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जिन सूत्र भाग : 2
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डालकर बात नहीं करते, क्योंकि वह बेहूदगी है। लोग तुम्हारे सामने वस्त्र गिरा देती है। वस्त्र खींचने नहीं पड़ते। इधर-उधर देखते हैं। बात एक-दूसरे से करते हैं, देखते प्रेयसी खुद ही उघड़ने को राजी होती है। आतुर होती है। सत्य कहीं-कहीं हैं। कोई आदमी ठीक तुम्हारी आंखों में देखकर बात स्वयं उघड़ने को आतुर है, लेकिन प्रेम से उघड़ेगा। आक्रमण से करे, तुम बेचैनी अनुभव करोगे, तुम्हें पसीना आने लगेगा। तुम नहीं। परमात्मा खुद बूंघट उठाने के लिए तैयार है, तैयार नहीं थोड़े घबड़ाओगे कि मामला क्या है? कोई जासूस है ? सरकारी बड़ा प्रतीक्षारत है, लेकिन जबर्दस्ती से न होगा। आंख में थोड़ी आदमी है? मामला क्या है, ऐसा गौर से क्यों देखता है? या जबर्दस्ती है। कान में कोई भी जबर्दस्ती नहीं। कान कहीं जा नहीं पागल है? प्रयोजन होगा कुछ। कुछ तलाश कर रहा है, कुछ सकता। ध्वनि कान तक तैरकर आती है। खोज रहा है।
कान रिक्त है, आंख भरी हुई है। आंख में पर्त दर पर्त विचारों कान ग्राहक है। आंख सक्रिय है। कान निष्क्रिय-स्वीकार है। की हैं, पर्त दर पर्त बादलों की हैं। आंख में बड़े पर्दे हैं। कान कान ऐसे है जैसे कोई द्वार को खोलकर अतिथि की प्रतीक्षा करे। बिलकुल खाली है। कान के पास कुछ भी नहीं है, सिर्फ एक सत्य निमंत्रित करना है। सत्य को बुलाना है। सत्य को कहना तंतु-जाल है। चोट होती है, कान सजग हो जाता है, स्वीकार है, द्वार खुले हैं, आओ। आंखें बिछा रखी हैं, आओ। मैं तैयार कर लेता है। हूं, आओ। तुम मुझे सोया हुआ न पाओगे, आओ। दरवाजे बंद महावीर कहते हैं, जो सुनेगा—ठीक से सुनेगा, न होंगे, तुम्हें दस्तक देने की भी तकलीफ न होगी, आओ। सम्यक-श्रवण, 'राइट लिसनिंग'; कृष्णमूर्ति जिसको कहते हैं
आंख खोजने जाती है। कान प्रतीक्षा करता है। इसे ऐसा 'राइट लिसनिंग', ठीक से जो सुनेगा–सत्य अपने-आप समझो। आंख पुरुष है। कान स्त्री है। पुरुष सक्रिय है, असत्य से अलग हो जाता है। दूध दूध, पानी पानी हो जाता है। आक्रामक है। स्त्री ग्राहक है। पुरुष जन्म नहीं दे सकता बच्चे ठीक से सुनने से तुम परमहंस हो जाते हो। को, स्त्री देती है। उसके पास गर्भ है। वह अपने भीतर लेने को मेहर सदियों से चमकता ही रहा अफ्लाक पर राजी है। सत्य भी तुम्हारे गर्भ में प्रवेश पाये, तो ही जन्म हो रात ही तारी रही इंसान के इद्राक पर सकेगा। सत्य को तुम्हें जन्माना होगा। यह कहीं रखा नहीं है कि और आदमी के बोध पर अंधेरा छाया रहा, और सूरज था कि गये और उठा लिया और आ गये। या बाजार में बिकता है, चमकता ही रहा। खरीद लिया, या दाम चुका दिये। यह तो तुम्हें जन्म देना होगा। अक्ल के मैदान में जुल्मत का डेरा ही रहा और प्रसव की पीड़ा से गुजरना होगा। तुम्हें स्त्री-जैसा होना दिल में तारीकी दिमागों में अंधेरा ही रहा होगा। समस्त धर्म के खोजियों ने इस बात पर बहत जोर दिया है। फिर कभी-कभी किसी महावीर के पास थोडी-सी झलक कि सत्य को पाना हो, तो स्त्रैण ग्राहकता चाहिए। स्वीकार का | मिलती है। भाव चाहिए।
कुछ नहीं तो कम से कम ख्वाबे-सहर देखा तो है श्रद्धा स्वीकार है, तर्क खोज है। विज्ञान खोजता है। धर्म | जिस तरफ देखा न था अब तक उधर देखा तो है प्रतीक्षा करता है। विज्ञान जाता है कोने-कांतर, उघाड़ता है, किसी महावीर के पास, किसी महावीर की वाणी को जबर्दस्ती भी करता है। विज्ञान एक तरह का बलात्कार है। | सुनकर-जिस तरफ कभी देखा ही न था...भूल ही गये थे, अगर प्रकति राजी नहीं है अपने पर्दे उठाने को, अगर प्रकति राजी | सोचा ही न था कि वह भी कोई आयाम है...उस तरफ देखा तो नहीं है चूंघट हटाने को, तो विज्ञान दुर्योधन-जैसा है। वह द्रौपदी | है। माना कि अभी यह सपना है। पहली दफे जब महावीर की को नग्न करने की चेष्टा करता है। उसमें बलात चेष्टा है। वाणी किसी के हृदय में उतरती है, नाचती, धूघर बजाती, संगीत आक्रमण है।
की तरह मधुर, मधु की तरह मीठी, जब पोर-पोर हृदय में प्रवेश धर्म प्रतीक्षा है। धर्म भी उघाड़ लेता है संसार को। धर्म भी करती है, तो एक नये स्वप्न का प्रादुर्भाव होता है। सत्य के स्वप्न | सत्य को उघाड़ लेता है, लेकिन प्रेमी की तरह। तुम्हारी प्रेयसी का प्रादुर्भाव। पहली बार याद आनी शुरू होती है जिसको हम
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