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________________ 190 जिन सूत्र भाग: 2 लो। कान हों तो सुन लो । फिर पीछे मुझसे मत कहना। उनके सभी की आंखें थीं, सभी के कान थे, यह बात क्या ? बार-बार जीसस कहते हैं, कान हो तो सुन लो, आंख हो तो देख लो। वे ही कान, वे ही आंख तुम्हारे भीतर जन्म ले रहे हैं। जन्म की इस | घड़ी को लोभ की घड़ी मत बनाओ। कभी आंख बंद कर ली | और सुनने का रस ले लिया। क्योंकि सुन भी तुम मुझ ही को रहे हो। उससे भी तुम मुझसे ही जुड़ रहे हो। वह भी एक द्वार से मेरे पास आना है। फिर कभी आंख खोल ली, देखने का रस ले लिया । छोड़ दिया सुनने को । तब भी तुम मुझसे ही जुड़े हो और शुरू-शुरू में अलग-अलग ही करना होगा। क्योंकि एक-एक इंद्रिय जब पहली दफा पूरी तरह से आंदोलित होती है, तो सारी ऊर्जा वहीं चली जाती है। तुमने देखा? अंधे आदमियों के कान बड़े प्रबल हो जाते हैं, बड़े कुशल हो जाते हैं। अंधा आदमी जिस कुशलता से सुनता है, आंखवाले कभी सुनते ही नहीं । । इसलिए गैर-आंखवालों का सुर - बोध गहन हो जाता है । अंधे संगीतज्ञ हो जाते हैं। अंधे की वाणी मधुर हो जाती है। क्योंकि | अंधे की सारी ऊर्जा आंख से हटकर कान पर बहने लगती है जैसे-जैसे उसका स्वर-बोध गहरा होता है, वह छोटी-छोटी चीजों को भी स्वर से पहचानता है । वह लोगों के पैरों की आवाज से भी लोगों को पहचानने लगता है— कौन आ रहा है। आंखवाले नहीं पहचान सकते। आंखवालों ने कभी इतने गौर से सुना ही नहीं। आंखवालों को पता ही नहीं कि पैर भी लोग अलग-अलग ढंग से रखते हैं। चलते भी लोग अलग-अलग ढंग से हैं। जैसे अंगूठों के निशान अलग-अलग हैं, ऐसे ही हर चीज अलग-अलग है । अंधा तुम्हारी आवाज सुनकर ही पहचान लेता है कौन हो । वर्षों बाद भी मिलने जाओ उससे, आवाज पहचानते ही पहचान लेता है। क्योंकि उसकी पहचान ही आवाज से है। चेहरे का उसे कुछ पता नहीं । तो जब तुम सुनते हो पूरी तरह से, तो स्वभावतः आंख बंद हो जाएगी। क्योंकि सारी ऊर्जा कान ले रहा है। आंख को देने को है नहीं। अगर तुमने सुनने और देखने की एक-साथ कोशिश की, तो आधी-आधी बंट जाएगी। तो न तो तुम ठीक से सुन पाओगे, न ठीक से देख पाओगे। जब तुम देखोगे, सारी ऊर्जा आंख पर आ जाएगी। शुरू में ऐसा होगा । Jain Education International 2010_03 यह ऐसा ही है, कभी तुमने अगर साइकिल चलानी सीखी हो, या मोटर कार चलानी सीखी हो- साइकिल चलानेवाले सीखनेवाले को जो अड़चन आती है, वह यही । पैर पर ध्यान रखे, तो हैंडिल भूल जाता । सड़क पर देखे, तो पैडिल भूल जाता। बड़ी दुविधा खड़ी होती है। कार चलानेवाले को भी वही अड़चन होती है। एक्सीलेटर को सम्हाले, सड़क को देखे, ब्रेक को देखे, गियर को बदले, तो एक चीज की तरफ तो लग जाता है; लेकिन जैसे ही दूसरे की तरफ जाता है, पहली चीज चूक जाती है। लेकिन धीरे-धीरे, जैसे-जैसे कुशलता आने लगती है, आत्मविश्वास बढ़ता है, अपने पर श्रद्धा बढ़ती है कि ठीक है, मैं चला लेता हूं, फिर कोई याद रखने की जरूरत नहीं रह जाती। फिर वह रेडियो भी सुनता रहता है, गीत भी गुनगुनाता रहता है, कार भी चलाता रहता है; बात भी करता रहता है। एक दफा तुम्हारी कुशलता के बढ़ जाने की बात है। तो शुरू में तो तुम ऐसा ही करो। जब सुनने का मन हो, सुन लिये । जब देखने का मन हो, देख लिये। अभी दोनों को साथ साधने की कोशिश मत करना। धीरे-धीरे अपने आप सध जाएगा। धीरे-धीरे तुम पाओगे कि सुनते-सुनते आंख बंद है, लेकिन मैं दिखायी भी पड़ने लगा। मुझे देखने के लिए आंख का खुला होना जरूरी नहीं है । फिर तुम पाओगे कि आंख खुली है, तुम मुझे देख भी रहे हो, और सुनायी पड़ने लगा। और यहां ही नहीं, तुम अपने घर लौट जाओगे, अगर मेरे चित्र पर भी तुम आंख खोलकर बैठ गये, तो तुम्हें मेरी आवाज सुनायी पड़ने लगेगी। लेकिन यह घटित होगा। थोड़ी प्रतीक्षा करो, और जल्दी मत करो। अभी तो जिस तरह डूबना जाए, डूबो ! अभी तो डूबना सीख लो। फिर मेरे लब पे कसीदे हैं लबो - रुखसार के फिर किसी चेहरे पे ताबानी सी ताबानी है आज अर्जिशे-लब में शराबो- शेर का तूफान है जुंबिशे-मिजगां में अफसूने-गजलख्वानी है आज वो नफस की जमजमा-संजी नजर की गुफ्तगू सीना-ए-मासूम में इकतर्फा तुगयानी है आज वो इशारे हैं बहक जाना ही ऐने-होश है होश में रहना यकीनन सख्त नादानी है आज अभी होश की बात ही मत करो। अभी तो बेहोश हो लो। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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