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________________ जिन सूत्र भाग : 2 -- -- अहंकार की घोषणा है। और महावीर ने तो बहुत आग्रहपूर्वक और सीधा कर लेंगे, बिलकुल सीधा कर लेंगे, रेखाबद्ध कर के कहा है कि जरा भी आग्रह रखा कि मैं ही ठीक हं. तो तम गलत डालेंगे: इससे कछ फर्क न पडेगा। हो गए। दूसरे में भी ठीक को देखने की क्षमता चाहिए। कोई फर्क न पड़ेगा। पानी का माध्यम ही लकड़ी को तिरछा कर इस पृथ्वी पर कोई भी बिलकुल गलत तो हो ही नहीं सकता। जाता है। लकड़ी तिरछी होती नहीं, दिखाई पड़ने लगती है, इस जगत में पूर्णता जैसी कोई चीज होती ही नहीं। बिलकुल | तिरछी हो गई। गलत का तो अर्थ हुआ, एक आदमी गलती में पूर्ण हो गया। भाषा का माध्यम अनुभव को तिरछा कर देता है। इसलिए मुल्ला नसरुद्दीन पर कोई नाराज हो गया और उसने कहा कि भाषा में आकर कोई भी सत्य पूर्ण नहीं रह जाता। और असत्य तम, तम पर्ण मर्ख हो। मल्ला ने कहा, ठहरो। इस जगत में पर्ण तो कभी भी परा नहीं है। इसलिए जो भी हम कहते हैं, कभी कोई होता ही नहीं। तुम मेरी खुशामद मत करो। तुम मेरी | आधा-आधा है। स्तुति मत करो। इस जगत में पूर्ण कभी कोई होता ही नहीं। यहां | यही तो जिन-शास्त्र है, यही तो जिन-देशना है कि जो भी हम सब अधूरा है। | कहते हैं, आधा-आधा है। सभी दृष्टियां हैं, दर्शन कोई भी पूर्ण मूर्ख खोजना ही असंभव है। पूर्ण गलत आदमी भी नहीं। दर्शन तो अनुभव है। खोजना असंभव है। अगर पूर्ण गलत होता तो जी ही नहीं सकता। तुम खुद ही सोचो; सुबह हुई, वृक्षों के पार क्षितिज पर सूरज | था। जी रहा है तो कहीं न कहीं सत्य के सहारे ही जीएगा। जीवन निकला. पक्षियों ने गीत गाए गनगन मचाई, मोर नाचे, रंगीन सत्य के साथ है। किरण भला हो, न हो सूरज सत्य का। | बादल फैले, तुमने देखा-दर्शन। अब तुमसे कोई कहे वर्णन छोटी-मोटी क्षीण धारा हो, न हो बाढ़ आयी हुई नदी, मगर होगी करो उसका। तो तुम जो भी वर्णन करोगे, तुम पाओगे बहुत कुछ जरूर। जी रहा है, जीवन है, तो जीवन असत्य के साथ तो हो शेष रह गया है, जो नहीं कहा जा सकता। तुम लाख रंगों का नहीं सकता। कहीं न कहीं सत्य से जुड़ा होगा। कहीं न कहीं वर्णन करो, सुननेवाले पर तुम वही प्रभाव थोड़े ही पैदा कर परमात्मा अभी भी उसमें बह रहा होगा। पाओगे, जो तुम पर पैदा हुआ था सुबह के सूरज को ऊगते | महावीर ने तो कहा है, सभी में सत्य है। इसी से तो उनका देखकर। तुम बड़े से बड़े कवि होओ, तो भी तम पाओगे, हाथ स्यातवाद पैदा हुआ, अनेकांतवाद पैदा हुआ। महावीर ने कहा है कंपते हैं, बड़े से बड़े कवि को भी लगता है कि हम सिर्फ तुतलाते कि जो-जो भी तुम्हें बिलकुल भी गलत लगता हो, उसकी दृष्टि हैं। तो जितना बड़ा कवि होता है उतना ही साफ लगता है कि हम में भी खोजोगे तो कछ न कछ तो अंश पाओगे सत्य का। पर्ण सिर्फ ततलाते हैं। छोटे-मोटे कवियों को लगत चाहे सत्य न हो, पूर्ण असत्य भी नहीं हो सकता। और महावीर दिया। उनके पास कहने को कुछ है नहीं। जिसके पास जितना ने तो कहा है, पूर्ण सत्य को कहने का कोई उपाय ही नहीं है। बड़ा दर्शन है उतनी ही भाषा की असमर्थता मालूम होती है। | इसलिए दो बातेंः जितनी दष्टियां हैं, सभी अंश सत्य हैं और रवींद्रनाथ ने मरते क्षण कहा कि हे प्रभ। यह भी त क्या कर पूर्ण सत्य को अब तक किसी ने कहा नहीं; कहा जा सकता | रहा है? अब, जब कि मैं थोड़ा गाने में कुशल हुआ जा रहा था, नहीं। कहते से ही अपूर्ण हो जाता है। वाणी में लाते ही अधूरा हो | तू मुझे विदा करने लगा? जाता है। अनभव में हो सकता है पूर्ण, अभिव्यक्ति में अपूर्ण हो एक बढा मित्र पास बैठा था. उसने कहा, क्या कह रहे हो जाता है। लाख सम्हालकर कहो, कहने के माध्यम में ही अपूर्ण तुम? कुशल हो रहे थे? तुम महाकवि हो। हो जाता है। रवींद्रनाथ ने कहा, दूसरे कहते होंगे। मेरी पीड़ा मैं जानता हूं। जैसे तम एक लकड़ी को पानी में डालो-सीधी लकड़ी को, | अगर तुम मुझसे पूछते हो तो मैं इतना ही कह सकता हूं कि मैंने पानी में तिरछी दिखाई पड़ने लगती है। लाख सम्हालकर डालो, | अभी तक जो गीत गाए, वे ऐसे ही हैं जैसे संगीतज्ञ संगीत शुरू इससे कोई संबंध नहीं है। पानी का माध्यम तिरछापन पैदा करता करने के पहले साज को बिठाता है। वीणाकार तार खींच-खींच है। तुम कहो कि हम और सम्हालकर डालेंगे। हम लकड़ी को कर देखता है, ठीक है? तबलाबाज तबला बजा-बजाकर 486 __ JanEducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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