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________________ HINovewar जिन सूत्र भागः निकल आये और तुम्हारा भीतर का लोक अंधकार में दबा रह में बिक सकती है। एक कवि आ जाए, तो उसे ऐसे रंग दिखायी जाए, तो सार क्या? सब जान लो और अपने को न जान पाओ, पड़ेंगे जो तुम्हें दिखायी नहीं पड़ते। तुम्हें सब वृक्ष हरे मालूम तो इस जानने का मूल्य क्या? यह सब जानना भीतर के अज्ञान पड़ते हैं। कवि को हर हरियाली अलग हरियाली मालूम पड़ती के सामने व्यर्थ हो जाएगा। | है। हर वृक्ष का हरापन अद्वितीय है। अलग-अलग है। तुम विज्ञान भी पर्दा उठाता है, धर्म भी। धर्म पर्दा उठाता है कहते हो फूल खिले हैं, लेकिन प्रगाढ़ता से तुम्हारी चेतना के जाननेवाले पर से, ज्ञाता पर से। विज्ञान पर्दा उठता है ज्ञेय पर सामने फल प्रगट नहीं होते। क्योंकि वहां कोई प्रगाढ़ता नहीं है। से। विज्ञान उठाता है आब्जेक्ट पर से पर्दा, विषय पर, जो | कोई चित्रकार आये, कोई संगीतज्ञ आये, तो संगीतज्ञ सुन लेगा दिखायी पड़ता है दृश्य उससे। धर्म उठाता है पर्दा द्रष्टा पर से, कोयल की कह-कुह, इन पक्षियों का कलरव। हम जो होते हैं, जो देखनेवाला है, जो जाननेवाला है, जो मैं हूं। और धर्म की वैसा हमें संसार दिखायी पड़ने लगता है। धर्म कहता है, जिसने ऐसी समझ है कि जिसने स्वयं को जान लिया, उसने सब जान स्वयं को जान लिया, उसने सब जान लिया। इक साधे सब लिया। अपना घर भीतर आह्लाद से, प्रकाश से भर गया, तो | सधे। और वह एक तुम्हारे भीतर है। सारा जगत प्रकाश से भर गया। धर्म और विज्ञान दोनों एक ही खोज के दो पहलू हैं। अगर तुम प्रसन्न हो, तो तुमने खयाल किया, तुम्हारी प्रसन्नता विज्ञान बहिर्मुखी खोज है, धर्म अंतर्मुखी। विज्ञान जाता है दूर के कारण फूल भी हंसते हुए मालूम होते हैं। तुम उदास हो, तो अपने से, धर्म आता है पास और पास। उस पास आने का नाम फल भी उदास मालूम होते हैं। फलों को तुम्हारी उदासी से क्या ही ध्यान है।। लेना-देना! तुम अगर दुखी हो, पीड़ित हो, तो चांद भी रोता | महावीर के ये सूत्र ध्यान के सूत्र हैं। इन सूत्रों को बहुत गहरे में मालूम पड़ता है। तुम अगर आनंदित हो, नाच रहे, तुम्हारा प्रिय | उतरने देना। क्योंकि ध्यान धर्म का सार है। कुंजी है। ध्यान को घर आ गया, मित्र को खोजते थे मिल गया, तो चांद भी नृत्य जिसने समझा, उसने धर्म को समझा। और ध्यान को छोड़कर करता मालूम होता है। चांद वही है। पृथ्वी पर हजारों लोग चांद जो सारे धर्मशास्त्र भी समझ ले, वह कुछ भी धर्म को नहीं को देखते हैं; लेकिन एक ही चांद को नहीं देखते। हर आदमी समझा। उसका धर्म का जानना ऐसे ही है जैसे कोई भूखा का चांद अलग है। क्योंकि हर आदमी की देखनेवाली आंख | पाकशास्त्र के शास्त्र पढ़ता रहे. या मिठाइयों की तस्वीरों को रखे अलग है। कोई खुशी से देख रहा है—किसी का प्रियजन घर बैठा रहे। उससे भूख न मिटेगी। ध्यान है धर्म का प्राण। ध्यान आ गया। कोई दुख से देख रहा है-किसी का प्रियजन छूट है धर्म की वास्तविकता। ध्यान है धर्म का अर्थ और अभिप्राय। गया। कोई नाच रहा है खुशी में, सौभाग्य में; कोई रो रहा है, ये सूत्र ध्यान के सूत्र हैं। पहला सूत्रआंसू बहा रहा है। आंसुओं की ओट से जब चांद दिखायी पड़ता 'जैसे मनुष्य-शरीर में सिर और वृक्ष में उसकी जड़ उत्कृष्ट या है, तो आंसुओं में दब जाता है। गीत की ओट से जब दिखायी मुख्य है, वैसे ही साधु के समस्त धर्मों का मूल ध्यान है।' पड़ता है, तो चांद में भी गीत उठने लगता है। 'सीसं जहा सरीरस्स-जैसे शरीर में सिर।' पैर काट दो, इसे खयाल लेना, तुम जैसे हो, वैसा तुम्हारा संसार हो जाता आदमी जी जाएगा। हाथ काट दो, आदमी जी जाएगा। सिर है। तुम जैसे नहीं हो, वैसा तुम्हारा संसार हो ही नहीं सकता। काट दो, आदमी नहीं जी सकेगा। अभी तो वैज्ञानिकों ने ऐसे क्योंकि तुम ही मौलिक रूप से अपने संसार के निर्माता हो। प्रयोग किये हैं कि सिर को काटकर अकेला जिलाया रखा जा तुम्हारी आंख, तुम्हारे कान, तुम्हारे हाथ प्रतिपल संसार को | सकता है। यंत्रों के सहारे। यांत्रिक हृदय खून को गतिमान निर्मित कर रहे हैं। एक लकड़हारा इस बगीचे में आ जाए, तो | करता रहेगा। और यांत्रिक फेफड़े श्वास लेते रहेंगे। अकेला | वह देखेगा कि कौन-कौन से वृक्ष काटे जाने योग्य हैं। अनजाने सिर जिलाये रखा जा सकता है। सारे शरीर को हटाक ही! उसे फूल न दिखायी पड़ेंगे! उसे वृक्षों की हरियाली न लेकिन सिर के हट जाते ही-सारा शरीर मौजूद है लेकिन दिखायी पड़ेगी। उसे केवल लकड़ी दिखायी पड़ेगी, जो बाजार फिर जिलाया नहीं जा सकता। और जिलाये रखा भी जा सके, 284 | Jan Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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