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BAAREEWANATION
छह पथिक और छह लश्याएं
इस पर मैं जोर देना चाहता हूं। क्योंकि इस बात ने कि कभी आदमी परिचित होता, पहचाना होता, जाना-माना होता। मरने के बाद होगा, लोगों को बड़ा निश्चित बना दिया है। लोग मैंने सुना है, एक बस में एक हिंदू और पचास मुसलमान यात्रा सोचते हैं, देखेंगे जब होगा तब देखेंगे। आदमी की सोचने की कर रहे थे। बस उलट गई, सब मर गए। किसी ने किसी को सीमा है।
कहा कि सुना तुमने? बस उलट गई। पचास मुसलमान और जैसे कोई तुमसे कहे कि आज शाम तुम मर जाओगे, तो तुम एक हिंदू मर गए। उस आदमी ने कहा, अरे, बेचारा आदमी! बहुत घबड़ा जाओगे। वह कहे कि सात दिन बाद मरोगे तो तुम हिंदू रहा होगा वह; उसने कहा, बेचारा आदमी। हिंदू के लिए उतने न घबड़ाओगे। तुम कहोगे, सात दिन? देखेंगे। सात | पीड़ा हुई, बाकी पचास मुसलमान के लिए कोई...। दिन...कोई अभी आज तो मर नहीं रहे। कोई कहे, सात साल | तुमको भी नहीं लगता, जब पचास मुसलमान मर जाएं तो कुछ बाद मरोगे तो कुछ चोट न मालूम पड़ेगी। कोई कहेगा, सत्तर चोट नहीं मालूम पड़ती। मुसलमान थे, बात खतम हो गई। साल बाद मरोगे। तुम कहोगे, छोड़ो भी! सात सौ साल बाद | मुसलमान सुनता है, हिंदू मर गए, कुछ अंतर नहीं पड़ता। हिंदू कोई कहे तो...।
थे। जैसे हिंदुओं में कोई प्राण नहीं, कोई जीवन नहीं। कोई मृत्यु वक्तव्य तो वही है कि मर जाओगे। लेकिन जैसे-जैसे समय हिंदू की भी होती है कहीं! अच्छा हुआ मर गए। मुसलमान बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे तुम्हारी चिंता क्षीण होती चली मरता है तो पीड़ा होती है मुसलमान को। जाती है।
जो निकट मालूम पड़ता है...।। तुमने कभी खयाल किया। एक आदमी मर जाए तुम्हारे पड़ोस हिरोशिमा में एक लाख आदमी मर गए एक साथ, तो भी में तो पीड़ित हो जाते हो तुम। फिर पता चलता कि कहीं अफ्रीका दुनिया में ऐसा नहीं हुआ कि दुख की लहर फैल गई हो। लोगों ने में हजार आदमी मर गए, कि बांगला देश में दस हजार आदमी पढ़ लिया अखबार में, सुन लिया, लेकिन कोई चोट न हुई। मर गए। एक आदमी का मरना पड़ोस में तुम्हें पीड़ित कर देता सीमा के बाहर हो गई बात।। है। दस हजार आदमी बांगला देश में मरते हैं, तुम अखबार पढ़ । __ आदमी की बड़ी छोटी-सी सीमा है। उसकी रोशनी बड़ी लेते हो; कुछ भी नहीं होता।
टिमटिमाती हुई थोड़ी-सी सीमा पर पड़ती है। उसके पार फिर क्या मामला है? इससे क्या फर्क पडता है. तम्हारे पडोस में कछ अंतर नहीं पड़ता। मरे, एक मील पर मरे कि हजार मील पर मरे! लेकिन सीमा है तो तुमने जो व्याख्या सुनी है अब तब कि मरने के बाद, अगर तुम्हारी। तुम्हारी पत्नी मर जाए तो ज्यादा पीड़ा होती है। पड़ोसी तुम गलत लेश्याओं के साथ ग्रसित रहे तो दुर्गति होगी, नर्क में की पत्नी मर जाए तो उतनी पीड़ा नहीं होती। जरा दूर है। चाहे पड़ोगे। मरने के बाद नर्क में पड़ोगे? तुम्हें कोई फिक्र नहीं होती, एक घर का ही फासला हो, मगर फासला हो गया। किसी और | इसकी कोई चोट ही नहीं पड़ती। की पत्नी मरी।
मैं तुमसे कहता हूं, इस व्याख्या ने आदमी का बड़ा नुकसान जैसे तम्हारे चित्त से दूरी होती जाती है, वैसे-वैसे तुम्हारी चिंता, | कर दिया। यह व्याख्या सही है। अगर जीवनभर गलत तुम्हारी बेचैनी कम होती जाती है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि | लेश्याओं का संबंध रहा तो तुम्हारा अगला जीवन इन्हीं गलत मनुष्य के मन की बड़ी सीमाएं हैं। एक आदमी मरे और हजार | भित्तियों पर खड़ा होगा। तो दुर्गति तो होनेवाली है। लेकिन मैं
आदमी मरें, तो दोनों खबरें सुनकर तुम्हें हजार गुना दुख नहीं तुम्हें याद दिलाना चाहता हूं कि तुम टालो मत। दुर्गति अभी भी होता, जब हजार आदमी मरते हैं। खयाल किया? एक आदमी | हो रही है, इसीलिए कल भी होगी, परसों भी होगी। जो अभी हो मर गया, हजार आदमी मर गए, दस हजार आदमी मर रही है, उसको अभी देखने की कोशिश करो। कहीं ऐसा न हो गए...दस हजार आदमी मरे सुनकर क्या तुम्हें दस हजार गुना | कि मौत के बाद सोचकर तुम टाल ही दो। दुख होता है? संभावना तो यह है कि शायद उतना भी न हो, | 'पीत, पद्म, शुक्ल, ये तीनों धर्म या शुभ लेश्याएं हैं। इनके जितना एक आदमी के मरने से होता था-अगर वह एक | कारण जीव विविध संगतियों में उत्पन्न होता है।'
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