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________________ जिन सूत्र भागः2 NA श्वास की जरूरत है, जितने से शरीर और आत्मा का धागा जुड़ा परम जीवन का द्वार खुलता है। रहता है, बस। वह बड़ी धीमी है। इसीलिए योगी चाहते हैं तो | 'अपने पूर्वकृत बुरे आचरण की गर्दा करे, सब प्राणियों से जमीन के नीचे महीनों तक रुक जाते हैं। चमत्कार कुछ भी नहीं क्षमा-भाव चाहे, प्रमाद को दूर करे और चित्त को निश्चल करके है। सिर्फ मंद-मंद श्वास लेने की कला है। आक्सीजन की तब तक ध्यान करे जब तक पूर्वबद्ध कर्म नष्ट न हो जाएं।' जरूरत इतनी कम कर लेते हैं कि उस छोटी-सी गुहा में जमीन के | तो ध्यान कोई सदा करने के लिए नहीं है। ध्यान औषधि है। भीतर जितनी आक्सीजन है, वह महीने-भर तक काम दे देती है। बीमारी जब चली गयी, तो ध्यान को भी छोड़ देना। जब तक हमारी आक्सीजन की जरूरत बहुत ज्यादा है। क्योंकि श्वास बीमारी है, तब तक औषधि है। जब ध्यान की भी जरूरत नहीं हम बहुत ले रहे हैं। शरीर में हजार तरह की क्रियाएं चल रही हैं। | रह जाती, तभी समाधि फलती है। जो योगी जमीन के भीतर बैठता है, वह जो महावीर कह रहे हैं समाधि का अर्थ है, आत्मा का स्वास्थ्य। मिल गया, वापिस। यही करता है। शरीर को थिर, वचन को थिर, मन को थिर, कांटा चुभा था, दूसरे कांटे से निकाल दिया, फिर दोनों कांटे फेंक नासाग्र-दृष्टि और श्वास को धीरे-धीरे मंद करता जाता है। फिर दिये। विचार का कांटा चुभा है, ध्यान के कांटे से निकाल लेना एक ऐसी घड़ी आ जाती है कि श्वास करीब-करीब रुक जाती है। फिर दोनों कांटे फेंक देने हैं। तो ध्यान कोई सदा नहीं करते है। उस करीब-करीब श्वास रुकी हालत में योगी महीनों तक भी रहना है। ध्यान तो सीढ़ी है। औषधि है। उपाय कर लिया, काम छोटी-सी जगह में रह सकता है। उस जगह में जितनी हवा है, पूरा हो गया, ध्यान भी गया। उतनी पर्याप्त है। | तो महावीर कहते हैं, जब तक पूर्वबद्ध कर्म नष्ट न हो जाएं। तम्हें पता होगा. मेढक वर्षा के बाद जमीन में छिप जाते हैं और जब तक तुम्हें अतीत का सारा कचरा समाप्त होता हुआ न श्वास बंद कर लेते हैं। वैज्ञानिक बहुत चकित रहे हैं। साइबेरिया दिखायी पड़े। जब तुम्हें ऐसा दिखायी पड़े कि अतीत सब समाप्त में जो सफेद भाल होते हैं, वे भी छह महीने जब अंधेरा हो जाता हो गया, जैसे मैं कभी था ही नहीं, सब अतीत पोंछ डाला; जब है साइबेरिया में छह महीने सूरज होता है, छह महीने तुम इतने नये हो गये जैसे सुबह ही ओस, जैसे तुम अभी-अभी रात—तो रात के समय में वे सब बर्फ में सोकर पड़ जाते हैं, पैदा हुए; जब तुम इतने नये और ताजे हो गये, तो फिर ध्यान की श्वास बंद कर लेते हैं। मरते नहीं। छह महीने! इसको विज्ञान कोई जरूरत नहीं। अब तुम समाधि में जी सकते हो। अब कहता है-हाइबरनेशन। तुम्हारा उठना, बैठना, चलना, सब समाधि है। योगियों ने यह कला बहत पहले खोज ली, कि जब मेढक कर अपने पर्वकृत बरे आचरण की गर्दा करे। सब प्राणियों से सकता है, रीछ कर सकते हैं, भालू कर सकते हैं, तो आदमी क्यों क्षमाभाव चाहे...।' नहीं कर सकता? क्योंकि शरीर का शास्त्र तो एक ही जैसा है। यह सब बातें ध्यान में सहयोगी हैं। इनसे सहायता मिलेगी। अगर सब थिर हो जाए, तो प्राणवायु की जरूरत कम हो जाती जो बुरा किया है अतीत में, अब दुबारा न करूंगा। जो बुरा है। इसलिए ध्यान में अगर कभी तुम्हें ऐसा हो कि श्वास थिर हो किया, वह बुरा था। तुमने खयाल किया, आमतौर से हम बुरा जाए, तो घबड़ा मत जाना। घबड़ाने से तो बाहर फिंक जाओगे। कर लेते हैं, हम जानते भी हैं कि बुरा हो गया, तो भी हम बड़ी मुश्किल से जो पाया था, खो जाएगा। तब तो और भी राजी रेशनलाइज़ेशन करते हैं। हम हजार तर्क जुटाते हैं, हम कहते हैं हो जाना, और भी श्वास को कह देना कि तू बिलकुल विदा होजा वह मजबूरी थी। या इसके अतिरिक्त कुछ हो ही नहीं सकता तो भी ठीक, अगर मृत्यु भी आती मालूम पड़े तो कहना कि ठीक था। अन्यथा कोई मार्ग ही न था। या हम सिद्ध करने की मैं मरने को राजी हूं। क्योंकि ध्यान में मर जाने से बड़ा और कोशिश करते हैं कि हमने जो किया, ठीक ही किया। आदमी सौभाग्य क्या। मरना तो होगा ही। लेकिन जो ध्यान में मर गया, बड़े तर्क जटाता है, गलत को भी सही सिद्ध करने के लिए। उससे बड़ा सौभाग्य कोई भी नहीं है। जीवन से बड़ा सौभाग्य है | लेकिन महावीर कहते हैं, अगर तुम गलत को सही सिद्ध करने ध्यान में मर जाना। मगर कोई मरता नहीं, ध्यान के क्षण में तो की कोशिश में लगे हो, तो एक बात पक्की है, ध्यान में कभी न 298 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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