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________________ जिन सूत्र भागः मेरे भीतर का ईश्वर, बाकी सब डुबा दिये। आग बरसा दी नगरों पर। जरा नाराज है मेरे मन के स्वर्ग-लोक की नींव हिला हुआ कि विकराल क्रोध! मेरे भीतर भूकंप मचानेवाला! ईश्वर क्रोधी है? नहीं, जिन यहदियों ने परानी बाइबिल मेरे भीतर का ईश्वर, लिखी, वे क्रोधी रहे होंगे। पुरानी बाइबिल यहूदियों के संबंध में है अग्निचंड, मैं उसके भीतर जलता हूं खबर देती है। वेद में ईश्वर की धारणा है, वह धारणा ईश्वर की मेरे भीतर का ईश्वर, खबर नहीं देती, वेद जिन्होंने रचे उनकी खबर देती है। कोई ऋषि है घन घमंड, अंबर का उद्वेलित समुद्र, प्रार्थना कर रहा है कि मेरी गौओं के थन में दूध बढ़ जाए और मेरे मेघों को, जाने, हांक कहां ले जाता है। दुश्मन की गौओं के थन का दूध सूख जाए। हे प्रभु, ऐसा कुछ मेरे भीतर का ईश्वर कर कि मेरी फसल तो खूब आये, पड़ोसी की फसल न आ है नामहीन, एकाकी, अभिशापित विहंग पाये। क्या ईश्वर इस तरह की प्रार्थनाएं सुनता है? क्या ईश्वर जो हृदय-व्योम में चिल्लाता, मंडराता है। की इससे कोई धारणा हमारे मन में साफ होती है—यह कैसा मेरे भीतर का ईश्वर, ईश्वर है? नहीं, इससे इतना ही पता चलता है, जो प्रार्थना है जोर-जोर से पटक रहा मेरे मस्तक को पत्थर पर। करनेवाले थे उनकी याचना, उनके हृदय की खबर।। मेरे भीतर का ईश्वर, तुम जब ईश्वर के संबंध में बोलते हो, तो ध्यान रखना कि यह महाघोर चतुरंग प्रभंजन वेगवान तुम्हारे ईश्वर के संबंध में बोल रहे हो। मैं जब ईश्वर के संबंध में मेरे मन के निर्जन, अकूल, आश्रयविहीन, बोलता हूं, तो ध्यान रखना मैं अपने ईश्वर के संबंध में बोल रहा उत्तप्त प्रांत में ज्वालाएं भड़काता है। हूं। यह बिलकुल स्वाभाविक है। भीतर उर के मुद्रिक कपाट ईश्वर बड़ी निजी धारणा है। और हर एक की अपनी दृष्टि से बाहर-बाहर वह प्रलय-केतु फहराता है। प्रभावित होती है। एक ऐसी घड़ी आती है जब तुम्हारी सारी दृष्टि आदमी आदमी का ईश्वर अलग-अलग होगा। तुम क्रोधित चली गयी, जब तुम्हारे मन में कोई पक्षपात न रहा—न हिंदू का, हो, तो तुम्हारा ईश्वर क्रोधित होगा। तुम अहंकारी हो, तो तुम्हारे न मुसलमान का, न सिक्ख का, न जैन का, कोई पक्षपात न भीतर का ईश्वर अहंकारी होगा। तुम शांत हो, तो तुम्हारा ईश्वर रहा-तुम सब शास्त्रों, सब शब्दों से मुक्त हुए, तुम शून्य में शांत होगा। तुम उदास हो, तो तुम्हारा ईश्वर उदास होगा। विराजमान हुए, तब उस मानसरोवर में जो झलकता है, वह क्योंकि तुम ही तो तुम्हारे ईश्वर को प्रतिबिंब दोगे। तुम्हारा ईश्वर ईश्वर की निकटतम प्रतिमा है। वह प्रतिमा इतनी निकटतम है, तुम्हारे भीतर रूप धरेगा। तुम ही तो उसकी परिभाषा बनोगे। क्योंकि मानसरोवर का स्वच्छ स्फटिक जैसा जल कोई विकृति तुम ही तो सीमा बनाओगे। तम ही तो बागड़ लगाओगे। तम्हारा पैदा नहीं करता है। पारदर्शी। जैसा है ईश्वर तुम्हारे-जैसा होगा। वह झलक इतनी स्पष्ट और इतनी ईश्वर जैसी है, इसलिए इसीलिए दुनिया में इतने ईश्वरों की भिन्न धारणाएं हैं। इसीलिए उपनिषद के ऋषि कह सके-अहं ब्रह्मास्मि। वह झलक इतनी हर सदी का ईश्वर भी अलग होता है। बदलता चला जाता है। स्पष्ट और इतनी साफ कि उपनिषद के ऋषि कह सके, हम ब्रह्म ईश्वर बदलता, ऐसा नहीं, प्रतिबिंब बदलते हैं। क्योंकि प्रतिबिंब हैं। ब्रह्म में और उस झलक में कोई फर्क न रहा। कभी-कभी धारण करनेवाले बदलते हैं। पुरानी बाइबिल का ईश्वर बड़ा बहुत थोड़े-से लोग उस ऊंचाई पर पहुंचे हैं, जिन्होंने 'अहं क्रोधी, रुद्र-रूप, जरा-सी बात पर नाराज हो जानेवाला, | ब्रह्मास्मि' की घोषणा की है। कोई मंसूर कह सका, जरा-सी बात पर अग्नि बरसा देनेवाला, जरा-सी बात पर अनलहक-मैं हूं सत्य। महाप्रलय ला देनेवाला। क्रोध में उसने डुबा दी दुनिया एक यह तब घटता है, जब समाधि घटती है। जब सब कचरा दफा। थोड़े-से लोग चुने हुए बचा लिये थे नोह की नाव में; तुम्हारे चित्त का बह गया। तुम भी जब निर्विकार, निराकार, | जैसीं जाती । जैसा है वैसा ही यालका देता है। 314 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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