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आज लहरों में निमंत्रण
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भी आ जाएगी। जब पहला कदम उठा लिया तो तीसरा भी उठ करता है। ही जाएगा। कम से कम आदमी चला तो। एक-एक पैर वह आदमी बैलगाड़ी में चलता था, तुम फिएट कार में चलते चलकर आदमी हजार मील की यात्रा कर लेता है। यह तो केवल हो, इससे क्या फर्क पड़ता है? वह आदमी जमीन पर बैठकर तीन कदम का मामला है।
खाना खाता था, तुम टेबल-कुर्सी पर खाते हो, इससे क्या फर्क मगर तुम जल्दबाजी मत करना। तुम्हारे कारण बहुत बार पड़ता है? वह आदमी हाथ से खाना खाता था, तुम बहुत-से लोग मेरे पास नहीं आ पाते। और तुम पूरी चेष्टा करते चम्मच-कांटे से खाते हो, इससे क्या फर्क पड़ता है? भीतर हो लाने की। कभी तुम उनको खींच-खांचकर ले भी आते हो तो तुम्हारी अंतरात्मा तो ठीक वैसी की वैसी है, जैसी उस आदमी की वे अकड़े बैठे रहते हैं। यहां मैं देख लेता हूं उनको कि वह अकड़ा | थी। आदमी वैसा का वैसा है। आदमी का अब कोई विकास कौन आदमी बैठा हुआ है। वह रक्षा करता रहता है अपनी। वह नहीं हो रहा है। प्रकृति जहां तक ले आ सकती थी, ले आयी। यह सिद्ध करने में लगा है कि तुम गलत हो। वह तुमसे झगड़े में | अब आदमी को विकास अपने हाथ में लेना होगा, तो विकास लगा है। उसे मुझसे कुछ लेना-देना नहीं है। वह मुझे सुनता भी होगा। अब क्रांति होगी, विकास नहीं होगा। अब तो वे ही नहीं है, या कुछ का कुछ सुन लेता है, ताकि बाहर जाकर वह लोग, जो अपने जीवन की प्रक्रिया को समझकर उठना चाहेंगे, कह सके कि हमने पहले ही कहा था कि कहां गलत आदमी में | अतिक्रमण करना चाहेंगे, उठेंगे। तुम उलझे हो! और हमारा भी समय खराब करवाया। तो बीस सदी पहले भी उठे, अब भी उठ सकते हैं। जिनको
नहीं, तुम किसी को लाना ही मत। तुम आते जाओ। तुम्हारे | नहीं उठना, नहीं उठना चाहते, वे बीस सदी पहले सोए थे, अब आने से जो पगडंडी बन रही है, वह बहुत लोगों के लिए रास्ता | भी सोते रहेंगे। और तुम जबर्दस्ती किसी की नींद तोड़ने की बनेगी। बस तुम आते जाओ। तुम आते-जाते रहो। तुम्हारे | कोशिश मत करना, क्योंकि वह नाराज होगा। फिर हमें हक भी आने-जाने से जो जंगल में रास्ता बन रहा है उस रास्ते पर बहुत क्या है? कोई सोना चाहता है तो कम से कम इतनी स्वतंत्रता तो लोग आएंगे।
होनी ही चाहिए कि सोता रहे। तुम बैंडबाजे लेकर रामधुन मत मगर तुम खींचकर किसी को कभी मत लाना। आदमी पशु | मचा देना चार बजे रात माइक लगाकर, ताकि सभी लोग जगें थोडे ही है कि गले में डाल दिया रस्सा और खींच लिया। आदमी ब्रह्ममहर्त में। वे सब गाली देंगे। तमको देंगे, राम को भी देंगे, अपनी मौज से आए तो ही आता है। आदमी नाचता हआ आए कि कहां के दुष्ट! सोने नहीं देते। तो ही आता है।
जबर्दस्ती धर्म को लाने का कोई उपाय ही नहीं है। अगर कोई
सो रहा हो तो आहिस्ता से चुपचाप निकलना, ताकि कहीं जग न तीसरा प्रश्नः पच्चीस सौ वर्ष पहले महावीर ने प्रचलित जाए। उसको नींद लेने का हक है। आदमी को भटकने का हक अंधविश्वासों पर प्रहार करके सदधर्म का तीर्थ बनाया। आज है। यह आदमी की स्वतंत्रता है कि वह संसार में रहना चाहे तो आप भी उसी दिशा में गमन कर रहे हैं, फिर भी अंधश्रद्धालुओं रहे। जब तक रहना चाहे, तब तक रहे। में जाग नहीं आ रही। बीसवीं सदी में भी लोग इतने कायर क्यों परमात्मा भी बाधा नहीं डालता। प्रकृति को बनाए कितना हैं? और उनमें मिथ्या गरुओं का इतना आकर्षण क्यों है? समय हुआ होगा अगर कभी किसी ने बनाई। वह भी थक
गया होगा कि लोग अभी तक भटक ही रहे हैं। अब इनको बुला जागने का कोई संबंध सदी से नहीं है, समय से नहीं है। ही लो। कि जाकर पकड़ लाओ एक-एक को। मगर नहीं, आदमी सदा जैसा है। मकान बदल गए, रास्ते बदल गए, कपड़े परमात्मा स्वतंत्रता देता है। अनंत काल तक तुम स्वतंत्र हो।। बदल गए, आदमी की आत्मा थोड़े ही बदल गई है।
और यही मजा है, महिमा है कि स्वतंत्रता के कारण ही एक आदमी वैसा ही क्रोध करता है, वैसा ही प्रेम करता है, वैसी ही दिन तुम इस संसार से मुक्त होना चाहते हो। ईर्ष्या करता है, द्वेष करता है। जैसा तब करता था, वैसा अब | तुम अगर अभी नींद से ऊबे नहीं, तो तुम्हें जगाने से भी क्या
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