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________________ जिन सूत्र भाग: 2 NeSTER आज्ञा तुम्हारे व्यक्तित्व के लिए सहज स्वीकृत हो जाएगी। इतनी पहली दफा गुलामी के बाहर होते हो। तुम्हारी आज्ञा चलती है जागरूकता में जो भी कहा जाएगा, जो भी निर्णय लिया जाएगा, | तुम्हारे ऊपर। महावीर का शब्द भी बड़ा सुंदर है: शुक्ल। वह तत्क्षण पूरा होने लगेगा। क्योंकि अब कोई विरोधी नहीं पूर्णिमा हो गई। सब अंधेरा गया। कोना-कोना जाग्रत हो उठा। रहा। अब तुम एक-सूत्र हुए, एक-जुट हुए। अब तुम्हारे भीतर अगर आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा से हम समझना चाहें तो दो आंखें न रहीं, एक आंख हुई। दो थीं तो द्वंद्व था। एक कुछ पहले तीन चक्र, जिसको फ्रायड कांशस माइंड कहता है, चेतन कहती, दूसरी कुछ कहती। यही अर्थ है उस प्रतीक का-तृतीय मन कहता है, उसके हैं। दूसरे तीन चक्र, जिनको महावीर धर्म नेत्र का। अब एक आंख हुई। तुम एक-दृष्टि हुए। लेश्या कहते हैं, अनकांशस माइंड के, अचेतन मन के हैं। और जीसस ने अपने शिष्यों को कहा है, जब तक तुम्हारी दो आंखें | सातवीं स्थिति सुपरकांशस माइंड की है, अति-चेतन मन की। एक आंख न बन जाए, तब तक तुम मेरे प्रभु के राज्य में प्रवेश न जो व्यक्ति तीन चक्रों में ही जीता, वह ऊपर-ऊपर जीता है। जैसे कर सकोगे। कोई व्यक्ति अपने घर के बाहर पोर्च में जीता हो। वहीं दो का अर्थ है, भीतर खंड-खंड बंटे हैं हम। एक मन कुछ टीन-टप्पर बांधकर रहने लगा है। पूरा महल खाली पड़ा है। कहता, दूसरा मन कुछ कहता। एक मन कहता है, अभी तो भोग पूरा महल उसका है, जन्मसिद्ध उसका अधिकार है, लेकिन लो। एक मन कहता है, क्या रखा भोगने में? छोड़ो। एक मन स्मरण नहीं रहा। वह भीतर जाना भूल गया है। याद खो गई। कहता है, मंदिर चलो-प्रार्थना की पावनता। दूसरा मन कहता विस्मरण हो गया है। है, व्यर्थ समय खराब होगा। घंटेभर में कुछ रुपये कमा लेंगे। तो जो व्यक्ति पहले तीन चक्रों में ही जी लेते हैं, उन्हें अपने ही बाजार ही चलो। प्रार्थना बूढ़ों के लिए है, अंत में कर लेंगे। मरते पूरे महल का कोई पता नहीं चल पाता। जो व्यक्ति अपने भीतर वक्त कर लेंगे। इतनी जल्दी क्या है? अभी कोई मरे नहीं जाते। प्रवेश करते हैं और छठवें चक्र तक पहुंचते हैं, उन्हें अपने महल तुमने खयाल किया? कि मन कभी भी निर्णीत नहीं होता। में निवास मिलता है। पहले तीन चक्र थोड़े-से रोशन हैं। बाकी अनिर्णय मन का स्वभाव है। छोटी-छोटी बातों में अनिर्णीत | तीन चक्र अभी बिलकुल अंधेरे में पड़े हैं। इसीलिए फ्रायड होता है। कौन-सा कपड़ा आज पहनना है, इसी के लिए मन उनको अनकांशस कहता है; अचेतन कहता है। लेकिन वे अनिर्णीत हो जाता है। किस फिल्म को देखने जाना, इसीलिए अचेतन इसीलिए हैं कि तुम वहां नहीं गए। तुम्हारे जाते ही चेतन अनिर्णीत हो जाता है। जाना कि नहीं जाना इसी के लिए आदमी हो जाएंगे। तुम जहां गए वहीं चेतना पहुंच जाती है। तुम्हारी सोचने लगता है, डांवाडोल होने लगता है; जैसे तुम्हारे भीतर दो दृष्टि जहां पड़ी, वहीं चैतन्य का जन्म हो जाता है। तुम वहां गए आदमी हैं, एक नहीं। नहीं इसलिए। आज्ञाचक्र पर आकर तुम्हारा द्वंद्व समाप्त होता है, तुम एक ऐसा समझो, चौदह साल तक बच्चा बड़ा होता है। तब तक बनते हो। इसलिए पतंजलि ने उसे आज्ञाचक्र कहा क्योंकि तुम उसका काम-केंद्र अचेतन रहता है। ऐसा कम से कम अतीत में पहली दफा स्वामी बनते, मालिक बनते। जब तक आज्ञाचक्र न | तो रहता था। अब जरा मुश्किल है। क्योंकि काम-चेतना के खुल जाए तब तक कोई अपना मालिक नहीं। | शोषण करने के लिए इतने लोग आतुर हैं कि छोटे बच्चों की मैंने तुम्हें स्वामी कहा है, तुम्हें संन्यास दिया है। तुम स्वामी मेरे काम-चेतना भी परिपक्व हुए बिना जाग्रत हो जाती है। कहने से हो नहीं गए। यह तो सिर्फ दिशा-निर्देश किया है। यह एक बड़ी हैरानी की घटना अमरीका में घट रही है। लड़कियां तो तुम्हारे भीतर आकांक्षा का बीज डाला है। यह तो तुम्हारी दो साल पहले मासिक धर्म से ग्रस्त होने लगी हैं। चौदह साल में अभीप्सा जगाई है। यह तो तम्हें एक दष्टि और दिशा दी है। यह होती थीं, अब वे बारह साल में होने लगी हैं। मालम होता है कि तो तुम्हारे लिए बोध दिया है कि यह तुम्हें होना है। इससे होने के चारों तरफ का दबाव, वासना का ज्वार चारों तरफ-फिल्म हो. पहले रुकना मत, जब तक कि स्वामी न हो जाओ। टेलीविजन हो, रेडियो हो, पोस्टर हो, अखबार हो; और सब तो ठीक, आज्ञाचक्र बड़ा सुंदर शब्द है। वहां आकर तुम तरफ की हवा और सब तरफ छिछला प्रदर्शन शायद मनुष्य की 422 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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