________________
560
जिन सूत्र भाग: 2
अगर आत्महत्या करते हुए पकड़ लिए जाओ, तो सरकार तुमको डा। यह भी कोई बात हुई ? तुम खुद ही मर रहे थे। अब | तुमको और मारने की क्या जरूरत है? तुम तो खुद ही अपराध भी कर रहे थे, दंड भी दे रहे थे। निपटारा हुआ जा रहा था। लेकिन अगर पकड़ लिए गए— मर गए तो ठीक, अगर अपराध कर गुजरे तो फिर कोई दंड नहीं है - लेकिन अगर करते हुए पकड़ लिए गए और अपराध पूरा न हो पाया तो दंड है।
यह अब तक तो ठीक था । हमारे नियम और कानून भी कारण से होते हैं। जीवन बड़ा मुश्किल रहा है, बड़ा असंभव रहा है। सत्तर साल, अस्सी साल जीना बड़ा मुश्किल रहा है । जितनी खोजें हुई हैं दुनिया में जमीन के नीचे पड़ी हुई मनुष्य की हड्डियों की, तो ऐसा लगता है पांच हजार साल पहले चालीस वर्ष आखिरी उम्र थी। क्योंकि पांच हजार वर्ष पहले की कोई भी हड्डी नहीं मिली है, जो चालीस वर्ष से ज्यादा पुराने आदमी की हो।
और पीछे जाने पर, कोई सत्तर और पचहत्तर हजार साल पुरानी जो पेकिंग में हड्डियां मिली हैं, वे तो बताती हैं कि आदमी मुश्किल से पच्चीस साल जीता था। तो जीवन बड़ा मुश्किल रहा है। और पच्चीस साल भी, एक घर में अगर एक दर्जन बेटे |पैदा हों तो दो बच जाएं, बहुत । क्योंकि दस बच्चों में नौ बच्चे मर जाते थे।
तो जीवन की बड़ी मुश्किल थी। जीवन बड़ा न्यून था । मुश्किल से मिलता था । जीवन का बड़ा अवसर था। सभी को नहीं मिल जाता था। तो सौ साल जीने का हम आशीर्वाद देते थे, वह ठीक है। अब जीवन बड़ा सुगम है। कम से कम पश्चिम में तो सुगम हो गया है। लोग सौ साल तक पहुंच रहे हैं। सत्तर-अस्सी साल औसत उम्र हो गई है। अस्सी साल का होना कोई बहुत बूढ़ा होना नहीं है।
इसलिए हम चौंकते हैं, यहां जब अखबार में कभी खबर आती है कि नब्बे साल के बूढ़े ने विवाह कर लिया तो हम बहुत चौंकते हैं। यह भी क्या पागलपन है ? नब्बे साल का बूढ़ा, और विवाह ? लेकिन पश्चिम में शरीर की उम्र लंबा रही है । नब्बे साल का बूढ़ा भी विवाह करने की हालत में है।
तो एक नया सवाल उठना शुरू हुआ है कि आदमी को मरने का हक होना चाहिए। यह जन्मसिद्ध अधिकार होना चाहिए सभी विधानों में। क्योंकि एक आदमी अगर एक सौ दस साल
Jain Education International 2010_03
का हो गया और मरना चाहता है... क्योंकि करोगे क्या ? रोज उठना वही, रोज सोना वही, रोज खा-पी लेना वही । फिर सब अपने संबंधी जा चुके, मित्र- प्रियजन जा चुके और एक आदमी जिंदा है। उसकी सारी दुनिया जा चुकी । वह सौ साल पहले पैदा हुआ था, वह दुनिया जा चुकी । सब बदल गया। वह बिलकुल अजनबी है। जैसे किसी और लोक में जबर्दस्ती उसको लाकर खड़ा कर दिया। बच्चों से कोई तालमेल नहीं रहा । बच्चे बिलकुल दूसरी दुनिया में जी रहे हैं। वह करे भी क्या जीकर ? सार भी क्या है ? कष्ट होता है, शरीर दुखता है, अर्थराइटिस है, हजार बीमारियां हैं। करे क्या जीकर?
और जी रहा है क्योंकि मेडिकल साइंस ने जीने की सुविधा जुटा दी है। जी सकता है। अब हम आदमी को खींच सकते हैं, दो सौ साल तक भी । उसको मरने ही न दें। उसको अस्पताल में रखकर हम जिंदा रख सकते हैं। अब अस्पताल में डाक्टरों की भी बड़ी कठिनाई है। क्योंकि अगर वे आक्सीजन बंद करें तो उसका मतलब है, उन्होंने इसको मारा। पुराने नियम से वे हत्यारे हैं। उनका पुराना शास्त्र कहता है, किसी को मारना नहीं, बचाने की कोशिश करना। अगर वे इसको ग्लूकोज न दें तो यह मर जाएगा। लेकिन तब मारने का जुम्मा उनके ऊपर पड़ेगा। अभी कानून इसका मौका नहीं दे रहा है, लेकिन कानून को यह मौका देना पड़ेगा |
महावीर की बात समझ में आने जैसी है। महावीर कहते हैं, जब कोई आदमी ऐसी जगह आ जाए, जहां शरीर से अब कुछ भी ध्यान में गति न होती हो, समाधि की तरफ यात्रा न होती हो; ध्यान से, धर्म से, समाधि से परमात्मा का अब कोई अनुभव में विकास न होता हो, कोई लाभ न होता हो... यह महावीर का लाभ ठीक से समझना। यह जैनियों का लाभ नहीं है कि अब कोई धन कमाने की सुविधा न रही, कि रिटायरमेंट हो गया, अब जीकर क्या करें ?
महावीर जब कहते हैं, नए-नए लाभ के लिए जीवन को सुरक्षित रखे, तो वे यह कहते हैं, रोज-रोज परमात्मा का अधिकतम अंश अनुभव में आने लगे तो तो जीवन का कोई सार है। लेकिन कभी अगर ऐसा हो जाए कि जब जीवन तथा देह से लाभ होता दिखाई न दे तो परिज्ञानपूर्वक शरीर का त्याग कर दे। यह शर्त सोचने जैसी है: 'परिज्ञानपूर्वक ।' महावीर कहते हैं,
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org