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प्रेम का आखिरी विस्तार : अहिंसा
ATME
गीत गुनगुनाओ, मूर्ति बनाओ, चित्र सजाओ, जगत को सुंदर कुछ पैसे तुम्हारे पास हैं। उस पैसे से कंकड़-पत्थर भी मिलते हैं बनाओ, आसपास जीवन की झलक को फैलाओ, जीवन को और हीरे-जवाहरात भी मिलते हैं। कौन होगा जो कंकड़-पत्थर प्रज्वलित करो। जो तुम्हारे पास आये, थोड़ा और जीवंत होकर खरीदेगा! हीरे-जवाहरात तुम खरीद लाओगे।
त। और यह बात बडी सक्षम है। तम एक जो तम्हारे पास ऊर्जा है, वह तम्हारी संपत्ति है। उसी से जैन-मुनि के पास जाओ, तुम थोड़े और मुर्दा होकर लौटोगे। वह कंकड़-पत्थर मिलते हैं, उसी से हीरे-जवाहरात मिलते हैं। वही कोई तलवार से मारता नहीं। उसके हाथ में कोई अस्त्र-शस्त्र संभोग बनती है ऊर्जा, वही समाधि बनती है। वही ऊर्जा हिंसा नहीं है। लेकिन तुम्हारी निंदा से मार देगा। जैन-मुनि तुम्हारी बनती है, वही ऊर्जा अहिंसा बनती है। वही ऊर्जा घृणा बनती तरफ देखता है तो ऐसे जैसे कि तुम पापी हो, गर्हित हो, है। वही प्रेम बनती है। एक बार तुम्हें पता चल जाए कि इस कीड़े-मकोड़े हो, आदमी नहीं। तुम्हारी तरफ देखता है ऐसे कि ऊर्जा से तो प्रेम खरीदा जा सकता है, समाधि खरीदी जा सकती तुम गलत हो। उसकी नजर में हिंसा है।
है; इस ऊर्जा से तो सत्य के स्वर्ग बसाये जा सकते हैं, तो तुम अगर तुम महावीर के पास गये होते, तो तुम्हें पता चलता। | नर्कों में जाने की यात्रा बंद कर दोगे। नर्कों में तुम जाते हो मजबूरी उनकी आंख तुम पर पड़ती और तम्हारे भीतर उल्लास उठता।। से, क्योंकि तुम्हें राह नहीं मिलती स्वर्ग की। खोज तो सभी स्वर्ग उनके पास तुम जाते और तुम पाते कि तुम ताजे हो रहे हो, नये हो रहे हैं। राह नहीं मिलती। स्वर्ग को खोजने में ही लोग नर्क जाते रहे हो, पुनरुज्जीवन हो रहा है। उनके पास से तुम जीवन का हैं। कोई नर्क को थोड़े ही खोज रहा है! कौन दुख को खोज रहा संदेश लेकर लौटते। तुम नाचते लौटते। जाते वक्त भला तुम है! कौन जहर को खोज रहा है! कौन मृत्यु को खोज रहा है! लंगड़ाते गये हो, लौटते वक्त तुम नाचते लौटते। 'पंगु चढ़ें लेकिन राह नहीं मिलती। हाड।' उनके पास से तम जीवन की महिमा का वरदान लेकर महावीर ने उस राह को दिया है। इसीलिए तो वह कह सके कि लौटते, आशीष लेकर लौटते। जिस मंदिर में तुम्हारी निंदा हो आनेवाले दिनों में लोग पूछेगे कि अब वे जिन कहां हैं? अब वे रही हो, वहां हिंसा हो रही है। सब निंदा हिंसात्मक है। तुम्हारे महावीर कहां हैं? तब तुम पछताओगे, गौतम! अभी सुगमता पापों में अंगुलियां डालकर तुम्हारे घावों को कुरेदने से कोई | से धार तुम्हारे पास से बही जाती है। डूब लो, नहा लो। फिर | अहिंसा नहीं होती। तम्हारे पाप के भीतर पड़े हए तम्हारे पुण्य को पछताने से कुछ भी न होगा। फिर रोने से जगाने से, तुम्हारे अंधेरे में छिपे तुम्हारे प्रकाश को उघाड़ने से | अभी धार पास से बही जाती है। क्षणभर भी प्रमाद मत करो, अहिंसा होती है। तुम्हें तुम्हारे परमात्मा की याद दिलाने से गौतम! आलस्य मत करो, कल पर मत टालो। मत कहो कल अहिंसा होती है। जहां तुम्हारे भीतर का परमात्मा स्वीकार किया करेंगे, क्योंकि कल का क्या पता! धार रहे, न रहे। जाता हो, जहां तुम्हारे भीतर के परमात्मा को आह्वान मिलता हो, जो आज हो सकता है, आज कर लो। पाप को कल पर टालो, जहां तुम्हारी क्षुद्रता को भूलने की सुविधा हो और तुम्हारे विराट पुण्य को आज कर लो। कहो, क्रोध कल करेंगे, ध्यान आज का दर्शन होता हो, वहां अहिंसा है। जीवन सृजनात्मकता, | करेंगे। कहो, संसार कल कर लेंगे, संन्यास आज करेंगे। कहो अहोभाव, धन्यभाग!
कि झूठ बोलना है, कल बोल लेंगे झूठ, जल्दी क्या है? सच और जैसे-जैसे तुम जीवन की महिमा से भरोगे, तुम पाओगे, आज बोलेंगे। और जिसने आज सच बोला, वह कल झूठ कैसे पाप की वृत्ति क्षीण होने लगी। क्योंकि वही ऊर्जा है, वही जहर बोल पायेगा। और जो आज झूठ बोला, वह कल सच कैसे बन रही थी, अब उसे मार्ग मिला, अब उसे स्वतंत्रता मिली, अब बोल पायेगा, क्योंकि आज से ही तो कल पैदा होता है। उसे प्रगट होने की सुविधा मिली। अगर तुम जीवन की ऊर्जा को तुम जो आज हो, वही तो तुम्हारे कल का निर्माण है। आज ही ऊपर न ले जा सको तो नीचे जाएगी, मजबूरी है। महावीर का तो तुम ईंट रख रहे हो कल के भवन की। आज ही बनाओगे घर, जोर ऊपर ले जाने पर है। ऊपर ले जाते ही नीचे की यात्रा कल उसमें रहोगे। अपने-आप बंद हो जाती है। थोड़ा सोचो, तुम बाजार गये हो। महावीर कह सके कि पास से बहती धार है, गौतम! तू क्यों
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