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जिन सूत्र भाग: 2
हैं। अकेले के कारण डर लगता, भय होता, असुरक्षा मालूम और एक बात तय है कि अकेले हम आते हैं, अकेले हम जाते होती; तो हमने संग-साथ बना लिया है। लेकिन संग-साथ हैं, और बीच में यह जो दो दिन का मेला है, इसमें हम बड़े संबंध मान्यता भर है। तुम मरोगे, अकेले जाओगे। तुम आए अकेले, बना लेते हैं। राह पर चलते लोगों के हाथ में हाथ डाल लेते हैं। जाओगे अकेले। थोड़ी देर को अपरिचित लोगों से...और ध्यान कोई पत्नी हो जाती है, कोई पति हो जाता है। कोई मित्र हो जाता | रखना, जब मैं अपरिचित कह रहा हूं तो मेरा मतलब यह नहीं है | है. कोई शत्र हो जाता है। हम जल्दी से संबंध जोड लेते हैं. ताकि जिसे तुम नहीं जानते। जिसे तुम सोचते हो कि तुम जानते हो, अकेलापन छिप जाए। हम संबंध की चादर फैला देते हैं ताकि वह भी तो अपरिचित है।
| अकेलापन भीतर छिप जाए। हम अकेले होने से डरे हैं, भयभीत तुम्हारी पत्नी परिचित है? एक दिन एक अपरिचित स्त्री के | हैं। कोई तो अपना हो इस अजनबी दुनिया में। दो-चार को साथ सात चक्कर लगा लिए थे, परिचय हो गया? तुम्हारा बेटा | अपना बनाकर थोड़ा भरोसा आता है। कोई फिक्र नहीं, कोई तो तुमसे परिचित है? एक दिन एक अनजान आत्मा तम्हारे घर में अपना है। किसी से तो नाता है। पैदा हो गई थी। सिर्फ तम्हारे गर्भ से पैदा हआ. तो परिचित है? जिस व्यक्ति ने भी जीवन को गौर से देखा, वह यह पाएगा कि तुमने उसके अवतरण में थोड़ा साथ-सहयोग दिया, तो परिचित हम निस्संग हैं। और जब निस्संग हैं तो नाते-रिश्तों के धोखे में
पड़ने का कोई कारण नहीं। . खलील जिब्रान ने कहा है, तुम्हारे बच्चे तुम्हारे नहीं हैं। तुमसे इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम सब नाते-रिश्ते तोड़कर आज आते हैं जरूर। तुम माध्यम हो। लेकिन दावा मत करना कि भाग जाओ। भागने का तो खयाल उसी को आता है, जिसको हमारे बच्चे हमारे हैं। तुम उन्हें प्रेम तो देना, ज्ञान मत देना। | समझ नहीं आई। मां मां रहेगी, पिता पिता रहेगा, बेटा बेटा क्योंकि वे कल में जीयेंगे। वे भविष्य में जीयेंगे। उस भविष्य का रहेगा; लेकिन भीतर अब तुम जानते हो, जागकर जानते हो कि तुम्हें सपना भी नहीं आ सकता। तुम्हारा ज्ञान अतीत का है। वे कोई, कोई का नहीं। कोई अपना नहीं। खेल के नियम हैं। भविष्य में जीयेंगे। तुम अपना प्रेम देना, अपना ज्ञान मत देना। जैसे ताश खेलते हैं, तो ताश के पत्तों में रानी होती है, राजा और दावा मत करना कि बच्चे हमारे हैं।
| होता है, गुलाम होता और सब कुछ होता है; लेकिन कोई हम एक आदिम जाति है—होपी। अकेली होपी भाषा ऐसी भाषा मानते थोड़े ही, कि राजा-रानी हैं। जानते हैं कि ताश का पत्ता है, है, जो इस संबंध में सच के करीब पहंचती है। तुम अपने बेटे को खेल है। अगर कोई आदमी ताश के पत्तों में एकदम उठकर खड़ा लेकर कहीं जाते हो, कोई पूछता है 'कौन है?' तुम कहते हो, हो जाए और कहे, कि यह सब धोखा है, मैं तो त्याग करता हूं यह 'मेरा बेटा,' या 'मेरी बेटी।' होपी भाषा में ऐसा कोई शब्द | राजा-रानियों का। तुम्हें हंसी आएगी। क्योंकि त्याग करने का नहीं है, अगर होपी बाप अपने बेटे को लेकर कहीं जा रहा है और खयाल तो तभी सार्थक हो सकता है, जब राजा-रानी सच्चे हों। कोई पूछता है, यह कौन है, तो वह कहता है, यह लड़का है, तुम कहोगे पागल हुए हो? है ही कौन, जिसको तुम त्याग कर जिसके साथ हम रहते हैं। यह लड़का है, जो हमारे घर पैदा हुआ रहे हो? ये राजा-रानी तो कागज पर बने चिह्न हैं। यह तो हमारी है। पता नहीं कौन है!
मान्यता है। त्याग तो तब हो सकता है, जब हो। यह बात ज्यादा समझ में आने जैसी लगती है—यह लड़का तो जब कोई आदमी कहता है, मैं पत्नी को छोड़कर जंगल जा हमारे साथ रहता है, हम इस लड़के के साथ रहते हैं। संयोग है। रहा हूं, तो चूक गया। पत्नी को छोड़कर जंगल जाने की क्या यह हमारे घर में पैदा हुआ है। वैसे हम जानते नहीं कौन है! | जरूरत थी? पत्नी जब तुम्हारे बिलकुल पास बैठी है, हाथ में
कौन जानता है? कभी अपने छोटे बच्चे की आंखों में हाथ डाले बैठी है, तब भी तुम अकेले हो, यह जानना है। पत्नी झांककर देखा-जानते हो? इससे ज्यादा अजनबी आंखें और | अकेली है, यह जानना है। बेटा जब तम्हारी गोद में खेल रहा है, कहां पाओगे? कोई उपाय नहीं है। अपने को नहीं जानते, दूसरे तब भी जानना है कि तुम अकेले हो, बेटा अकेला है। को हम जानेंगे कैसे?
संबंध ताश के पत्तों का खेल है; संयोग मात्र है। नदी-नाव
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