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________________ चित्त बार-बार इन्हीं योजनाओं में घूमता है। चित्त का अर्थ है, वस्तुओं से चेतना का संबंध । और जब तक चित्त है तब तक संबंध बनते चले जाते हैं। तुम राह पर चल रहे हो, पास से एक कार गुजर गयी, तुम्हारे ही पीछे महावीर भी चल रहे हैं, वह कार उनके पास से भी गुजरी। लेकिन तुम्हारा चित्त पैदा कर जाएगी कार, महावीर में कुछ पैदा न होगा। कार दोनों के पास से गुजरी। तुम्हारे पास से गुजरी इतना ही नहीं, गुजरते ही चित्त पैदा हुआ, तुम जुड़े, तुम कार से लगे। कार तो चली गयी, तुम्हारा चित्त पीछा करने लगा। तुमने सोचा, ऐसी कार मेरी हो! कैसे खरीद लूं ? क्या उपाय करूं? महावीर के पास से भी वही कार गुजरी, चित्त पैदा नहीं हुआ। कार गुजर गयी, महावीर गुजर गये, दोनों के बीच कोई संबंध न बना । चित्त का अर्थ है, वस्तुओं से संबंध बन जाना। तुम प्रतिपल वस्तुओं से संबंध बना रहे हो। तुम बहुचित्तवान हो । महावीर पहले मनीषी हैं, जिन्होंने इस शब्द का उपयोग किया, 'बहुचित्तवान।' फिर यह शब्द खो गया। उसके पहले भी कभी न था। उसके पहले भी किसी ने ऐसा न कहा था कि आदमी में बहुत चित्त हैं। उसके पहले ऐसी ही धारणा थी कि आदमी में एक चित्त है। महावीर ने कहा, एक से काम न चलेगा, आदमी भीड़ है । | आदमी के मन में जितनी वस्तुओं से संबंध बनाने का राग है, | उतने ही चित्त हैं। कार से संबंध बना, एक चित्त पैदा हुआ। मकान से संबंध बना, दूसरा चित्त पैदा हुआ। धन से संबंध बना, तीसरा चित्त पैदा हुआ। अनंत चित्त हम पैदा कर रहे हैं। चित्त प्रतिपल उठ रहे हैं, तरंगों की भांति, जैसे सागर में लहरें उठ रही हैं। जैसे सागर में लहरें | उठती हैं हवा के थपेड़ों से, ऐसे ही वस्तुओं से उठती हुई तरंगें हमारे मन में चित्त को पैदा कर जाती हैं। महावीर ने कहा, मनुष्य बहुचित्तवान है । फिर ढाई हजार साल तक इस शब्द का किसी ने कुछ चिंतन नहीं किया। अभी पश्चिम में मनोवैज्ञानिक फिर इस शब्द को खोज लिये हैं । उनको महावीर | का कुछ भी पता नहीं है। महावीर बहुत ही अपरिचित हैं पश्चिम को । पश्चिम ने थोड़े शब्द पतंजलि के सुने हैं। बुद्ध के काफी शब्द सुने हैं। उपनिषद और वेद भी पहुंच गये हैं । लेकिन महावीर पश्चिम के सामने बिलकुल अपरिचित हैं। महावीर का Jain Education International 2010_03 ज्ञान है परमयोग तो उन्हें पता ही नहीं है कि उनके पहले भी एक मनीषी ने इस शब्द का उपयोग किया है। पश्चिम के मनोवैज्ञानिक एक शब्द का उपयोग करते हैं जो ठीक महावीर के बहुचित्तवान का रूपांतर है। वे कहते हैं, मनुष्य 'पोलिसाइकिक' है । बहुचित्तवान । जिन्होंने भी मन को बहुत गहरे में खोजा है, उन्हें यह सत्य मिल ही जाएगा कि तुम हजारों चित्त पैदा कर रहे हो । चित्त यानी तरंगें । तरंगें ही तरंगें । उन तरंगों के कारण तुम बाहर भागे जा हो। उन तरंगों के कारण तुम घर नहीं लौट पाते। रात तुमने कभी देखा, अगर बहुत चित्त उठ रहे हों, बहुत तरंगें उठ रही हों, तो नींद तक संभव नहीं होती। अगर तुमने लाटरी का टिकिट खरीदा है, तो उस रात नींद नहीं आती । चित्त में तरंगें उठने लगीं। अभी लाटरी मिली नहीं है। मैंने सुना है, एक अदालत में मुकदमा था। दो आदमियों ने एक-दूसरे का सिर खोल दिया था। और मजिस्ट्रेट ने पूछा कि हुआ क्या? किस बात से तुम लड़े? और तुम दोनों पुराने दोस्त हो ! उन्होंने कहा, वह भी ठीक है। हम दोनों पुराने दोस्त हैं, लेकिन बात ही ऐसी आ गयी। कुछ शरमाने लगे दोनों बात बताने में। मजिस्ट्रेट ने कहा, तुम कहो, शरमाओ मत। तो उस पहले आदमी ने कहा कि जरा मामला ऐसा है, शरमाने जैसा ही है, अब हो गया ! मैंने इससे कहा कि मैं एक खेत खरीद रहा हूं। और यह बोला कि खरीद तो मैं भी रहा हूं, एक भैंस । मैंने कहा, देख, भैंस मत खरीद, अपनी दोस्ती टिकेगी नहीं। कहीं खेत में घुस जाए, कुछ से कुछ हो जाए। अगर खरीदता ही है तो सोच-समझकर खरीदना। तो यह क्या बोला! यह बोला कि जाओ भी भई, भैंस तो भैंस है। अब उसके पीछे कोई चौबीस घंटे थोड़े ही लगा रहूंगा। कभी तुम्हारे खेत में घुस भी गयी तो घुस भी सकती है। तो मैंने इससे कहा कि मत खरीद भैंस, खेत तो मैंने खरीदने का पक्का ही कर लिया है। तो इसने मुझसे कहा, तू ही मत खरीद खेत, भैंस का तो मैंने बयाना भी दे दिया है। बस बात बढ़ गयी । तो मैंने कहा अगर खरीदना ही है तो खरीद ले, लेकिन ध्यान रख, मेरे खेत में न घुसे, और मैंने ऐसा रेत पर खेत खींचकर बताया कि यह रहा मेरा खेत। इसमें कभी तेरी भैंस न घुसे, इसका खयाल रखना। इसने क्या किया, इसने एक लकड़ी से ऐसा इशारा करके रेत में निशान बना दिया और कहा, यह घुस For Private & Personal Use Only 49 www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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