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ध्यान है आत्मरमण
है। लेकिन कितने ही बार चूके होओ, पा लेना संभव है। क्योंकि जिसे पाना है, वह तुम्हारा स्वभाव है। वह तुम्हारे भीतर मौजूद ही है। जरा पर्दे हटाना। जरा धूंघट हटाना। चूंघट के पट खोल! बूंघट बहुत तलों पर है। संबंधों का चूंघट, फिर शरीर का चूंघट, फिर मन का बूंघट। इन तीन पर्तों को तुम तोड़ दो तो तुम्हारी अपने से पहचान हो जाए।
अप्पा अप्पम्मि रओ, इणमेव परं हवे झाणं। आत्मा आत्मा में रम जाती है फिर। यही परम ध्यान है।
आज इतना ही।
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