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________________ रसमयता और एकाग्रता जाओगे। तुम ही बाधा बन जाओगे। वे आएंगे और आनंद नहीं पत्नी अब धोखा देने लगी? या कभी-कभी यह भी संदेह होता मिलेगा तो वे कहेंगे, तुमने धोखा दिया। और तुम्हें भी क्या खाक है क्या पहले-पहल धोखा दिया था? क्या मैं कोई सपने में खो मिलता होगा, जब हमको नहीं मिला। सुना तो हमने भी वही, | गया था? सुना तुमने भी वही। हमें तो कुछ भी न मिला। तो तुम नाहक की कुछ भी नहीं हुआ है। एक जीवन की छोटी-सी घटना तुम बातें करते हो। | नहीं समझ पा रहे हो। जब पहली दफा किसी स्त्री या किसी नहीं, त्रिवेणी को हो गया होगा। वह यहां आने के लिए आयी पुरुष से मिले थे तो मिलने में कोई भी अपेक्षा न थी-निरपेक्ष। ही न थी। जाते थे पति-पत्नी दक्षिण की यात्रा को, पूना बीच में घटना आकस्मिक घट गई थी। लेकिन अब अपेक्षा है। | पड़ गया। सोचा होगा चलो, यहां भी देखते चलो। मगर कोई ऐसा हर तरफ होता है। पहली दफा ध्यान में लोगों खोज नहीं थी। ऐसी कोई चेष्टा नहीं थी। ऐसी कोई अपेक्षा भी कभी-कभी ऐसी अनुभूति आती है। फिर कठिन हो जाता है। नहीं थी कि आनंद मिलेगा कि रसधार बहेगी कि बादल | क्योंकि फिर दूसरे दिन ध्यान नहीं करते। फिर तो वे थोड़ा उमड़ेंगे-घुमड़ेंगे कि बिजली चमकेगी। ऐसा कुछ खयाल ही न हिलते-डुलते हैं, और भीतर तैयार रहते हैं कि अब हो....अब था। इतनी सरलता से कोई आ जाता है तो घटना घट जाती है। हो...अब हो। नहीं होता। क्योंकि जब पहली दफा हआ था तो सरलता से आना मुश्किल है। क्योंकि जो सरल हैं, वे आएं 'अब हो, अब हो' ऐसी कोई आवाज भीतर नहीं थी। अब क्यों? जो जटिल हैं वे आते हैं। जटिल को मिलना मुश्किल। तुमने एक नई चीज जोड़ दी, जो बाधा बन रही है। जो खोज रहा है वह आता है। जो खोज नहीं रहा वह आता नहीं।। इधर मेरे हजारों लोगों पर ध्यान-प्रयोग करने के जो नतीजे हैं, जो खोज रहा है उसको मिलता नहीं। | उनमें एक नतीजा यह है कि पहली दफा जैसी झलक मिलती है, तो कभी-कभी जब न खोजनेवाला आ जाता है सत्संग में, तो फिर बड़ी कठिन हो जाती है। फिर जब तक वह पहली झलक घटना घट जाती है। भूल नहीं जाती, दूसरी झलक नहीं मिलती। कभी महीनों लग 'बिना किसी उद्देश्य के मैं अपने पति को साथ आ गई।' जाते हैं भूलने में। जब बिलकुल हार-हारकर आदमी सोचता है, इसीलिए कुछ हो गया। अपेक्षा न हो तो जीवन में बड़ी घटनाएं कि अरे! वह भी मिली न होगी। कल्पना कर ली होगी। जब घटती हैं। जो-जो तुमने अपेक्षा बांधी, वही-वही नहीं घटेगा। पहली झलक भूल जाती है तब दूसरी झलक मिलती है। दूसरी, अपेक्षा के कारण ही घटना बंद हो जाता है। | तीसरी, चौथी झलक के बाद यह समझ में आना शुरू होता है कि तुमने देखा! किसी से प्रेम हो जाता है, खूब रस बहता है। मैं जो मांग रहा था, वह बाधा बन रही थी। लेकिन यह थोड़े दिन ही चलता है। यह हनीमून भी पूरा निरुद्देश्य आने से ही कुछ हुआ। अब ऐसी निरुद्देश्यता को होते-होते चल जाएगा, संदिग्ध है। यह सुहागरात पर ही समाप्त | कायम रखना। अब खतरा है। त्रिवेणी पूछती है कि घर जाकर हो जाता है। उसी स्त्री से, उसी पुरुष से बड़ा रस मिला था। फिर यह ध्यान कायम रहेगा न? अब खतरा है। जो हुआ है, बिना क्या हो जाता है? मांगे हुआ है। अब भी क्यों मांगना? जब अभी बिना मांगे हो अपेक्षा नहीं थी, जब मिला था। तब तुमने सोचा न था कि गया है तो फिर भी बिना मांगे होता रहेगा। मिलेगा। तब तुम सचेत रूप से खोज नहीं रहे थे, मांग नहीं रहे अब खतरा है। अब खतरा यह है कि जो रस उसे मालूम हुआ थे; मिला था। फिर सचेत रूप से मांगने लगे। अब तुम कहते है, अब वह चाहेगी कि वह घर पर कायम रहे। लौट-लौटकर हो रोज-रोज मिलना चाहिए। अब तुम कहते हो, आज नहीं उसको फिर पाना चाहेगी। इस चाह से ही मर जाएगा। अब मिला, बात क्या है? कोई धोखा चल रहा है? निरुद्देश्य न रही त्रिवेणी। अब त्रिवेणी को उद्देश्य मिल गया। अब तुम मांग करते हो। अब तुम दावेदार बन गए। अब तुम अब दुबारा अगर वह पूना आएगी तो भी खतरा है। जरूर मकदमा लड़ने को तैयार हो। अब तम कलह करते हो पत्नी से आएगी। आना पड़ेगा उसे। क्योंकि वह जो रस मिला, अब कि आज सुख नहीं दिया। या फिर तुम्हें संदेह होता है कि क्या उसकी वासना जगेगी। अब वह बार-बार आएगी। अब मैं भी Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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