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________________ षट पर्दो की ओट में बड़े भयभीत हैं। सही हैं तो भी निर्भय, आस्तिक सही हैं तो भी निर्भय। हम जीवन के तथ्यों से भयभीत हैं। हम जीवन के तथ्यों को __इसको ही मैं कहता हूं परम आस्तिकता। इस आदमी ने देख झुठलाना चाहते हैं। हम चाहते हैं सब बूढ़े हुए, हम न हों। सब ली बात। इस आदमी को विवेक उपलब्ध हुआ। इस आदमी के मरें, हम न मरें, जीवन हमारे लिए अपवाद कर दे। तो हम कंप पास दृष्टि है, अंतर्दृष्टि है, आंख है। रहे हैं। और हम जानते भी हैं गहरे में कि यह होनेवाला नहीं है। तुम जरा जीवन में देखना। तुम कहते हो कि कल दिवाला न अपवाद कभी कोई हुआ नहीं इसलिए डर भी लगा है। पैर निकल जाए, इससे भयभीत हो रहे हैं। या तो निकलेगा, या नहीं जमाकर खड़े हैं, जानते हुए कि पैर उखड़ेंगे। निकलेगा। निकल गया तो क्या करना है? झंझट मिटी। इस भय के कारण हम क्या-क्या कर रहे हैं, थोड़ा सोचो। इस निकल ही गया। नहीं निकला तो परेशान क्यों हो रहे हो? भय के कारण हम धन इकट्ठा करते हैं कि शायद धन से थोड़ा महावीर कहते हैं, जो होगा, होगा; तुम नाहक कंपे जा रहे हो। बल आ जाए। इस भय के कारण हम प्रतिष्ठा इकट्ठी करते हैं कि तुम्हारे कंपने से होने में तो कोई फर्क पड़ता नहीं। तो कम से कम शायद नाम-धाम लोक में ख्यात हो जाए तो कुछ सहारा मिल कंपन तो छोड़ो। जाए। भय के कारण हम पूजा करते हैं, प्रार्थना करते हैं। इस भय तीसरी लेश्या है अधर्म की। इसलिए भय से जो भगवान भय से हम भगवान को निर्मित करते हैं। सोचते हैं, शायद किसी की पूजा करते हैं, वे धर्म में प्रविष्ट नहीं होते। वे अभी अधर्म की का सहारा नहीं, अदृश्य का सहारा मिल जाए। मगर जो आदमी | सीमा में ही हैं। चौथी लेश्या से धर्म शुरू होता है। पास जा रहा है. वह जा ही न सकेगा। ये जो भयभीत लोग हैं. ये जल्दी रुष्ट हो जाते हैं। भयभीत महावीर ने कहा, अभय पहला चरण है। अभय का अर्थ आदमी शांत रह ही नहीं सकता। उसके भीतर ही कंपन जारी है। हुआ, जो नहीं होनेवाला है, वह नहीं होगा; उसका तो भय करना वह रुष्ट होने को तत्पर है। वह छोटी-छोटी बातों से दुखी होता क्या? जो होनेवाला है, वह होगा; उसका भय करना क्या? है। बड़ी क्षुद्र बातों से दुखी होता है। सुकरात मरता था; तो उसके एक शिष्य ने पूछा कि आप तुमने कभी सोचा, कैसी छोटी-छोटी बातें तुम्हें दुखी कर जाती भयभीत नहीं मालूम होते। जहर घोंटा जा रहा है, जल्दी ही हैं! अति क्षुद्र बातें। तुम सोचो तो खुद ही हंसोगे। पत्नी को प्याला भरकर आपके पास आ जाएगा। छह बजे आपको प्याला चाय लाने में पांच मिनट देरी हो गई कि बस तुम रुष्ट हो गए। पी लेना है। आप मरने को तत्पर बैठे हैं। आप भयभीत नहीं | और ऐसे रुष्ट हो गए कि शायद रोष दिनभर रहे। मालूम होते। सुकरात ने क्या कहा? सुकरात ने कहा, मैंने | लोग कहते हैं, बिस्तर के गलत कोने से उतर गए। गलत से सोचा कि या तो प्याला पीकर मैं मर ही जाऊंगा, कुछ बचेगा ही भी उतर गए हो तो उतर गए, खतम हुआ। मगर अब नहीं, तो भय क्या? भय करने को ही कोई न बचेगा। और या, दिनभर...वह जो बिस्तर के गलत कोने से उतर गए हैं, वह दूसरी संभावना है कि जैसा लोग कहते हैं, आत्मा अमर है। दिनभर पीछा कर रहा है। किसी आदमी ने नमस्कार न किया कि जहर का प्याला पीकर शरीर ही हटेगा, आत्मा बचेगी; तो फिर दिनभर छाया की तरह कांटा चुभता रहता है। कोई आदमी भय क्या? बचूंगा ही। देखकर हंस दिया, रुष्ट हो गए। सुकरात कह रहा है, दो ही तो विकल्प हैं कि या तो बिलकुल ऐसे छुई-मुई, ऐसे दीन होकर संभव नहीं है कि तुम कभी मिट जाऊंगा। मिट जाऊंगा तो क्या भय? भयभीत होने के आत्मवान हो सको। जरा देखो भी तो, किन बातों पर रुष्ट हो रहे लिए कोई कारण ही नहीं। कोई भय करनेवाला ही नहीं। बात ही हो। इन बातों में कुछ सार भी है? समाप्त हो गई। कहानी का ही अंत हो गया। तो में निश्चित हूं। अगर तुम गौर से देखोगे तो सौ में से निन्यानबे तो तुम असार और अगर बच गया जैसा आत्मज्ञानी कहते हैं तो भय की पाओगे, जिनमें रुष्ट होने का कोई कारण नहीं है। और एक जो क्या जरूरत? तुम सार की पाओगे, उसके साथ तुम पाओगे कि अगर तुम रुष्ट या तो नास्तिक सही होंगे, या आस्तिक सही होंगे। नास्तिक हो जाओ तो बिगड़ जाएगी बात। वह जो सार की बात है, अगर Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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