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________________ प्रश्न- सार चित्त की दशा को आपने बाधा बताया । चित्त की दशा ही तो हमें आपके पास ले आयी ? बुद्धि को भी आपने बाधा बताया । पर मैं आपके इर्द-गिर्द बुद्धिमान लोगों को भरे देखता हूं? आचार्य रजनीश को सुनता था - निपट सीधा, साफ । प्यारे भगवान को भी सुनता हूं आड़े आते हैं, बुद्ध, महावीर, जीसस, शंकर आदि । स्वयं सीधे प्रकट होने की बजाय आड़ लेकर आने के पीछे रहस्य क्या ? जैन- कुटुंब में जन्म। तीन वर्षों से भगवान श्री को पढ़ना । संन्यस्त भी। फिर भी पारे की तरह बिखरते जाना । जिन न-सूत्र पर भगवान के प्रवचन अच्छे लगना । भोग में रस बहुत। परंपरा और संस्कार पांवों में बेड़ी की तरह । बहुचित्त और विक्षिप्त होते जाना, टूटते जाना। मार्गदर्शन की मांग | Jain Education International 2010_03 प्रवचन पढ़ने में रस आना । पुस्तकों द्वारा ही यहां तक खींच लिये जाना, पर अब शब्दों का समझ में न पड़ना। आंखों का भगवान को निहारना और मिंच जाने पर मस्तक का नत होना । क्या यह मन से आत्मा की ओर रूपांतरण है ? जाने की चाह में किसी ने रात को दिन रचते देखा । ऐसा क्यों ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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