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जिन सूत्र भाग 2
है, तो तुम फिक्र मत करना। सारी दुनिया एक तरफ हो तो भी | श्रद्धा बढ़ती हो, और जिससे भी तुम्हें लगता हो, जीवन का चिंता मत करना।
| असत हट रहा है और सत बढ़ रहा है, फिर तुम चिंता मत और इस अखंडता से ही आनंद का रस बहता है। जितने तुम करना। फिर तुम बिलकुल अकेले हो तो भी सही हो। खंडित, उतने दुखी। जितने तुम अखंड, उतनी ही रसधार बहती और खयाल रहे, दुनिया में सत्य भीड़ के पास नहीं होता, है। उस आनंद का भरोसा करना। और आनंद बढ़ता जाए, तो कभी-कभी अकेले व्यक्तियों के पास होता है-कभी-कभी! सारी दुनिया कहे तुम पागल हो तो स्वीकार कर लेना कि हम दुर्भाग्य है लेकिन ऐसा ही है। कभी-कभी कोई एकाध विलक्षण पागल हैं। लेकिन हम आनंदित हैं। तुम दुनिया का दुख, चिंता, व्यक्ति सत्य को उपलब्ध होता है। भीड़ तो भेड़-चाल चलती
और परेशानी मत चुनना क्योंकि दुनिया कहती है कि वास्तविकता है। भीड़ तो लकीर की फकीर होती है। भीड़ तो दूसरे जहां जा कुछ और है। तुम आनंद को ही वास्तविकता समझना। रहे हैं वहीं चलती है।।
सच्चिदानंद की परिभाषा भले नहीं। वेदांत ने खब शास्त्र मल्ला नसरुद्दीन मस्जिद में नमाज पढने गया था। जब वह लिखे सच्चिदानंद पर, मगर किसी ने भी यह फिक्र नहीं की, कि नमाज पढ़ने बैठा तो उसका कुर्ता, पीछे से एक कोना उठा हुआ सच्चिदानंद का मौलिक अर्थ क्या होगा! ये केवल भगवान के था, धोती में उलझा होगा तो पीछे के आदमी ने कुर्ता खींचकर गुण नहीं हैं, यह साधक की कसौटी भी है। जैसे-जैसे तुम्हारे ठीक कर दिया। मुल्ला ने सोचा कि शायद कुर्ता खींचना इस भीतर सत बढ़े-सत का अर्थ होता है अखंड बनो। तुम्हारी मस्जिद का रिवाज है। तो उसने अपने सामनेवाले आदमी का बीइंग तुम्हारी आत्मा बने। जैसे-जैसे तुम्हारे भीतर चित बढ़े, कुर्ता खींचा। उस आदमी ने पूछा, क्यों जी! किसलिए कुर्ता तुम्हारा चैतन्य बढ़े, बेहोशी घटे, और जैसे-जैसे तुम्हारे भीतर खींचते हो? उसने कहा, मेरे पीछेवाले से पूछो। मुझे कुछ पता आनंद बढ़े...।
नहीं। मैं तो समझा कि यहां का रिवाज है। ये परमात्मा के ही गुण नहीं हैं, ये साधक के रास्ते के लिए तुम न मालूम कितने लोगों के कुर्ते खींच रहे हो! क्योंकि मापदंड हैं, कसौटी हैं। जैसे सुनार सोने को कसने के लिए एक तुम्हारा कुर्ता खींच दिया गया है। तुम सोचते हो, यहां का रिवाज पत्थर रखता है, उस पर कसता रहता है। कसकर देख लेता है, है। तुम सौ में से निन्यानबे काम ऐसे कर रहे हो जो कि तुम देखते सोना है या नहीं। तुम सच्चिदानंद के पत्थर पर कसकर देखते हो दूसरे कर रहे हैं। किसी ने कहा, फलां फिल्म अच्छी चल रही रहना। कोई भी अनुभव हो! आनंद देता हो, चैतन्य बढ़ता हो, | है-चले! खीच दिया किसी ने कुतो। खड़े हैं क्यू में, खीच रहे सत्य बढ़ता हो, तुम्हारे जीवन का अस्तित्व मजबूत होता हो, बल हैं दूसरों का कुर्ता। आता हो, आत्मा सघन होती हो, तुम ज्यादा केंद्रित होते हो, फिर तुम अपनी बुद्धि से कभी जीयोगे? फैशन ऐसे बदलते रहते फिक्र छोड़ देना।
हैं। जीवन के ढंग ऐसे बदलते रहते हैं। बस चल पड़ती है एक उपनिषद के ऋषियों की बड़ी प्रसिद्ध प्रार्थना है :
बात। कोई चला दे! उसका सतत प्रचार करता रहे, चल पड़ती 'असतो मा सदगमय।
है। पकड़ा दे। इसीलिए तो विज्ञापन का इतना प्रभाव हो गया तमसो मा ज्योतिर्गमय।
दुनिया में। पश्चिम के विकसित मुल्कों में जो चीज बाजार में दस मृत्योर्माअमृतं गमय।'
साल बाद आएगी, दस साल पहले विज्ञापन शुरू हो जाता है। असत से सत का ओर। वह जो भ्रामक है, प्रतीति मात्र है, अभी वह चीज आयी भी नहीं बाजार में। आएगी भी कभी, यह आभास मात्र है, उससे उसकी ओर-जो भ्रामक नहीं, प्रतीति | भी पक्का नहीं। दस साल बाद का क्या पक्का है? लेकिन दस नहीं, आभास मात्र नहीं। अंधकार से ज्योति की ओर। और साल पहले बाजार में काम शुरू हो जाता है, विज्ञापन शुरू हो मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो, हे प्रभ!
जाता है। क्योंकि पहले बाजार पैदा करना पड़ता है। तो तम्हारे भीतर जिससे भी ज्योति बढती हो. अंधेरा कम होता बाजार तम कैसे पैदा करते हो? पराने अर्थशास्त्री कहते थे कि | हो; और जिससे भी मृत्यु का भय कम होता हो और अमृत की जहां-जहां मांग होती है वहां-वहां पूर्ति होती है। जब लोगों की
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