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जिन सूत्र भाग : 2
प्रगट होने लगता है। तुम क्रोध छिपाना चाहते हो, तुम्हारे चारों | किसका क्या बिगाड़ रहे थे? किसी से कुछ लेना-देना न था। तरफ क्रोध की छाया पड़ने लगती है। तुम लोभ छिपाना चाहते | अपनी मौज में मस्त। दीवाने ढंग के आदमी थे। रहने देते इस हो, वह तुम्हारे चारों तरफ उसकी छाया पड़ने लगती है। तुम्हारे | दीवाने को। कौन किसका क्या बिगाड़ रहा था? किसी का कुछ छिपाए कुछ भी छिपेगा नहीं।।
नकसान नहीं था। लेकिन जो आदमी इसके करीब आया उसे लाख बैठे कोई छुप-छुप के कमींगाहों में
बेचैनी हुई। खून खुद देता है जल्लादों के मस्कन का सुराग
तुमने कहानी सुनी? अकबर ने अपने दरबारियों से कहा, यह साजिशें लाख उढ़ाती रहें जुलमत की नकाब
लकीर मैं खींच देता हूं। इसे बिना छुए छोटा कर दो। वे नहीं लेकर हर बूंद निकलती है हथेली पे चिराग
कुछ कर पाए। बीरबल उठा, उसने एक बड़ी लकीर उसके पास तुम किसी की हत्या करो, लाख छिपाने की कोशिश करो, | खींच दी। वह लकीर छोटी हुई बिना छुए। एक-एक बूंद चिराग लेकर तुम्हारी खबर देने लगती है। तुम | महावीर या बद्ध के पास जब तम खड़े होते हो, अचानक तम | चोरी करो, तुम लाख छिपाने की कोशिश करो, तुम्हारी आंखें, | छोटे हो गए। बड़ी लकीर खिंच गई। तुम नाराज होते हो। तम्हारे हाथ-पैर, तम्हारा उठना-बैठना, सब तुम्हारे चोर होने की | तुम्हारी नाराजगी तुम्हारे इस दीनभाव से
मने खबर देने लगते हैं। वह तो तुम अंधों के बीच रहते हो, इसलिए | मुझे छोटा किया। कुछ किया नहीं किसी ने। तुम्हें छुआ भी शायद लोगों को पता नहीं चलता। क्योंकि वे खुद, खुद को | नहीं। लेकिन अब महावीर भी क्या करें, उनकी बड़ी लकीर है। छिपाने में लगे हैं, तुम्हारी फिक्र किसको है? तुम चोरों के बीच | मजबूरी है। तुम पास आते हो, तुम्हारी छोटी लकीर! तुम छोटे | रहते हो, इसलिए तुम्हारी चोरी शायद थोड़ी-बहत छिप भी जाती | मालम पड़ते हो।। है, पता नहीं चलता।
कहते हैं, ऊंट पहाड़ों के पास जाने से डरते हैं। डरते हों, इसीलिए लोग संतों के पास जाने से डरते हैं। इसीलिए लोगों क्योंकि तब तक पहाड़ नहीं होता तब तक वे पहाड़ होते हैं। जब ने संतों का सदा ही बहिष्कार किया। कभी उनको पत्थर मारे, पहाड़ के पास जाते हैं, तब पता चलता है, अरे। हम और कछ कभी जहर पिलाया, कभी सूली लगा दी। इसके पीछे कोई बहुत भी नहीं। मगर ऊंट इतने नासमझ नहीं हैं कि पहाड़ों को सूली पर महत्वपूर्ण कारण है। इतने लोग नाराज क्यों थे? जीसस से लटका दें। कि पहाड़ों को जहर पिला दें। मगर आदमी बड़ा नाराजगी का कारण क्या था? सीधा-सादा आदमी! रहा होगा पागल है। थोड़ा झक्की। बाकी किसी का कोई नुकसान तो कर नहीं रहा हम नाराज रहे सुकरात पर, जीसस पर, बुद्ध पर, महावीर था। इसके लोग पीछे क्यों पड़ गए? इसको मार डालने की पर। हमारी नाराजगी का कारण है। हमारे अंधेरे पर्दे, हमारी इतनी क्या आतुरता?
अंधेरी शकलें, हमारे घाव भरे हुए चित्त, हमारी बहती मवाद, कुछ अड़चन थी। यह आदमी एक चलता-फिरता आईना हमारी सड़ांध, सब उनके सामने आकर खलने लगती है। वहां | था। जो आदमी इसके सामने आया, उसे अपनी शक्ल दिखाई छिपाना मुश्किल हो जाता है। उनके सामने हम आकर बेपर्दा पड़ी। नाराजगी आती है आईने पर। लोग अगर आईने में होने लगते हैं। और वे हमसे कहते हैं, बेपर्दा हो जाओ। तो एक देखकर उन्हें पता चले कि कुरूप हैं तो आईने को तोड़ देते हैं। दिन ऐसी घड़ी भी आएगी, जब सब पर्दे गिर जाएंगे, तब तुम क्योंकि वे कहते हैं, यह आईना हमें कुरूप बनाए दे रहा है। पाओगे कि तुम्हारे भीतर वह छिपा है, जो सदा कुंआरा है; जो
लोग जीसस पर नाराज हो गए। क्योंकि इस जीसस की सदा पवित्र है; जिसको रुग्ण होने का कोई उपाय नहीं और मौजूदगी में जो-जो उन्होंने छिपाया था, वह उदघोषित होने | जिसके अशुद्ध होने की कोई संभावना नहीं। लगा। इस आदमी की मौजूदगी में छिपाना मुश्किल था। लेकिन उस तक जाने के लिए, बड़ी बीमारियां हमने पाल रखी
महावीर को लोगों ने खूब पत्थर मारे, खूब परेशान किया। | हैं, उनको गिराना होगा। उन बीमारियों को हमने बड़े गांवों से भगाया। कहीं टिकने न दिया। क्या अड़चन? महावीर | साज-संवारकर रखा है। बड़ा आगंन छवा, लिपा पुताकर रखा
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