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________________ जीवन तैयारी है, मृत्यु परीक्षा है गनगनाना, नाचना, कोई मनाही नहीं है। अन्यथा तुमने प्रेम का वासना की आंख से देखा जाना किसी को भी पसंद नहीं। प्रेम गलत अर्थ समझा। और फिर इस बात का भी डर है कि तुम | की आंख से देखा जाना सभी को पसंद है। तो दोनों आंखों की जिसे प्रेम कह रहे हो, वह प्रेम है? या कि वासना ने नये रूप परिभाषा समझ लो। वासना का अर्थ है, वासना की आंख का रखे? या वासना नये ढंग लेकर आयी? या वासना ने प्रेम का अर्थ है कि तुम्हारी देह कुछ ऐसी है कि मैं इसका उपयोग करना आवरण पहना? क्योंकि मेरी नजर ऐसी है कि जब भी तुम चाहूंगा। प्रेम की आंख का अर्थ है, तुम्हारा कोई उपयोग करने किसी व्यक्ति की तरफ वासना से भरकर देखते हो, तो दूसरा का सवाल नहीं, तुम हो, इससे मैं आनंदित हूं। तुम्हारा होना, सकचाता है. डरता है, घबडाता है क्योंकि वासना तो एक । अहोभाग्य है। बात खतम हो गयी। प्रेम को कछ लेना-देना नहीं कारागृह है। और घबड़ाहट स्वाभाविक है। क्योंकि वासना का है। वासना कहती है, वासना की तृप्ति में और तृप्ति के बाद सुख अर्थ ही यह होता है कि तुम दूसरे व्यक्ति का उपयोग करना होगा; प्रेम कहता है, प्रेम के होने में सुख हो गया। इसलिए प्रेमी चाहते हो। कोई भी नहीं चाहता उसका उपयोग किया जाए। की कोई मांग नहीं है। उपयोग का मतलब हुआ कि तुमने दूसरे व्यक्ति को वस्तु में तब तो तुम अजनबी के पास से भी प्रेम से भरे निकल सकते बदल दिया। उसकी आत्मा मार डाली। उपयोग तो वस्तुओं का हो। कुछ करने का सवाल ही नहीं है। हड्डियों को हड्डियों से होता है, व्यक्तियों का नहीं। कर्सी का उपयोग होता है, टेबल लगा लेने से कैसे प्रेम हो जाएगा। प्रेम तो दो का उपयोग होता है, मकान का उपयोग होता है, व्यक्तियों का तो निकट होना है। और कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि जिसके नहीं। जब भी तुम वासना से किसी की तरफ देखते हो, तब तुमने पास तुम वर्षों से रहे हो, बिलकुल पास रहे हो, पास न होओ; | इस ढंग से देखा कि तम कामवासना के लिए इस दसरे व्यक्ति और कभी ऐसा भी हो सकता है कि राह चलते किसी अजनबी के का उपयोग करना चाहते हो। दूसरा तत्क्षण सचेत हो जाता है, साथ तत्क्षण संग हो जाए, मेल हो जाए, कोई भीतर का संगीत सावधान हो जाता है। वह अपनी रक्षा में लग जाता है। बज उठे, कोई वीणा कंपित हो उठे। बस काफी है। उस क्षण आक्रामक प्रेम में डर है कि कहीं कामवासना छिपी हो। परमात्मा को धन्यवाद देकर आगे बढ जाना। पीछे लौटकर भी वास्तविक प्रेम तो प्रार्थनापूर्ण होता है, वासनापूर्ण नहीं होता। देखने की प्रेम को जरूरत नहीं है। पीछे लौट-लौटकर वासना वास्तविक प्रेम को दूसरे को गले लगाना जरूरी भी नहीं है। देखती है। और वासना चाहती है कि दूसरा मेरे अनुकूल चले। वास्तविक प्रेम तो एक आशीर्वाद है। तुम किसी के पास से अब जिन मित्र ने पूछा है, वह कहते हैं कि दूसरा हट जाता है गुजरे, आशीर्वाद से भरे हुए गुजरे, काफी है। आत्मा आत्मा को अगर मैं आलिंगन करना चाहता हूं। इतनी तो स्वतंत्रता दूसरे को गले लग गयी, शरीर को शरीर से लगाने से क्या प्रयोजन है! दो, अन्यथा यह तो बलात्कार हो जाएगा। यह तो एक तरह की कभी-कभी आत्मा के गले लगने के साथ-साथ शरीर का गले तानाशाही हो जाएगी। तुम दूसरे को इतना भी नहीं मौका देते कि लगना भी घट जाए, तो शुभ है। लेकिन वह घटे, घटाया न वह हट सके। दूसरा सकुचा रहा है, वह इस बात की खबर दे जाए। कभी ऐसा होगा कि तुम बड़े आशीर्वाद से भरे हुए किसी रहा है कि तुम्हारे प्रेम में अभी प्रार्थना का स्वर नहीं है। अभी प्रेम के पास से निकलते थे और उसके हृदय में भी तुम्हारे आशीर्वाद में कहीं छिपी वासना है; कहीं दुर्गंध है। कहीं देह की बदबू है। की तरंगें पहुंची और दोनों एक-साथ किसी अनजानी शक्ति के आत्मा की सुवास नहीं। अभी वह तुम्हारे से हटकर यह खबर दे वशीभूत होकर एक-दूसरे के गले लग गये। रहा है तुम्हें कि तुम अभी उस परिशुद्धि को उपलब्ध नहीं हो, तो तुम गले लगे ऐसा नहीं, दूसरा गले लगा ऐसा नहीं, प्रेम ने जहां अजनबी भी तुम्हारे हाथों में, तुम्हारी बाहों में आये और दोनों को गले लगा दिया। यह बड़ी और घटना है। जब तुम समा जाए। तो इसका संकेत समझना। लगते हो गले, तो वासना है। तुम्हारी वासना के कारण दूसरा दूसरे व्यक्ति की परिपूर्ण स्वतंत्रता को सदा स्वीकार करना। हटेगा। कृपा करके ऐसा आक्रमण किसी पर मत करना। तुम और इतना काफी है कि तुम पास से निकल गये। दूसरा दिखा, दूसरे को भयभीत कर दोगे। दूसरे में तुम्हें परमात्मा दिखा, परमात्मा का रूप दिखा, तुम 269 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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