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उठाकर । बंगाली ! बिना छाते के तो मरने भी नहीं जा सकते। मैं थोड़ा चिंतित हुआ । मैं गया। मैंने उनकी पत्नी से कहा कि मामला क्या है ? मेरा कोई इतना परिचय नहीं है, लेकिन कोई मरने जा रहा हो तो मुझे कुछ करना चाहिए। उसने कहा, आप बिलकुल बेफिकर रहो। वे अपने आप आ जाएंगे। पंद्रह मिनट से ज्यादा नहीं लगेगा। मैंने कहा, गए कहां हैं। उन्होंने कहा, वे कहीं जाते - वाते नहीं । यह तो जिंदगी हो गई मुझे। ऐसा कोई सप्ताह नहीं जाता जब वे मरने न जाते हों।
जरा-जरा सी बात पर आदमी मरने को तत्पर है।
इसलिए महावीर की सावधानी ठीक है। कि तुम ऐसा मत सोच लेना कि मरना कोई धर्म है । मरना तभी सार्थक हो सकता है, जब जीवन का कोई और उपयोग न रहा। जितने दूर तक यह नाव ले जा सकती थी, ले गई। अब तैरना पड़ेगा। अब यह नाव नहीं काम आती - तो !
अन्यथा सावधानीपूर्वक जीना, सावचेत जीना। छोटी-छोटी भूल को छोटी-छोटी मत मानना । कोई भूल छोटी नहीं होती । भूल छोटी होती ही नहीं। क्योंकि एक दफा छोटी भूल समझकर जो हृदय में पड़ जाती है, वह कल बड़ी हो जाती है, फैल जाती है, विस्तीर्ण हो जाती है। सभी लोग छोटे-छोटे दोष मानकर दोष करते हैं और एक दिन उनमें ग्रसित हो जाते हैं और निकलना मुश्किल हो जाता है।
किसी मित्र ने कहा कि अरे! पी भी लो। जरा-सी शराब थी, तुमने सोचा इतनी शराब से क्या बननेवाला, बिगड़नेवाला ? साढ़े छह फीट लंबा शरीर है, तीन सौ पौंड वजन है, क्या बिगड़नेवाला है? तुम पी गए। मगर वह छोटा-सा दोष धीरे-धीरे पकड़ेगा। बुराई बड़े आहिस्ता आती है। बुराई जब आती है तो जूते उतारकर आती है। आवाज ही नहीं होने देती । पैरों की भी आवाज नहीं होती।
इसलिए महावीर कहते हैं, बहुत सावधान रहना, बहुत सावचेत रहना । जीवन से एक सत्य साधना है— जीवन साधन साध्य नहीं — और वह सत्य है, महाजीवन । उस महाजीवन को साधने के लिए मृत्यु को सुमरण बनाना है, पंडित की मौत मरनी है, जाननेवाले की मौत मरनी है। और अज्ञानी की मौत तो हम सब बहुत बार मर चुके । उससे कुछ लाभ नहीं हुआ । उससे हम मरे ही नहीं, फिर-फिर लौट आए।
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पंडितमरण सुमरण है
किससे महरूमिए- किस्मत की शिकायत कीजे हमने चाहा था कि मर जाएं, सो वह भी न हुआ - अब किससे शिकायत करो भाग्य की ? किससे महरू मिए - किस्मत की शिकायत कीजे हमने चाहा था कि मर जाएं, सो वह भी न हुआ कितनी बार तो हम मर भी चुके, फिर भी मरे नहीं । और कितनी बार हमने चाहा कि मर जाएं, वह भी नहीं हुआ।
तुम्हारी चाह से मौत नहीं घटेगी। महावीर कहते हैं, जिसको मौत का अनुभव करना हो, उसे अचाह साधनी पड़ती है— निष्काम चाह, वासनाशून्यता । क्योंकि सब वासना जीवन से जुड़ी है। जब तक वासना तब तक तुम जीवन को पकड़े हो । जैसे ही वासना छूटती है, तुम कुछ भी नहीं मांगते, तुम मरने को तैयार हो गए। पंडितमरण की तैयारी हो गई।
और जो ज्ञानी की तरह मरता है, मृत्यु एक बड़े अभिनव, सुंदर रूप में प्रगट होती है । मृत्यु परमात्मा की तरह आती है।
आज इतना ही।
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