________________
मुक्ति द्वंद्वातीत है
।
हैं
-यह महफिल भरी ही रहती है।
महफिल तो तेरी सूनी न हुई, महफिल तो तेरी सूनी न हुई,
कुछ उठ भी गए, कुछ आ भी गए कुछ उठ भी गए कुछ आ भी गए
तुम सिर्फ अपनी चिंता कर लो। और इतना मैं तुमसे कह तुम उठने में संकोच मत करो। कुछ बाहर खड़े हैं, जोर से सकता हूं आश्वासन के साथ, कि जो भी शुभ है, वह बचेगा। चिल्ला रहे हैं, जगह दो। क्यू में खड़े हैं। तुम हटो, वे बड़े प्रसन्न | जो भी श्रेयस्कर है, वह बचेगा। जो भी अशुभ है, वह छूट होंगे। तुम्हें वे धन्यवाद देंगे। इसीलिए तो लोग संन्यासी का जाएगा। मेरे मन में तो पाप और पुण्य की परिभाषा यही है : शांत स्वागत करते हैं ! चलो एक जगह खाली हुई। इसीलिए तो लोग मन जिसे न कर सके, वही पाप। जिसे करने के लिए अशांत मन त्यागी की महिमा गाते हैं, चरण छूते हैं कि धन्य प्रभु! कम से | अनिवार्य शर्त है, वही पाप। शांत मन ही जिसे कर सके, वही कम आपने तो जगह खाली की!
पुण्य। शांत मन जिसके होने के लिए अनिवार्य भूमिका है, वह तुम अक्सर पाओगे त्यागियों के पास भोगियों को स्तुति | पुण्य है। करते। जैन मंदिरों में देखो! जो छोड़कर बैठ गए हैं संसार, जो पुण्य बचेगा। पुण्य की कुशलता बचेगी। पाप खोते चले संसार को जोर से पकड़े हैं, वे उनके चरण छू रहे हैं। वे कह रहे | जाएंगे। नर्क छूटेगा, स्वर्ग शेष रहेगा। बंधन गिरेंगे, मुक्ति हैं, बड़ी कृपा आपकी।
| उपलब्ध होगी। मोक्ष बचेगा। उसमें तुम्हारी कुशलता बढ़ेगी। शायद उन्हें भी साफ न हो। मगर मामला क्या है? मामला | तुम पछताओगे न। तुम कभी लौटकर ऐसा न सोचोगे कि बड़ी यह है कि ये भी प्रतियोगी थे। ये हट गए मैदान से। जितने गलती कर ली, जो शांत हो गए। प्रतियोगी कम हुए उतना ही अच्छा है।
अब तक किसी ने ऐसा नहीं कहा। जो भी श संसारी सदा संन्यासियों की प्रशंसा करता रहा है। लेकिन सदियों-सदियों में अनंत लोग हए हैं। यह शंखला छोटी नहीं प्रशंसा निश्चित ही झूठ होगी, बेमन से होगी; असली नहीं है। बहुत लोग हुए सदियों-सदियों में, उनमें से किसी एक ने भी होगी। असली होती तो खुद ही संन्यासी हो जाता। यह बड़े नहीं कहा कि शांत होकर पछतावा हुआ। आश्चर्य की बात है। भोगी त्यागी के चरण छूता है। अगर यह | और इन सदियों में उनसे हजारों गुने लोग अशांत रहे, उन | श्रद्धा सच होती तो खुद ही त्यागी हो गया होता। यह श्रद्धा झूठी सबने सदा यह कहा कि चूक गए कुछ। कुछ भूल हो गई। कहीं है। वह कह रहा है, आपने बड़ी कृपा की। आपने बड़ा ही जीवन का तार टूट गया। वीणा बजी नहीं। बांसुरी पर धुन उतरी अच्छा किया जो छोड़ दी झंझट।
नहीं। आए तो जरूर, खाली आए, खाली जा रहे हैं। जब एक राजनीतिज्ञ विदा होता है दिल्ली से तो बाकी | निरपवाद रूप से जो लोग अशांत रहे हैं, वे पछताए हैं। राजनीतिज्ञ उसका विदाई समारोह करते हैं। कहते हैं कि गिरि निरपवाद रूप से जो लोग शांत हुए हैं उन्होंने धन्यभाग, साहब, आप चले बंगलोर! बड़ी कृपा! फिर न आना। आप सौभाग्य माना है। बंगलोर में ही बसना। आबोहवा भी अच्छी है। और दिल्ली में रखा क्या है?
आज इतना ही। चलो, क्यू में एक आदमी कम हुआ। थोड़े हम आगे सरके। ऐसी आशा से तो आदमी जी रहा है।
तुम इसकी फिक्र मत करना कि संसार का क्या होगा? संसार तुम्हारे बिना बड़े मजे से चल रहा था, तम्हारे बिना बड़े मजे से चलता रहेगा। ये रंगे-बहारे-आलम है क्यों फिक्र है तुझको ऐ साकी!
363
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org