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________________ 1 हला प्रश्नः मक्खली गोशालक के जीवन के चूंकि उसने कोई दर्शन नहीं बनाया, इसीलिए उसकी कोई १ अनेक प्रसंग जैन शास्त्रों में मिलते हैं, लेकिन परंपरा नहीं बन सकी। लोग तो सुरक्षा चाहते हैं। लोग तो कोई उनका उल्लेख किसी आदर के साथ नहीं किया सिद्धांत चाहते हैं। सत्य की किसको चिंता है? लोग चाहते हैं, गया है। गोशालक को वे कलहप्रिय और उद्धत कहने के साथ कोई सिद्धांत हाथ में आ जाए, जिससे हम जीवन के उलझाव को ही साथ विलक्षण भी बताते हैं। आप तो उसका नाम आदर के किसी भांति सुलझा लें। सुलझे, न सुलझे, हमें भरोसा आ जाए साथ लेते हैं। क्या गोशालक का अपना कोई दर्शन था? और कि सुलझ गया, तो हम निश्चित हो जाएं। रंपरा के मर जाने से जैनियों ने उसके साथ लोग अपनी चिंता मिटाना चाहते हैं। इसलिए गोशालक जैसे अन्याय किया? इस पर कुछ प्रकाश डालने की कृपा करें। | व्यक्ति लोगों को प्रीतिकर नहीं लगते। क्योंकि वे तुम्हारी चिंता | मिटाने का कोई उपाय नहीं करते। वे तो तुमसे कहते हैं, तुम्हारी नक का निश्चित ही एक जीवन-दष्टिकोण था। दर्शन चिंता ही व्यर्थ है। वे कहते हैं. हल कोई नहीं है. चिंतित होना कहना उसे उचित नहीं, क्योंकि शास्त्रबद्ध, सूत्रबद्ध जीवन- व्यर्थ है, यह समझ लो। बस इतना काफी है। प्रणाली बनाने में उसका कोई भरोसा नहीं था। उसकी दृष्टि यही | हम प्रश्न पूछते हैं, हम उत्तर की अपेक्षा करते हैं। हम कहते हैं, थी कि जीवन इतना बड़ा रहस्य है कि दर्शन में समा सके यह | संसार किसने बनाया? यह प्रश्न हमारे भीतर कांटे की तरह संभव नहीं है; जीवन का कोई दर्शन हो सकता है, यह संभव चुभता है। कोई कह देता है, ईश्वर ने बनाया। यद्यपि कुछ हल नहीं है। नहीं होता। क्या हल होगा? कोई अंतर नहीं पड़ता। इसलिए सभी दर्शन किसी न किसी रूप में मनुष्य की फिर अगर तुम पूछना चाहो तो पूछ सकते हो, ईश्वर को कल्पनाएं हैं और जबर्दस्ती जीवन के ऊपर आरोपित किए जाते | किसने बनाया? लेकिन एक तरह की राहत मिलती है कि हैं। जीवन बड़ा है, शब्द बड़े छोटे हैं। सत्य बहुत बड़ा है, सिद्धांत चलो...। वह जो एक भीतर कांटे की तरह चुभता प्रश्न था, बहुत छोटे हैं। सत्य को फांसी लग जाती है सिद्धांतों में डालने हल हुआ। ईश्वर ने बनाया। से। शब्दों में समाने की चेष्टा में ही विराट सत्य मर जाता है। गोशालक जैसे व्यक्ति, जब तुम उनसे पूछो, जगत किसने इसलिए मक्खली गोशाल दार्शनिक तो नहीं है। कोई परंपरा बनाया, तो कंधा बिचका देते हैं। वे कहते हैं, हमें नहीं मालूम बनानेवाला भी नहीं है। पर उसकी एक जीवन-दृष्टि है। दर्शन और किसी को नहीं मालूम। इस फर्क को समझना। मैं उस नहीं कहता, सिर्फ जीवन-दृष्टि है। और जीवन-दृष्टि दुनिया में तीन तरह के लोग हैं। एक, जो कहते हैं, ईश्वर ने उसकी बड़ी बहुमूल्य है, समझने जैसी है। बनाया; हमें मालूम है। दूसरे, जो कहते हैं, ईश्वर ने नहीं 393 ___JainEducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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