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________________ जिन सूत्र भाग: 2 राग शब्द का अर्थ रंग होता है। लगा देते हैं। चाक को जोर से घुमाते हैं तो सातों रंग खो जाते हैं, विराग शब्द का अर्थ, रंग के बाहर हो जाना होता है। सफेद रंग रह जाता है। सफेद रंग सातों रंगों का जोड़ है। या वीतराग शब्द का अर्थ होता है, रंग का अतिक्रमण कर जाना। सातों रंग सफेद रंग से ही जन्मते हैं। अब तुम पर कोई रंग न रहा। क्योंकि जब तक रंग है, तब तक इंद्रधनुष पैदा होता है हवा में लटके हुए जलकणों के कारण। स्वभाव दबा रहेगा। तब तुम्हारे ऊपर कुछ और पड़ा है। चाहे | जलकण लटका है हवा में, सूरज की किरण निकलती है, टूट सफेद ही क्यों न हो, शुभ्र ही क्यों न हो। | जाती है सात हिस्सों में। सूरज की किरण सफेद है। हम तो काली अंधेरी रात में दबे हैं। महावीर पूर्णिमा को भी | लेकिन महावीर कहते हैं, सफेद के भी पार जाना है। अधर्म के कहते हैं, कि वह भी पूर्ण अनुभूति नहीं है। अमावस तो छोड़नी | तो पार जाना ही है, धर्म के भी पार जाना है। अधर्म तो बांध ही ही है, पूर्णिमा भी छोड़ देनी है। कृष्ण लेश्या तो जाए ही, शुक्ल | लेता है, धर्म भी बांध लेता है। धर्म का उपयोग करो अधर्म से लेश्या भी जाए। कृष्ण पक्ष तो विदा हो ही, शुक्ल पक्ष भी विदा | मुक्त होने के लिए। कांटे को कांटे से निकाल लो, फिर दोनों हो। तुम पर कोई पर्दा ही न रह जाए। तुम बेपर्दा हो जाओ। कांटों को फेंक देना। फिर दूसरे कांटे को भी सम्हालकर रखने इसलिए महावीर नग्न रहे। वह नग्न सचक है। ऐसी ही की कोई जरूरत नहीं है। बीमारी है औषधि ले लो। बीमारी आत्मा भी भीतर नग्न हो, तभी उसका अहसास शुरू होता है। समाप्त हो, औषधि को भी कचरे-घर में डाल आना। फिर और जब अपनी आत्मा का पता चले तो औरों की आत्मा का पता | | बीमारी के बाद औषधि को छाती से लगाए मत घूमना। वह चलता है। जितना गहरा हम अपने भीतर देखते हैं, उतना ही केवल इलाज थी। उसका उपयोग संक्रमण के लिए था। गहरा हम दूसरे के भीतर देखते हैं। जैसे-जैसे शुभ लेश्याओं का जन्म होता है, जैसे-जैसे आदमी हमें तो अभी मनुष्यों में भी आत्मा है, इसका भरोसा नहीं | श्वेत की तरफ बढ़ता है, वैसे-वैसे दृष्टि की गहराई बढ़ती है। होता। ज्यादा से ज्यादा अनमान...होनी चाहिए। है, ऐसी कोई वैसे-वैसे दसरों में भी परमात्मा की झलक मिलती है। प्रामाणिकता नहीं मालूम होती। अंदाज करते हैं-होगी। श्वेत लेश्या की आखिरी घड़ी में जब पूर्णिमा का प्रकाश जैसा तर्कयुक्त मालूम पड़ती है कि होनी चाहिए। लेकिन वस्तुतः है, भीतर हो जाता है तो पत्थर में भी परमात्मा दिखाई पड़ता है। इसी ऐसा कोई अस्तित्वगत हमारे पास प्रमाण नहीं है। अपने भीतर अनुभव से महावीर की अहिंसा का जन्म हुआ। ही प्रमाण नहीं मिलता, दूसरे के भीतर कैसे मिले? | महावीर जो कहानी कहे हैं...महावीर ने बहुत कम बोध महावीर कहते हैं, जैसे-जैसे पर्दे उठते हैं, वैसे-वैसे तुम्हें दूसरे कथाओं का उपयोग किया है। उन बहुत कम बोध कथाओं में में आत्मा दिखाई पड़नी शुरू होती है। ऐसी घड़ी आती है, जब एक यह हैः । पत्थर में भी आत्मा दिखाई पड़नी शुरू होती है। 'छह पथिक थे। जंगल के बीच जाने पर भटक गए। भूख तेजो लेश्या से क्रांतिकारी परिवर्तन शुरू होता है। पहली तीन लगी। कुछ देर बाद उन्हें फलों से लदा एक वृक्ष दिखाई दिया। लेश्याएं अधर्म की, बाद की तीन लेश्याएं धर्म की-तेजो, पद्म फल खाने की इच्छा हुई। मन ही मन विचार करने लगे। पहले ने और शुक्ल। तेजो लेश्या के साथ ही तुम्हारे भीतर पहली झलकें | सोचा, पेड़ को जड़मूल से काटकर इसके फल खाए जाएं।' आनी शुरू होती हैं। महावीर कहते हैं, यह कृष्ण लेश्या में दबा हुआ आदमी है। ये रंगों के आधार पर पर्दो के नाम रखे महावीर ने। यह जीवन यह अपने छोटे-से सुख के लिए, क्षणभंगुर सुख के का इंद्रधनुष है। है तो रंग एक ही। वैज्ञानिक उसे कहते हैं श्वेत। लिए...भूख थोड़ी देर के लिए मिटेगी, फिर लौट आएगी। भूख बाकी सब रंग श्वेत रंग के ही खंड हैं। | सदा के लिए तो मिटती नहीं। लेकिन यह पूरे वृक्ष को मिटा देने इसलिए प्रिज्म के कांच के टुकड़े से जब सूरज की किरण को आतुर है। इसे वृक्ष की भी आत्मा है, वृक्ष को भी भूख लगती गुजरती है तो सात रंगों में बंट जाती है। या तुमने कभी स्कूल में है, प्यास लगती है, वृक्ष को भी सुख और दुख होता है, इसकी बच्चों के समझाने के लिए देखा हो तो एक चाक पर सात रंग कोई प्रतीति नहीं है। 416 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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