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जिन सूत्र भागः2
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परमात्मा की खोज अपने को खोने की खोज है। परमात्मा को पाने का उपाय स्वयं को डुबाना और मिटाना है। तुम जब तक हो, परमात्मा न हो सकोगे। तुम्हीं तो बैठे परमात्मा की छाती पर पत्थर होकर। हटो, जगह खाली करो! तुम पत्थर की तरह हटे कि परमात्मा का झरना फूटा।
अब तुम पूछते हो, 'आप निश्चयपूर्वक कह सकते हैं कि परमात्मा है?'
निश्चयपूर्वक तो नहीं कह सकता। उसका कारण है। क्योंकि निश्चयपूर्वक हम उन्हीं बातों को कहते हैं, जिनका कुछ
अनिश्चय होता है। सरलतापूर्वक कह सकता हूं कि परमात्मा है, निश्चयपूर्वक नहीं। क्योंकि अनिश्चय मुझे जरा भी नहीं है, तो निश्चय किसके खिलाफ खड़ा करूं? जब हम कहते हैं, दृढ़ता से, तो उसका मतलब यह होता है कि भीतर कुछ कमजोरी पड़ी है। जब हम कहते हैं निश्चय से, तो उसका मतलब यह होता है कि भीतर कुछ अनिश्चय है।
सरलता से कहता हूं। ध्यान रखना मेरा वचन, सरलता से कहता हूं-परमात्मा है। परमात्मा ही है। उसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं।
आज इतना ही।
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