________________
258
जिन सूत्र भाग: 2
उसका पता मिलता नहीं,
बाहर ढूंढते रहोगे, मिलेगा भी नहीं। वह भीतर छिपा बैठा है। तुम्हारा होना ही उसका द्वार है। तुम जरा शुद्ध होने की कला भर सीख लो। उसी को महावीर ज्ञान कहते हैं। और घबरा मत जाना, कितने ही हारे होओ, कितने ही भटके होओ, उससे तुम दूर जाकर भी दूर जा सकते नहीं । उसे खोकर भी तुम खो सकते नहीं। क्योंकि वह तुम्हारा स्वभाव है।
तृषित ! धर धीर मरु में
कि जलती भूमि के उर में
कहीं प्रच्छन्न जल हो ।
नरो यदि आज तरु में सुमन की गंध तीखी, स्यात, मधुपूर्ण फल हो । दुखों की चोट खाकर हृदय जो कूप-सा जितना अधिक गंभीर होगा;
उसी में वृष्टि पाकर कभी उतना अधिक संचित सुखों का नीर होगा।
घबड़ाओ मत! बहुत बार ऐसा हुआ कि महावीर और बुद्ध जैसे पुरुषों को देखकर बजाय इसके कि लोगों ने आशा के सूत्र लिये होते, लोग निराश हो गये और घबरा गये और उन्होंने कहा कि यह कुछ ही लोगों के वश की बात है। यह तो महापुरुषों | की बात है । अवतारी, तीर्थंकरों की बात है । बुद्धों की बात है । हम साधारणजन! तो, हम पूजा ही करने के लिए बने हैं। हम कभी पूज्य होने को नहीं बने। तो हम प्रतिमा के सामने फूल चढ़ाने को ही बने हैं, हम कभी परमात्मा की प्रतिमा बनने को नहीं बने हैं।
बड़ी भूल हो गयी। जिनसे आत्मविश्वास लेना था, उनसे हमने और दीनता और हीनता ले ली। उनका सारा प्रयास यही था कि तुम समझो कि वे तुम्हारे जैसे ही पुरुष, आज ऐसे गौरीशंकर के शिखर जैसे हो गये हैं। तुम भी हो सकते हो। देखा कभी बड़वृक्ष के नीचे, विराट वृक्ष के नीचे पड़ा छोटा-सा बड़ का चीज! बड़ का बीज सोच भी नहीं सकता कि इतना बड़ा वृक्ष कैसे हो सकेगा ? लेकिन हो सकता है। उसकी संभावना है।
Jain Education International 2010_03
वैसी ही संभावना तुम्हारी है। बस थोड़े से जागने की, स्मरण की बात है।
रे प्रवासी, जाग! तेरे देश का संवाद आया। भेदमय संदेश सुन पुलकित खगों ने चंचु खोली;
प्रेम से झुक झुक प्रणति में पादपों की पंक्ति डोली; दूर प्राची की तटी से विश्व के तृण-तृण जगाता, फिर उदय की वायु का वन में सुपरिचित नाद आया
रे प्रवासी, जाग! तेरे
देश का संवाद आया।
जिन सूत्र तुम्हारे देश की खबरें हैं।
रे प्रवासी, जाग! तेरे
देश का संवाद आया ।
महावीर और बुद्ध डाकिया हैं । चिट्ठीरसा। खबरें लाते हैं। परमात्मा की । तुम चिट्ठियों को संभालकर छाती पर मत रख लेना । खोलो और उनका अर्थ खोलो। खोलो चिट्ठियों को । उनका सार समझो। ये चिट्ठियां पूजने के लिए नहीं हैं। ये चिट्ठियां शास्त्र बना लेने के लिए नहीं हैं। ये चिट्ठियां जीवन बनाने के लिए हैं।
रे प्रवासी, जाग! तेरे देश का संवाद आया।
For Private & Personal Use Only
आज इतना ही।
www.jainelibrary.org