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________________ जिन सूत्र भाग : 2 कि यह सुंदर स्त्री, जब दुकान पर बैठकर धन कमा रहा हूं, तब मगर कहानी बड़ी प्रीतिकर है। यह अप्सरा तुम्हारी इंद्रियों से इतना नहीं सताती। यह मंदिर में क्यों पीछा करती है? आयी, इसलिए इंद्र ने भेजी। यह तुम्हारी ही इंद्रियों का ऋषि-मुनियों की कथाएं हैं, अप्सराएं सता रही हैं उनको। कोई सार-निचोड़ है। तुम्हारी आंखों ने जो देखा, और जो सार किसी को सताएगा? अप्सराओं को क्या पड़ी है? | निचोड़ा, तुम्हारे कानों ने जो सुना और सार निचोड़ा, तुम्हारे हाथों ऋषि-मुनियों से क्या लेना-देना! और सताना ही होता तो कोई ने जो छुआ और सार निचोड़ा। यह तुम्हारी सारी इंद्रियों ने जो ढंग के आदमी चुनतीं—ऋषि-मुनि! सूखे, हड्डी-कंकाल! निचोड़ा, इन सारी इंद्रियों के पीछे बैठा हुआ मन है, इंद्र। इंद्रियों काफी समय हो गया तब मर चुके। न देह में सौंदर्य रहा, न देह में | का मालिक यानी इंद्र। उस मन में जो इकट्ठा हो गया है। रस रहा। इनको अप्सराएं स्वर्ग से सताने आ रही हैं। अधर्म-ध्यान से जो-जो निष्पत्तियां वहां इकट्ठी हो गई हैं कहीं कुछ गड़बड़ है। ऋषि के मन में ध्यान के पुराने साहचर्य, | जन्मों-जन्मों की यात्रा में, वे ही जब तुम ध्यान करने बैठोगे, संबंध बने हैं। स्त्रियों पर ध्यान किया होगा। अब कहते हैं, | तुम्हारे सामने खड़ी हो जाएंगी। निश्चित ही वे ऐसी कोई भी स्त्री चौबीस घंटे ध्यान करने वृक्ष के नीचे गुफा में आकर बैठ गए हैं। से बहुत सुंदर होंगी, जिनसे तुम परिचित हो। ध्यान शब्द ही अधर्म से जुड़ा रहा है जन्मों-जन्मों तक। तो जब वास्तविक स्त्रियों से कल्पना की स्त्रियां निश्चित ही सुंदर होती तुम धर्म के नाम पर भी ध्यान करते हो तो अधर्म तुम पर हमला हैं। इसीलिए कवि किसी भी स्त्री से तृप्त नहीं हो पाते। क्योंकि करता है। कल्पना की स्त्री उनकी बड़ी सुंदर होती है। सभी स्त्रियां ओछी महावीर कहते हैं, यह साहचर्य तोड़ना पड़ेगा। जो पावलफ ने | पड़ जाती हैं। जो लोग साधारण स्त्रियों से तप्त हो जाते हैं. एक ढाई हजार साल बाद रूस में कहा, वह महावीर ने भारत में बात का सबूत देते हैं कि उनके पास कल्पना की शक्ति नहीं है; पच्चीस सौ सदियों पहले कह दिया था कि पहले साहचर्य को और कुछ सबूत नहीं देते। जितना कल्पना-प्रवण व्यक्ति होगा, तोड़ो। एकदम मंदिर में मत भागे जाओ, पहले बाजार से मुक्त जितनी प्रगाढ़ क्षमता होगी कल्पना करने की, उतना ही यह तो हो लो। नहीं तो मंदिर में बैठोगे, अप्सराएं आएंगी। और वे संसार उसे अतृप्त करेगा। क्योंकि उसकी धारणा बड़ी ऊंची अप्सराएं अगर तुम गौर से देखोगे, तुम भलीभांति पहचान लोगे, | होती है। उसकी कल्पना की स्त्रियां एकदम सुगंध की प्रतिमाएं कोई अप्सराएं नहीं हैं, यही जमीन की स्त्रियां हैं। यह हो सकता हैं। स्वप्न से निर्मित, फूलों के पराग से निर्मित, चांद की चांदनी है कि कई स्त्रियों ने मिलकर एक अप्सरा बना दी हो। किसी स्त्री से, हवाओं की ताजगी से, ओस की ताजगी से निर्मित। की नाक पसंद पड़ी, किसी स्त्री का कान पसंद पड़ा, किसी की | साधारण स्त्री, साधारण पुरुष बहुत स्थूल है, बहुत पार्थिव है; आंख पसंद पड़ी, किसी के ओंठ पसंद पड़े, किसी के शरीर की उसकी कल्पना बड़ी पारलौकिक है। गंध पसंद पड़ी, किसी के शरीर का अनुपात पसंद पड़ा; ऐसा जब ऋषियों को अप्सराओं ने घेरा तो किसी ने नहीं घेरा। ये मन चुनता रहा, ध्यान करता रहा। इन सबको इकट्ठा कर लिया। | किसी स्वर्ग से नहीं आयी हैं, ये ऋषियों की कल्पना से आयी हैं। अब जब तुम ध्यान करने बैठे, तुमने तुम्हारी कल्पना में एक स्त्री महावीर कहते हैं, पहले तो धर्म-ध्यान पर जाना जरूरी है। खड़ी हुई, जो अप्सरा मालूम होती है। क्योंकि जितनी स्त्रियां तुम | अधर्म से, अधर्म के विषयों से चित्त को हटाना और धर्म के जानते हो उनमें से किसी जैसी नहीं लगती, परम सुंदर है। विषय देना जरूरी है। महावीर बहुत गणितज्ञ, वैज्ञानिक की तरह मगर गौर से खोजना तो तुम पाओगे, अरे! यह नाक कमला | इंच-इंच बढ़ते हैं। वे कहते हैं, जल्दबाजी में कुछ भी न होगा। की रही, ये कान निर्मला के रहे; ये ओंठ विमला के रहे। एकदम तुम आज तय कर लो कि मंदिर में चले जाओगे; कुछ अड़चन न होगी। अगर जरा गौर से देखोगे, तो अप्सरा को | फर्क न पड़ेगा। मंदिर में बैठोगे, लेकिन रहोगे बाजार में। तोड़कर देखोगे, विश्लेषण करोगे तो सब समझ में आ जाएगा। ऊपर-ऊपर मंदिर में होओगे, भीतर-भीतर बाजार में। बाजार से जहां-जहां ध्यान किया था, वहां-वहां से खंड इकट्ठे हो गए बड़े पुराने नाते हैं। हैं। यह अप्सरा स्वर्ग से नहीं आयी और किसी इंद्र ने नहीं भेजी, | 'मोक्षार्थी मुनि सर्वप्रथम धर्म-ध्यान द्वारा अपने चित्त को 13761 | Jair Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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