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जिन सत्र भागः2
अब यह दो अलग भाषाएं हैं। आइंस्टीन गणित की भाषा है। लेकिन यह गणित का संबंध नहीं है। आइंस्टीन ठीक कहता बोल रहा है। कहां सिर, कहां चांद! कोई हिसाब भी तो हो! | है, और उसकी पत्नी भी ठीक कहती है। दोनों ठीक कहते हैं। अंधेर कर रहे हो यह प्रतीक बनाकर। पत्नी भी चौंकी होगी। लेकिन दोनों के ठीक, दो अलग-अलग भाषाओं के ठीक हैं। दो कोई भी कवि चौंकता। क्योंकि कवि सदियों से यही करते रहे अलग-अलग आयाम, दो अलग-अलग व्यवस्थाओं के ठीक हैं। चांद से ज्यादा सुंदर उन्होंने कुछ पाया ही नहीं अपनी प्रेयसी हैं। इसे खयाल रखना। के चेहरे का निरूपण करने के लिए।
__ जो आदमी प्रेम में पड़कर समर्पित हो जाता है, शेष सबको __ इतना ही नहीं कि उन्होंने चांद से प्रेयसी के चेहरे का निरूपण | अंधा मालम होगा ही। क्योंकि वे गणित से चलनेवाले लोग. किया है, कोई तो अंधे और भी आगे निकल गये, उन्होंने चांद का तर्क से चलनेवाले लोग; यह क्या पागलपन है! अब तुम निरूपण अपनी प्रेयसी के चेहरे से किया है। वे कहते हैं, चांद जाओगे गैरिक-वस्त्रों में घर लौटकर, माला पहने हुए, लोग | मेरी प्रेयसी के चेहरे-जैसा सुंदर।।
| तुम्हें पागल कहेंगे। तुम चांदमारे। मेरे नाम का अर्थ चांद ही है! मगर क्या तुम कहोगे वह गलत कहते हैं! वह देखने का ढंग लूनाटिक-अब तुम पड़े मुश्किल में! अब तुम समझा न और! वह शैली और! वह भाषा और! वह आयाम और! वे पाओगे। तुम समझाने बैठोगे तो तुम हारोगे, यह भी पक्का भी ठीक कहते हैं। कुछ है मेल चांद में और प्रेयसी के चेहरे में। समझना। क्योंकि तर्क से कैसे समझाओगे? वह कहेंगे, पागल वह मेल वजन का नहीं है, न आयतन का है, न क्षेत्र का है, न हो गये हो। अगर तुमने समझाने की कोशिश की, तो उससे खाई-खड्डों का है, कुछ और है। कुछ एक सम्मोहन है। जो चांद सिर्फ इतना ही सिद्ध होगा कि तुम गलत हो। कुछ सिद्ध न हो
की तरफ देखकर आंखें ठगी रह जाती हैं। बस वैसी ही आंखें सकेगा। तुम समझाना मत। तुम खुद ही स्वीकार कर लेना कि | ठगी प्रेयसी के चेहरे पर भी रह जाती हैं। चांद में कुछ है जो | ठीक पहचाना, पागल हो गये हैं। इसके पहले कि वे हंसें, तुम तुम्हारे हृदय को आंदोलित कर देता है। बेसुध कर देता है। वैसा | खिलखिलाकर हंसना। तुम पाओगे कि वे गंभीर हो गये। इसके ही कुछ प्रेमी के चेहरे में भी है, जो तुम्हें बेसुध कर देता है। उस पहले कि वे कुछ कहें, कि तुम गुनगुनाना गीत, कि नाचना। वे अनजान की तुलना है। चांद से कुछ सुरा बहती है। इसीलिए तो अपने घर चले जाएंगे सोचकर कि ये महा...समझाने-बुझाने की चांद का दूसरा नाम है, सोम। सोमरस बहता है चांद से। बात ही न रही! इसलिए तो चांद के दिन को हम सोमवार कहते हैं। सोमरस | एक समझ की दुनिया है, जहां सीढ़ी-सीढ़ी तर्क चलता है। एक बहता है चांद से। कुछ है, जो चांदनी रात में होता है, फिर कभी प्रेम की दुनिया है, जहां छलांगें चलती हैं, कुलांचें चलती हैं। दोनों नहीं होता। जो पूरे चांद की रात में होता है, फिर कभी नहीं की चाल इतनी अलग है कि दोनों कभी साथ नहीं चल पाते। होता। कुछ पागल कर देनेवाला, कुछ मतवाला कर देनेवाला। तर्क पदार्थ तक पहंच पाता, प्रेम परमात्मा तक। परमात्मा का
तुम जानकर चकित होओगे कि पूर्णिमा की रात को दुनिया में कोई प्रमाण नहीं है। परमात्मा का एक ही प्रमाण है, वे लोग जो जितने लोग पागल होते हैं और किसी रात को पागल नहीं होते। उसके प्रेम में पागल हो गये। और कोई प्रमाण नहीं है। परमात्मा इसलिए तो पागलों के लिए एक पुराना शब्द है-चांदमारा। | को जानना है तो परमात्मा के प्रेम में पागल हो गये लोगों से अंग्रेजी में भी पागल के लिए शब्द है-लूनाटिक। वह भी चांद पूछना पड़े। कोई तर्क नहीं है। कोई सिद्धांत नहीं है। कोई उपाय से बनता है-लूनार, चांद-और लूनाटिक-वह भी नहीं सिद्ध करने का। लेकिन, जब किसी व्यक्ति में वैसे प्रेम का चांदमारा। चांद में कुछ है! सागर को आंदोलित कर देता है जन्म होता है, तो जिनको हम आंखें कहते हैं वे तो बंद हो जाती चांद। उठते हैं ज्वार। बड़ी लहरें आकाश छूने को! ठीक वैसा हैं, लेकिन कोई और आंख खुलती है—उसी को तो तीसरी ही कुछ मनुष्य के हृदय-सागर में भी होता है। पूर्णिमा की रात | आंख कहते हैं—कोई और आंख खुल जाती है। वह किसी और को कुछ घटता है। पूरे चांद के साथ कुछ तुम्हारे भीतर काव्य, | ढंग से देखने लगता है। संगीत, नृत्य का जन्म होता है। वैसा ही प्रेयसी को देखकर होता | तो स्वभावतः जिनको नहीं घटा है प्रेम, उन्हें प्रेमी पागल मालूम
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