SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सूत्र भाग : 2 अरबाबे-जुनूं पर फुरकत में है अटल विश्वास जीवन छीन जाऊंगा मरण से! अब क्या कहिये क्या-क्या गुजरी दूर मत करना चरण से!!' आये थे सवादे-उलफत में भाग्यशाली हो अगर झुकने की कला आ रही है। इस भाग्य आये थे प्रेमनगर की सीमा में। को भोगो। इस भाग्य को साथ सहयोग करो। इस भाग्य में आये थे संवादे-उलफत में बाधा मत डाल देना। इस घटती हुई घटना में किसी तरह का कुछ खो भी गये कुछ पा भी गये अवरोध खड़ा मत कर देना। तुम्हारे झुकने में ही कंजी है। वहीं यहां कुछ खोयेगा, तो ही कुछ पाया जाएगा। यहां जितना से द्वार खुलता है मंदिर का। खोयेगा, उतना ही पाया जाएगा। इधर तुम अगर बिलकुल खो गये, तो सब कुछ पा गये। यहां से अगर बचे-बचे चले गये, तो आखिरी प्रश्न : जानने की चाह में मैंने रात को दिन रचते खाली आए खाली चले गये। झुको। झुक जाओ। समग्र देखा। ऐसा क्यों हुआ? मन-प्राण से झक जाओ। यही तो सदा से भक्तों की गहन प्रार्थना रही है जो भी जानने चलेगा, वह एक न एक दिन उस पड़ाव पर दूर मत करना चरण से। पहंचता है, जहां विपरीत मिलते हए दिखायी पड़ते हैं। जहां दिन छोड़ कर संसार सारा, और रात विपरीत नहीं होते। जहां दिन और रात एक ही प्रक्रिया है लिया इनका सहारा, के दो अंग होते हैं। यदि न ठौर मिला यहां भी क्या मिला फिर मनुज-तन से! रात ही तो दिन को रचती है। रात के गर्भ में ही तो दिन पलता दूर मत करना चरण से!! है। और फिर दिन के गर्भ में रात रची जाती है। दिन ही तो रोज कलुष जीवन पुण्य होगा, रात को जन्म दे जाता है। रात ही तो रोज फिर दिन को स्वप्न, सत अक्षुण्ण होगा, पुनरुज्जीवित कर जाती है। जीवन में ही तो मौत पलती है। मौत छु सकू प्रिय पग तुम्हारे प्यार के गीले नयन से। से ही तो जीवन उमगता है। पतझड़ में ही तो वसंत के पहले दूर मत करना चरण से!! चरण सुनायी पड़ते हैं। वसंत फिर पतझड़ के लिए तैयारी कर यदि तुम्हारी छांह-चितवन जाता है। पुराने गिरते पत्तों के पीछे झांकते नये पत्तों को देखो। में पले यह क्षुद्र जीवन नये झांकते पत्तों के पीछे फिर पराने गिरते पत्तों की कथा लिख है अटल विश्वास जीवन छीन जाऊंगा मरण से! जानेवाली है। दूर मत करना चरण से! यहां जीवन में द्वंद्व, द्वंद्व नहीं है, द्वंद्व परिपूरकता है। यहां कुछ वह जब तुम झुक रहे हो, तब ऐसे गहरे भाव से झुकना कि विरोध नहीं है, अविरोध है। दो दिखायी पड़ते हैं, क्योंकि हमें प्रभु-चरणों में झुक रहे हैं, कि परमात्मा में झुक रहे हैं। अभी देखने की गहरी पकड़ नहीं आयी, सूझ नहीं आयी, | दूर मत करना चरण से!! परिप्रेक्ष्य नहीं है। अभी दृष्टि गहरी नहीं है। इसलिए दो दिखायी यदि तुम्हारी छांह-चितवन पड़ते हैं। जब दृष्टि गहरी होगी, तो तुम पाओगे एक ही बचा। में पले यह क्षुद्र जीवन यही तो अद्वैत का सार है। खोजने जो चले, उन्हें एक न एक दिन तुम झुके कि छाया में आये परमात्मा की। अकड़े खड़े रहो, तो | पता चला, जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। सुख अहंकार की धूप में जलते रहोगे। झुके कि आये छाया में। मिली और दुख; सफलता, असफलता; शांति, अशांति; संसार, छाया। संन्यास: सभी एक ही पहल के दो हिस्से हैं। यदि तुम्हारी छांह-चितवन जिस दिन यह दिखायी पड़ता है-यह पड़ाव है, यह आखिरी में पले यह क्षुद्र जीवन पड़ाव है, इसके बाद मंजिल है-जिस दिन यह दिखायी पड़ता 236 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy