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________________ 540 जिन सूत्र भाग: 2 | समझते हुए जीयो और मर जाओ; और तुम्हें अपनी कोई जीवंत उस दिन तुम जल्दी न करोगे हाथ छुड़ाने की। अनुभूति न हो । जमाले - इश्क में दीवाना हो गया हूं मैं यह किसके हाथ से दामन छुड़ा रहा हूं मैं? प्रेम में कैसा पागलपन गया! जमाले - इश्क में दीवाना हो गया हूं मैं मेरी बात तुम सुन रहे हो। अगर मेरी बात को संगृहीत करने लगे तो खतरा है। सुनो मेरी, गुनो अपनी समझो, संग्रह म करो। याददाश्त भरने से कुछ भी न होगा। स्मृति के पात्र में तुमने, जो-जो मैंने तुमसे कहा, इकट्ठा भी कर लिया तो दो कौड़ी का है। उससे कुछ लाभ नहीं । तुम्हारा बोध जगे। जो मैं कह रहा हूं उसे समझो, उससे जागो। कोई परीक्षा थोड़ी ही देनी है कहीं कि तुमने जो मुझसे सुना, वह याद रहा कि नहीं रहा। प्रेम में ऐसी दीवानगी भी आती है कि प्रेमी से ही हाथ छुड़ाकर भागने के लिए आदमी तत्पर हो जाता है। जमाले - इश्क में दीवाना हो गया हूं मैं यह किसके हाथ से दामन छुड़ा रहा हूं मैं एक मित्र एक दिन आए, वे कहने लगे, बड़ी मुश्किल है। रोज आपको सुनता हूं लेकिन घर जाते-जाते भूल जाता हूं। तो अगर मैं नोट लेने लगूं तो कोई हर्ज तो नहीं ? तो नोट लेकर भी क्या करोगे ? अगर नोट लिया तो नोट बुक का मोक्ष हो जाएगा, तुम्हारा कैसे होगा ? तो याद तो नोट बुक को रहेगा। तुमको तो रहेगा नहीं । - और याद रखने की जरूरत क्या है? मैंने उनसे पूछा, याद रखकर करोगे क्या? समझ लो, बात हो गई । सार-सार रह जाएगा। फूल तो विदा हो जाएंगे, सुगंध रह जाएगी। पहचानना भी मुश्किल होगा, किस फूल से मिली थी। लेकिन उस सुगंध के साथ-साथ तुम्हारे भीतर की सुगंध भी उठ आएगी। उस सुगंध का हाथ पकड़कर तुम्हारी सुगंध भी लहराने लगेगी। तो एक दिन तो गुरु को नमस्कार करना ही है। नमन से शुरू करना, नमस्कार से विदा देनी । इसे याद रखना। इसे भूलना मत । कृष्ण से उतना खतरा नहीं है, जितना तुम्हारे लिए मुझसे खतरा है। क्योंकि कृष्ण से तुम्हारा कोई लगाव ही नहीं । जिनका लगाव है, वे तो मेरे पास आते भी नहीं। तो कृष्ण को तो तुम बड़े मजे से नमस्कार कर सकते हो। असली कठिनाई तो मुझे नमस्कार करने में आएगी । लेकिन नमस्कार करने के पहले नमन का अभ्यास करना होगा । नमन ही लंबा होकर नमस्कार बनता है। झुको ! तुम अगर झुके तो तुम्हारे भीतर कोई जगेगा। तुम अगर अकड़े रहे तो | तुम्हारे भीतर कोई झुका रहेगा। तुम झुको तो तुम्हारे भीतर कोई खड़ा हो जाएगा। बाहर का गुरु तो केवल थोड़ी देर का साथ है ताकि भीतर का गुरु जग जाए। और जिस दिन तुम्हें यह समझ में आ जाता है, Jain Education International 2010_03 तुम छुड़ाओ मत। जल्दी मत करो। मैं खुद ही चुपचाप हाथ अलग कर लूंगा। तुम जरा तैयार हो जाओ, तुम पकड़ना भी चाहोगे तो मैं पकड़ने न दूंगा। क्योंकि अगर मैंने तुम्हें पकड़ने दिया तो मैं तुम्हारा दुश्मन हुआ, मित्र न हुआ। कल्याणमित्र तो वही है, जो तुम्हें तुम्हारा बोध दे जाए और हट जाए बीच से। जो तुम्हें परमात्मा के द्वार तक पहुंचा जाए, फिर तुम लौटकर उसे खोजो तो मिले भी न। मगर ऐसा सदगुरु कभी खोता नहीं, क्योंकि तुम उसे अपने अंतर्तम में विराजमान पाओगे। तब तुम अचानक पहचानोगे एक दिन, जो बाहर से बोला था, वह भीतर की ही आवाज थी । जिसने बाहर से पुकारा था वह भीतर से ही उठी पुकार थी। वह जो बाहर दिखाई पड़ा था वह अपने ही अंतर्तम की छवि थी । बाहर जिसके दर्शन हुए थे, वह अपना ही भविष्य रूप धरकर आया था । घबड़ाओ मत। अभी तो तुम भुलाने की कोशिश करोगे तो भुला न सकोगे। जब तक जाग नहीं गए तब तक भुलाना संभव भी नहीं, उचित भी नहीं। संभव हो तो भी उचित नहीं । किस-किस उन्वां से भुलाना उसे चाहा था रविश किसी उन्वां से मगर उनको भुलाया न गया जब तक तुम जाग ही नहीं गए हो, जब तक तुम अपने प्रीतम स्वयं ही नहीं बन गए हो, तब तक तुम भुला भी न सकोगे कृष्ण को, या महावीर को, या मोहम्मद का । किस-किस उन्वां से भुलाना उसे चाहा था रविश किसी उन्वां से मगर उनको भुलाया न गया भुलाने की जल्दी भी मत करो। जागने की फिक्र करो । भुलाने पर जोर मत दो, जागने पर जोर दो। इधर तुम जागे, कि एक अर्थ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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