन होते नहीं; तुम्हें कैसे हो गए? कुछ रहेगा कायम, लेकिन तुम यह बात यहीं छोड़ जाओ। तुम यह भ्रांति हो गई होगी। बात ही मत उठाओ। यह विश्वास खतरनाक है। यह विश्वास वह भी ठीक है। क्योंकि कृष्ण के दर्शन तो प्रेम में होते हैं; प्रेम तो इस बात की सूचना है कि अविश्वास आना शुरू ही हो गया। की आंख हो तो होते हैं। और प्रेम की आंख हो तो कुछ और ही डर लगने लगा मन में कि अब घर वापस जाना है। पता नहीं जो होने लगता है, जो इस जगत में होता ही नहीं। यहां हो रहा था, वह वहां होगा या नहीं होगा। तुम्हारा घर मोहब्बत में कदम रखते ही गुम होना पड़ा मुझको परमात्मा के उतने ही निकट है जितना यहां। सभी घर उसके हैं। निकल आयीं हजारों मंजिलें एक-एक मंजिल से सभी जगह वही है। अगर प्रेम की आंख खुली, कि एक दूसरा ही लोक खुला। तुम यह विश्वास ही उठाने का मतलब हुआ कि कहीं गहरे में हजारों मंजिलें खुल जाती हैं। इधर प्रेम की आंख बंद हुई कि सब अविश्वास आने लगा कि अब जाती हूं घर, अब पता नहीं जो बंद हो जाता है। हुआ है, वह साथ जाएगा या नहीं? फिक्र छोड़ो। विश्वास की कृष्ण दिखाई पड़ सकते हैं, जहां तुम्हारा प्रेम जग जाए। प्रेम | कोई जरूरत नहीं है। कृष्ण को निर्मित करता है। प्रेम कृष्ण का आविष्कार करता है। तुम आनंदमग्न, नाचती, गीत गुनगुनाती वापस जाओ। तुम्हारे तो तुम्हारा प्रेम जगा, इसे स्मरण रखना। और इस प्रेम को मुझ गीतों में बंधा हुआ, जो यहां घटा है वह तुम्हारे साथ चला पर ही मत रोक लेना। इसे और बढ़ाना, कि धीरे-धीरे कृष्ण सब आएगा। अपेक्षाशून्य! जैसे निरुद्देश्य आना यहां हुआ था, ऐसे जगह दिखाई पड़ने लगें। जो घटना तुमने मुझ पर घटा ली है, | ही निरुद्देश्य वापस चली जाओ। दूर न जा पाओगी। वह तुम्हारी प्रेम की आंख के कारण घटी है। इसी आंख से वृक्ष याद आगाजे-मोहब्बत की दिलों से न गई को देखना। तो तुम पाओगे, कृष्ण खड़े हैं हरे-भरे। इसी आंख काफिले घर से बहुत दूर न होने पाए से पहाड़ को देखना तो तुम पाओगे, कृष्ण खड़े हैं। कैसे आकाश | कभी नहीं हो पाते दूर। प्रेम की झलक मिल जाए...। को छूते शिखर। हिमाच्छादित! कृष्ण खड़े हैं। याद आगाजे-मोहब्बत की दिलों से न गई। तुम इसी प्रेम की आंख से देखते चले जाना, तो हर जगह कृष्ण | फिर दिल कभी भूलता ही नहीं। दिल में घट जाए, एक दफा दिखाई पड़ेंगे। यह प्रेम की आंख जो पैदा हुई है, यह बढ़ती जाए, दिल में झंकार हो जाए, फिर दिल कभी भूलता ही नहीं। यह मुझ पर रुके न। क्योंकि रुक जाए तो खतरा हो जाता है। याद आगाजे-मोहब्बत की दिलों से न गई रुकने से संप्रदाय बन जाता है। बढ़ने से धर्म, रुकने से संप्रदाय। काफिले घर से बहुत दूर न होने पाए तुमने अगर यह जिद्द की कि यही आदमी कृष्ण है, और कोई फिर तुम जाओ कितने ही दूर-पृथ्वी के किसी दूर के कोने पर कृष्ण नहीं तो बस, जल्दी ही यह प्रेम मर जाएगा। क्योंकि प्रेम | भी, तो भी घर से दूर न हो पाओगे। वह घर परमात्मा है, जिससे फैलता रहे तो जीता है। प्रेम बढ़ता रहे तो जीता है। प्रेम सिकुड़ | हम कभी दूर नहीं हो पाते। जाए तो मरने लगता है। तुमने गर्दन पर फांसी लगा दी। जैसे एक दफा पुलक आ जाए, झलक आ जाए। वह झलक आयी [ दो और कोई मर जाए, ऐसा प्रेम को है। इसलिए विश्वास इत्यादि की बात मत उठाओ। विश्वास तो सिकोड़ना मत, अन्यथा मर जाएगा। फिर एक दिन तुम पाओगे | थोथी चीज है। विश्वास तो अविश्वास को ढांकने का उपाय है। कि मुझमें भी दिखाई नहीं पड़ेंगे कृष्ण। विश्वास तो शंका को छिपाने की व्यवस्था है। विश्वास तो संदेह 580 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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