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जिन सूत्र भागः 2 |
ठीक तुम्हारे जैसा। ऐसे ही हाथ-पैर, ऐसा ही मुंह, ऐसी ही | दस्ते-दुआ हम आज उठाये हुए तो हैं जरूरतें-भोजन, भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, जन्म-मृत्यु-सब | गुरु खोज लेना साधक के लिए पहली अनिवार्य बात है। तुम्हारे जैसा है। वहीं से गुजरा है, उन्हीं राहों से गुजरा है, जहां जीवन पाया पर जीवन में क्या तम गजर रहे। उन्हीं अंधेरों में से टटोल-टटोलकर मार्ग बनाया दो क्षण सख के बीत सके? है उसने, जहां तुम टटोल रहे। वह तुम्हें समझ सकेगा, क्योंकि मन छलने वाले मिले बहुत पर तुम उसकी ही अतीत-कथा हो। तुम उसी की आत्मकथा हो। क्या मिल मन के मीत सके? जहां वह कल था, वहां तुम आज हो। और जहां वह आज है, मन का मीत मिल जाए, तो गुरु मिला। शरीर से मित्रता वहां तुम कल हो सकते हो।
रखनेवाले बहुत मिल जाएंगे। शरीर का उपयोग करनेवाले बहुत परमात्मा बहुत दूर है। गुरु पास भी, और दूर भी। परमात्मा मिल जाएंगे। तुम्हारा साधन की तरह उपयोग करनेवाले बहुत तक सेत फैलाना बड़ा कठिन है। आदमी की सामर्थ्य के बाहर मिल जाएंगे। तम्हारे साध्य की तम्हें जो याद दिलाये, जब वह है। तुम कहते तो हो परमात्मा शब्द, लेकिन कोई भाव उठता है मिल जाए, तो मन का मीत मिला। गुरु मित्र है। भीतर? कुछ भाव नहीं उठता। जब तक तुम किसी मनुष्य में बुद्ध ने तो कहा है, कि मेरा जो आनेवाला अवतार होगा, परमात्मा की पहली झलक न पाओगे, तब तक तुम्हारे परमात्मा उसका नाम होगा मैत्रेय। मित्र। गुरु सदा से निकटतम मित्र है। शब्द में कोई प्राण न होंगे। गुरु परमात्मा शब्द को सप्राण करता | कल्याण-मित्र। तुम से कुछ चाहता नहीं। उसकी चाह जा है। तो तुम्हारे जैसा है, इसलिए तुम जो कहोगे, समझेगा। चुकी। वह अचाह हुआ। तुम्हारा कोई उपयोग करने का प्रयोजन समझेगा कि चोरी का मन हो गया था। दस हजार रुपये पडे थे नहीं। उसे कछ उपयोग करने को बचा नहीं। जो पाना था. पा रास्ते के किनारे, कोई देखनेवाला न था, उठा लेने का मन हो | लिया। वह अपने घर आ गया। वह तुम्हारी सीढ़ी न बनायेगा। गया था। वह कहेगा, बहुत बार मेरा भी हुआ है ऐसा। कुछ वह तुम्हारे कंधे पर न चढ़ेगा। प्रयोजन नहीं। जो देखना था, देख चिंता न करो। कुछ घबड़ाने की बात नहीं। देखो, मैं उसके पार लिया; जो होना था, हो लिया। सब तरह तप्त। ऐसा कोई
आ गया। तुम भी आ जाओगे। सभी को होता है। स्वाभाविक व्यक्ति मिल जाए, तो सौभाग्य है! ऐसे व्यक्ति की छाया फिर है। मानवीय है।
छोड़ना मत। फिर बना लेना अपना घोंसला उसी की छाया में। तुम्हारे जैसा है गुरु, तुम्हारी भाषा समझेगा। और ठीक तुम्हारे | फिर करना विश्राम वहीं और खोल देना अपने हृदय को पूरा। जैसा भी नहीं है कि निंदा करे, कि तुम्हारे रोग में रस ले, कुतूहल | निशल्य हो जाओगे तुम। मन में कोई शल्य नहीं रह जाता। करे, कि खोद-खोदकर, कुरेद-कुरेदकर तुम्हारे भीतर छिपे हुए लेकिन लोग बड़े उलटे हैं। लोग गुरु से बचते हैं। और उनको रहस्यों को चेष्टा कर-करके जाने। न, गुरु तो सिर्फ पकड़ लेते हैं जो गुरु नहीं हैं। क्योंकि जो गुरु नहीं हैं, उनसे तुम्हें निष्क्रिय-भाव से, शांत-भाव से सुन लेता है तुम जो कहते हो। कुछ खतरा नहीं है। जो गुरु नहीं हैं, वे तुम्हें मिटायेंगे और तुम्हें आश्वासन दे देता है।
नहीं-तुम्हें सूली भी न देंगे, तुम्हें सिंहासन भी न देंगे, वे तुम्हारी यह आश्वासन शब्द का उतना नहीं है जितना उसके सत्व का मत्य न बनेंगे। उनके पास तम झठी सांत्वनाएं लेकर घर आ है। अपने अस्तित्व से, अपनी उपस्थिति से तुम्हें आश्वासन दे | सकते हो। सत्य तो वहां न मिलेगा। सत्य तो महंगा है। उसके देता है। तुम्हारे हाथ को हाथ में ले लेता है। या तुम्हारे सिर पर | लिए तो प्राणों से कीमत चुकानी पड़ती है। सांत्वना मिलेगी, अपना हाथ रख देता है। और तुम अनुभव कर लेते हो कि उसने | लेकिन सांत्वना बड़ी सस्ती है। क्षमा कर दिया। और अगर उसने क्षमा कर दिया, तो परमात्मा आईने से बिगड़ के बैठ गये निश्चित क्षमा कर देगा। जब गुरु तक क्षमा.करने में समर्थ है, तो जिनकी सूरत जिन्हें दिखायी गयी परमात्मा की तो बात ही क्या कहनी!
गुरु से तो लोग नाराज हो जाते हैं। क्योंकि गुरु तो दर्पण है। यूं तुझको अख्तियार है तासीर दे न दे
तुम्हारी सूरत तुम्हारे सामने आ जाएगी। 252 | JainEducation International 2010_03 For Private & Personal Use Only
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