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________________ women जिन सूत्र भाग: 2 कारण मिल गया हो, वह अंधानुकरण है। दिया, वर्तमान को चुना। मृत को इनकार कर दिया, जीवंत को नानक के गीत को सुनकर जो उनके पास पहुंच गये थे, वे चुना। जीवंत के साथ खतरा था, पता नहीं महावीर ठीक हों, न सिक्ख हैं। बाकी सब नाम के सिक्ख हैं। सिक्ख शब्द का अर्थ हों। और पता नहीं तुम्हें जो प्रतीति हो रही है वह ठीक हो, न हो। होता है, शिष्य। वह शिष्य का ही विकत रूप है। जो नानक के हो सकता है तम सम्मोहित हो गये हो। हो सकता है इस महावीर पास गये थे, जिन्होंने नानक का गीत सुना, और जिनको नानक | के वचनों ने तुम्हें घेर लिया। तुम किसी जाल में उलझ गये। की झलक मिली। जिन्होंने उनके पास उस अमृत लोक का | खतरा है। संदेह के साथ कदम उठाने पड़ेंगे। पहला सपना देखा, जिनका सत्संग हुआ, जिनके हृदय का सेतु | लेकिन साहसी उठाता है कदम। पुराने रास्तों की बड़ी प्रतिष्ठा नानक से जुड़ गया, जो क्षणभर को नानक की आंख से देख | है—प्राचीन हैं, हजारों लोग चले हैं, तीर्थ हैं, मंदिर हैं, तुम लिये, नानक के पैरों से नाच लिये, नानक के कंठ से गुनगुना जाकर पता लगा सकते हो कि इन रास्तों से लोग पहुंचे या नहीं लिये क्षणभर को सही-जिनकी धुन नानक से मिल गयी, पहंचे? तो लोकोक्तियां हैं कि इस रास्ते पर हजारों लोग सिद्ध उन्होंने समर्पण किया। यह उनका स्वयं का अनुभव था। इस । हो गये हैं। अब महावीर अचानक आकर खड़े हुए, या मुहम्मद, स्वयं के अनुभव पर उन्होंने अपना सिर झुका दिया। अभी तो कोई इनके पास सिद्ध हुआ नहीं; अभी तो कोई पहुंचा अब सिक्ख हैं, उनका नानक से क्या लेना-देना! सिक्ख घर नहीं, अभी तो परंपरा बनने में हजारों साल लगेंगे, हजारों साल में पैदा हुए, तो सिक्ख हैं। हिंदू घर में पैदा होते तो हिंदू होते। के बाद कमजोर लोग इनका अनुसरण करेंगे। हिम्मतवर लोग मुसलमान घर में पैदा होते तो मुसलमान होते। किसी हिंदू बच्चे जीवंत सदगुरु का साथ पकड़ लेते हैं। वह साथ पकड़ लेना ही को मुसलमान के घर में रख दो, वह मुसलमान हो जाएगा। समर्पण है। जो तुमने किया, वह समर्पण, जो तुमसे तरकीबों से बचपन से मुसलमान के बच्चे को जैन के घर में रख दो, वह करवा लिया गया है, वह अंधविश्वास। अगर तुममें थोड़ा भी अहिंसक हो जाएगा। शाकाहारी हो जाएगा। लेकिन यह होना | बल और हिम्मत है, अगर तुम थोड़े भी आत्मवान हो, तो तुम कोई होना है! जो तुमने स्वयं नहीं चुना। इनकार कर दोगे उन सारे संस्कारों को जो दूसरों ने तुम पर डाले। तो जो तम्हारे पास उधार है. वह अंधानकरण है। जो निज का तम कहोगे. तम कौन हो? है, वही समर्पण है। जो तुमने किया, जो अतीत से नहीं मिला, | रूस में सभी नास्तिक हैं, क्योंकि सरकार नास्तिकता पिला रही जो तुमने स्वयं साहस करके-दुस्साहस कहना चाहिए, क्योंकि है। हिंदुस्तान में सभी आस्तिक हैं, क्योंकि समाज आस्तिकता अतीत से जो मिलता है वह तो हजारों साल चिंतन किया गया है, पिला रहा है। न इस आस्तिकता का कोई मूल्य है, न उस उस पर शास्त्र लिखे गये हैं, टीकायें लिखी गयी हैं; पंडित हैं, नास्तिकता का कोई मूल्य है। दोनों दो कौड़ी की हैं। और दोनों पुजारी हैं, मंदिर हैं, बड़ी लंबी परंपरा है, परंपरा की प्रतिष्ठा है; एक-जैसी हैं। मेरे देखे कोई फर्क नहीं है। तुमको आस्तिकता लेकिन जब तुम किसी नये सदगुरु के, जीवित सदगुरु के पास पिलायी जा रही है दूध के साथ, तुम आस्तिकता पीये जा रहे हो। आते हो तो न तो कोई परंपरा है पीछे, न वेद-कुरान-बाइबिल का उनको नास्तिकता पिलायी जा रही है, वे नास्तिकता पीये जा रहे कोई सहारा है। कोई संदर्भ नहीं है। जीवित सदगरु सीधा तुम्हारे | हैं। रूस में जो हिम्मतवर है, वह हटाकर रख सामने खड़ा है। हां, तुम्हीं अगर हिम्मतवर हो, तो समर्पण कर पिला रही है। वह सोचेगा अपनी तरफ से। तुममें जो हिम्मतवर सकोगे। और तो कोई भी कारण नहीं है समर्पण करने का। है, वह भी हटाकर रख देगा जो समाज पिला रहा है। वह महावीर के पास जाकर जो झुक गये, महावीर के सारे बड़े सोचेगा अपनी तरफ से। वह कहेगा, भटक जाऊं तो भी एक शिष्य, ग्यारह शिष्य, सभी के सभी ब्राह्मण थे। साधारण ब्राह्मण सुख तो रहेगा कि अपनी ही अभीप्सा के कारण भटका। गिरूं न थे, महापंडित थे। वेद में पारंगत थे। उनके खुद के सैकड़ों खड्ड में, तो कम से कम एक तो बात रहेगी मेरे साथ कि अपने ही शिष्य थे जब वे महावीर के पास आये। लेकिन परंपरा को चुनाव से चला था, गिरा तो किसी की जिम्मेवारी नहीं। हटाकर रख दिया। सत्य को चुना। अतीत को पोंछकर रख ध्यान रखना, दूसरे के द्वारा जबर्दस्ती तुम स्वर्ग भी पहुंचा दिये 192 Jair Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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